गजल-1.43
टाँगमे शक्ति नै मोन टाँगल पहाड़पर छै
साहसक धनिक तें ध्यान लागल हजारपर छै
पेटमे अन्न नै खूनमे पानि नै जोश बड
मोनकेँ बान्हि लेने नजरि बस शिकारपर छै
गगनमे उड़ि रहल छै धरा दूर आ काँटपर
ई चिड़ैयाँक नैना तँ पसरल पथारपर छै
ज्ञान एते बढ़ल हमर ताकत सगर देख लिअ
देश भरिकेँ नजरि अटकले बस बिहारपर छै
मैथिलक भाँग दिल्ली नगर धरि बिका रहल छै
बूझि लिअ "अमित" मिथिलाक मन नव सचारपर छै
फाइलुन
212 पाँच बेर
बहरे-मुतदारिक
अमित मिश्र
टाँगमे शक्ति नै मोन टाँगल पहाड़पर छै
साहसक धनिक तें ध्यान लागल हजारपर छै
पेटमे अन्न नै खूनमे पानि नै जोश बड
मोनकेँ बान्हि लेने नजरि बस शिकारपर छै
गगनमे उड़ि रहल छै धरा दूर आ काँटपर
ई चिड़ैयाँक नैना तँ पसरल पथारपर छै
ज्ञान एते बढ़ल हमर ताकत सगर देख लिअ
देश भरिकेँ नजरि अटकले बस बिहारपर छै
मैथिलक भाँग दिल्ली नगर धरि बिका रहल छै
बूझि लिअ "अमित" मिथिलाक मन नव सचारपर छै
फाइलुन
212 पाँच बेर
बहरे-मुतदारिक
अमित मिश्र
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