गजल
पिया बिन ऐहि घर रहिये कऽ की करबै
विरह सन आगिमे जड़िये कऽ की करबै
अपन कनियाँ जखन कहि नै सकब हमरा
पिया करमे अपन धरिये कऽ की करबै
निवाला जखन नै भेटत तँ बुझबै दुख
गरीबक दुख अहाँ सुनिये कऽ की करबै
उड़ाबै देखि खिल्ली लोक हमरा यौ
समाजक बनि हँसी रहिये कऽ की करबै
जखन दर्दक इलाजेँ नै अहाँ लग यौ
तखन बेथा हमर सुनिये कऽ की करबै
बहरे हजज ,मात्रा क्रम १२२२ तीन बेर
© बाल मुकुन्द पाठक ।।
पिया बिन ऐहि घर रहिये कऽ की करबै
विरह सन आगिमे जड़िये कऽ की करबै
अपन कनियाँ जखन कहि नै सकब हमरा
पिया करमे अपन धरिये कऽ की करबै
निवाला जखन नै भेटत तँ बुझबै दुख
गरीबक दुख अहाँ सुनिये कऽ की करबै
उड़ाबै देखि खिल्ली लोक हमरा यौ
समाजक बनि हँसी रहिये कऽ की करबै
जखन दर्दक इलाजेँ नै अहाँ लग यौ
तखन बेथा हमर सुनिये कऽ की करबै
बहरे हजज ,मात्रा क्रम १२२२ तीन बेर
© बाल मुकुन्द पाठक ।।
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