गजल-1.41
ने खसल ठनका ने हवा उठल बेसी
तैयो मरल निर्धन धनी बचल बेसी
बड़का गढ़ल छै घैल मस्तिस्क मनुखक
नेहक कमल कम छै अहं भरल बेसी
सोचल सपन हेतै जँ सत्ते तँ बढ़ियाँ
आनक विकासक लेल यदि गढ़ल बेसी
बैरिन बनल तकनीक मजदूर मानै
पढ़ले तँ काजक निरक्षर पड़ल बेसी
जे छलै नै आलेख नम्हरसँ संभव
मुँहपर हँसी बनि भाव छल लिखल बेसी
मुस्तफइलुन-मुस्तफइलुन-मफऊलात
2212-2212-2122
बहरे-सरीअ
अमित मिश्र
ने खसल ठनका ने हवा उठल बेसी
तैयो मरल निर्धन धनी बचल बेसी
बड़का गढ़ल छै घैल मस्तिस्क मनुखक
नेहक कमल कम छै अहं भरल बेसी
सोचल सपन हेतै जँ सत्ते तँ बढ़ियाँ
आनक विकासक लेल यदि गढ़ल बेसी
बैरिन बनल तकनीक मजदूर मानै
पढ़ले तँ काजक निरक्षर पड़ल बेसी
जे छलै नै आलेख नम्हरसँ संभव
मुँहपर हँसी बनि भाव छल लिखल बेसी
मुस्तफइलुन-मुस्तफइलुन-मफऊलात
2212-2212-2122
बहरे-सरीअ
अमित मिश्र
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