गजल-1.46
जीवनक नै ठेकान छै
खन अपन छै खन आन छै
मद भरल निलहा आँखि दू
ई ठोर छै की पान छै
झुकतै तँ नै टुटतै तँ नै
योद्धाक गुंजल तान छै
कमजोर डाँरक युवक सब
रहि ठाढ़ नव परणाम छै
माएक हाथक पाक कतऽ
होटलक बस पकवान छै
छिछिया रहल सब रातिकेँ
सूर्यपर बेधल वाण छै
नेहक नगर रहलै "अमित"
घर नोर धरि अभियान छै
मुस्तफइलुन
2212 दू बेर सब पाँतिमे
बहरे-रजज
अमित मिश्र
जीवनक नै ठेकान छै
खन अपन छै खन आन छै
मद भरल निलहा आँखि दू
ई ठोर छै की पान छै
झुकतै तँ नै टुटतै तँ नै
योद्धाक गुंजल तान छै
कमजोर डाँरक युवक सब
रहि ठाढ़ नव परणाम छै
माएक हाथक पाक कतऽ
होटलक बस पकवान छै
छिछिया रहल सब रातिकेँ
सूर्यपर बेधल वाण छै
नेहक नगर रहलै "अमित"
घर नोर धरि अभियान छै
मुस्तफइलुन
2212 दू बेर सब पाँतिमे
बहरे-रजज
अमित मिश्र
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