गजल-9
जाऊ नहि सजनी नेह तोड़ि कऽ
देह रहत कोना प्राण छोड़ि कऽ
काटि अहुरिया यादि बचल छै
नोर बहल अछि पीड़ जोड़ि कऽ
पटा प्रेमसँ अपन फुलवाड़ी
छीनल सपना हाथ मरोड़ि कऽ
आब अहाँ छी अनकर जीवन
सुतब हम आब कब्र कोरि कऽ
उमड़ै सागर दुख करेजमेँ
सुखलै बादल रस निचोड़ि कऽ
पागल मजनू कहै छै दुनियाँ
"सुमित" सतायल प्रीत जोड़ि कऽ
वर्ण-12
सुमित मिश्र
करियन(समस्तीपुर)
जाऊ नहि सजनी नेह तोड़ि कऽ
देह रहत कोना प्राण छोड़ि कऽ
काटि अहुरिया यादि बचल छै
नोर बहल अछि पीड़ जोड़ि कऽ
पटा प्रेमसँ अपन फुलवाड़ी
छीनल सपना हाथ मरोड़ि कऽ
आब अहाँ छी अनकर जीवन
सुतब हम आब कब्र कोरि कऽ
उमड़ै सागर दुख करेजमेँ
सुखलै बादल रस निचोड़ि कऽ
पागल मजनू कहै छै दुनियाँ
"सुमित" सतायल प्रीत जोड़ि कऽ
वर्ण-12
सुमित मिश्र
करियन(समस्तीपुर)
बहतरीन प्रस्तुति बहुत उम्दा ..भाव पूर्ण रचना .. बहुत खूब इस के लिए आपको बहुत - बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंआज की मेरी नई रचना जो आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रही है
ये कैसी मोहब्बत है
खुशबू