गजल-1.51
हँसि हँसि कऽ दिन कऽ जीबै छी
डरि डरि कऽ राति काटै छी
जहियासँ भेल हमला बम
घर शहर छोड़ि भागै छी
आगूसँ मोन राखब ई
फैसन कऽ भूत लागै छी
लड़लासँ समय बर्बादी
अपनेसँ घेंट काटै छी
सत्यक बनल तँ नै छै सब
कखनो कऽ झूठ बाजै छी
2212-1222
मुस्तफइलुन-मफाईलुन
अमित मिश्र
हँसि हँसि कऽ दिन कऽ जीबै छी
डरि डरि कऽ राति काटै छी
जहियासँ भेल हमला बम
घर शहर छोड़ि भागै छी
आगूसँ मोन राखब ई
फैसन कऽ भूत लागै छी
लड़लासँ समय बर्बादी
अपनेसँ घेंट काटै छी
सत्यक बनल तँ नै छै सब
कखनो कऽ झूठ बाजै छी
2212-1222
मुस्तफइलुन-मफाईलुन
अमित मिश्र
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