गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

गजल

हमर मिथिलाक माटिसँ सोन उपजैए
कऽलसँ बनि पानि अमृत धार निकलैए

सगर पोखरिक छह छह पानिमे गामक
रुपैया बनि मखाने माछ गमकैए

घरे घर सभ छटैए बड्ड बुधियारी
दलानसँ राजनीतिक जैड़ जनमैए

युवाकेँ हाथ बल छै ओ बढ़त आँगा
जँ लेलै ठानि छनमे चान पकरैए

अपन माटिसँ भएलहुँ दूर मनुकोना
विरहमे हमर आँखिसँ नोर झहरैए

(बहरे हजज, मात्रा क्रम- १२२२-१२२२-१२२२)

@ जगदानन्द झा मनु’

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों