गजल-1.44
जड़ि जड़ि कऽ तन घर भरि इजोत केने छै
मरि मरि कऽ अन्तो धरि इजोत केने छै
साधनक खगता हो तँ पैंच लै छै सब
चन्नो दिनकरसँ लड़ि इजोत केने छै
बोली नजरिकेँ बूझि सकल नै नैना
आखर करेजक हरि इजोत केने छै
परसैत रहियौ निज कला जँ भेटल अछि
गाछो धरापर फड़ि इजोत केने छै
ने खूनमे धधरा बचत नगर भरिमे
जँ प्रेम बाती जड़ि इजोत केने छै
पीड़ा प्रबल छै प्रसब लऽग जँ आयल छै
नेनाक कानब बरि इजोत केने छै
मुस्तफइलुन-मुस्तफइलुन-मफाईलुन
2212-2212-1222
अमित मिश्र
जड़ि जड़ि कऽ तन घर भरि इजोत केने छै
मरि मरि कऽ अन्तो धरि इजोत केने छै
साधनक खगता हो तँ पैंच लै छै सब
चन्नो दिनकरसँ लड़ि इजोत केने छै
बोली नजरिकेँ बूझि सकल नै नैना
आखर करेजक हरि इजोत केने छै
परसैत रहियौ निज कला जँ भेटल अछि
गाछो धरापर फड़ि इजोत केने छै
ने खूनमे धधरा बचत नगर भरिमे
जँ प्रेम बाती जड़ि इजोत केने छै
पीड़ा प्रबल छै प्रसब लऽग जँ आयल छै
नेनाक कानब बरि इजोत केने छै
मुस्तफइलुन-मुस्तफइलुन-मफाईलुन
2212-2212-1222
अमित मिश्र
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