गजल-1.38
ओ डिडिर जे अलग केलत पाक-भारत
ओतऽ टघरल शोणितक के दर्द बूझत
खेत घटलै लोक बढ़लै खेतिहर कम
गाम शहरी अन्न बिनु कोना कऽ जीयत
हे मनुख नै बाट सहयोगक निहारू
एतऽ डेगे डेगपर बड लाश भेटत
मरल मजनू एतऽ योगिन बनल मीरा
फिकिर परिणामक तँ नै बस नेह देखत
नारिकेँ जे सब बुझै छै बस्तु भोगक
ओ किए नै दूध मातक हाट बेचत
जड़ल मोनक टीस जे एलै गजल बनि
धार शब्दक भोथ तैयो भाव परसत
फाइलातुन
2122 तीन बेर सब पाँतिमे
बहरे-रमल
अमित मिश्र
ओ डिडिर जे अलग केलत पाक-भारत
ओतऽ टघरल शोणितक के दर्द बूझत
खेत घटलै लोक बढ़लै खेतिहर कम
गाम शहरी अन्न बिनु कोना कऽ जीयत
हे मनुख नै बाट सहयोगक निहारू
एतऽ डेगे डेगपर बड लाश भेटत
मरल मजनू एतऽ योगिन बनल मीरा
फिकिर परिणामक तँ नै बस नेह देखत
नारिकेँ जे सब बुझै छै बस्तु भोगक
ओ किए नै दूध मातक हाट बेचत
जड़ल मोनक टीस जे एलै गजल बनि
धार शब्दक भोथ तैयो भाव परसत
फाइलातुन
2122 तीन बेर सब पाँतिमे
बहरे-रमल
अमित मिश्र
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