गजल-1.49
खेल जानै छी सब प्रीतक मन्डीक
मोन खाली जरत छी नोरक मन्डीक
भटकि रहलै राति दिन टाका माँगैत
बनत शोभा थाकि ओ देहक मन्डीक
भीख नै अधिकार खातिर झगड़ा भेल
गरम छै एखन पवन देशक मन्डीक
खेतमे नै हाल छै घरपर नै माल
भेल देहाती कठिन शहरक मन्डीक
रामकेँ घरमे जनमि गेलै रावण तँ
तेँ घर प्रतिबिम्ब छै माछक मन्डीक
जहर छै पैसल समाजक सब टा अंग
"अमित" मीता बनल यम लाशक मन्डीक
फाइलातुन-फाइलातुन-मफऊलातु
2122-2122-2221
अमित मिश्र
खेल जानै छी सब प्रीतक मन्डीक
मोन खाली जरत छी नोरक मन्डीक
भटकि रहलै राति दिन टाका माँगैत
बनत शोभा थाकि ओ देहक मन्डीक
भीख नै अधिकार खातिर झगड़ा भेल
गरम छै एखन पवन देशक मन्डीक
खेतमे नै हाल छै घरपर नै माल
भेल देहाती कठिन शहरक मन्डीक
रामकेँ घरमे जनमि गेलै रावण तँ
तेँ घर प्रतिबिम्ब छै माछक मन्डीक
जहर छै पैसल समाजक सब टा अंग
"अमित" मीता बनल यम लाशक मन्डीक
फाइलातुन-फाइलातुन-मफऊलातु
2122-2122-2221
अमित मिश्र
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