श्री विजय नाथ झाजीक गीत-गजल संग्रहक पोथीक नाम अछि "अहींक लेल"। ऐ पोथीमे गीत आ गजलक फराक-फराक दूटा प्रभाग छै। हम ऐ पोथीक गजल प्रभागक संबंधमे ऐठाँ किछु चर्चा करऽ चाहब। ऐ पोथीमे गजलकार श्री विजय नाथ झाजीक अठहतरिटा गजल प्रकाशित भेल अछि। पोथीक गजल पढलासँ ई पता चलैत अछि जे किछु गजल केँ छोडिकऽ बेसी ठाँ काफिया आ रदीफक निअमक पालन कएल गेल अछि। पृष्ठ संख्या ४७, ५०, ५४, ५५, ५६, ६७, ७१, ७४, ७५, ८२, ९४, १०१, ११०, ११४ पर छपल गजलमे काफिया गडबडाएल अछि। ऐठाँ ई धेआनमे राखबाक चाही जे बिना दुरुस्त काफियाक रचना गजल नै भऽ सकैए। तखनो अधिकांश गजलक काफिया दुरुस्त अछि, जे गजलक विकास यात्राक हिसाबेँ एकटा नीक लक्षण अछि। काफिया, रदीफ आ गजलक व्याकरणक निअम पालन करबाक हिसाबेँ गजलकार ओहि गजलकार सभसँ फराक श्रेणीमे छथि जे गजलक व्याकरणकेँ नै मानबाक सप्पत खएने छथि।
ऐ गजल संग्रहक गजल सब कोन बहरमे लीखल गेल अछि, ऐ पर गजलकार मौन छथि। गजलक नीचाँमे बहरक नाम जरूर लीखल जएबाक चाही। बहरक ज्ञान नब पीढीक गजलकार सभमे बढेबामे ई महत्वपूर्ण डेग हएत। ओना तँ गजलकार कोनो गजलक नीचाँमे बहरक नाम नै लीखने छथि, मुदा गजल सभकेँ पढलासँ ई पता चलैत छै जे ऐ संग्रहक ढेरी गजल एहन अछि जाहिमे अरबी बहरक निअमक पालन करबाक नीक प्रयास कएल गेल अछि। ई स्वागत योग्य गप अछि। ऐसँ इहो पता चलैत अछि जे गजलकार अरबी बहरसँ नीक जकाँ परिचित छथि आ जँ ई बात अछि तँ हुनका बहरक नाम गजलक नीचाँमे फरिछाकेँ लीखबाक चाही। ऐ संदर्भमे हम पोथीक सबसँ पहिलुक गजलक (पृष्ठ संख्या ४५) मतलाकेँ उद्धृत करऽ चाहै छी-
हमर पूजा, हमर परिचय, हमर शृंगार छी अपने
सकल सौभाग्य, मन, काया, रुधिर-संचार छी अपने
आब एकर मात्रा संरचना पर धेआन दिऔ, तँ पता चलै छै जे ऐमे मूल ध्वनि मफाईलुन माने "ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ" सब पाँतिमे चारि बेर प्रयोग कएल गेल अछि। माने ई शेर बहरे-हजजमे कहल गेल छै। ऐ गजलक आनो शेरमे मोटामोटी किछु गलतीकेँ छोडि बहरे-हजजक प्रयोग अछि आ किछुठाँ वर्ण दुरुस्त कऽ देला पर ई गजल अरबी बहर बहरे-हजजमे अछि। ई एकटा उदाहरण अछि, एहन आरो गजल ऐ संग्रहमे छै जे वर्ण आ मात्रामे किछु परिवर्तन भेला पर अरबी बहरमे कहल मानल जाएत। हमरा ई आस अछि जे गजलकार अपन अगिला गजल संग्रहमे ऐ बातक धेआन राखताह आ अरबी बहर युक्त गजल कहिकऽ मैथिली गजलकेँ समृद्ध करताह। शेरक पाँतिक अंतमे पूर्ण विराम वा कोनो विराम चिन्ह नै लगेबाक निअम अछि, मुदा पोथीक गजलक शेर सभक पाँतिक अंतमे पूर्ण विराम लगाओल गेल अछि, जे निअमानुकूल नै अछि आ एकर धेआन राखल जएबाक चाही छल।
संवेदनाक स्तरपर ई गजल संग्रह बड्ड नीक अछि आ गजलकारक विद्वताकेँ प्रकट करैत अछि। मुदा कएकठाँ भारी भरकम तत्सम आ संस्कृतक शब्दक प्रयोग गजलकेँ बूझबामे भारी बनबैत छै, जाहिसँ बचल जा सकैत छल। गजलमे क्लासिकल भाषाक प्रयोग नहिए हेबाक चाही, अपितु आम प्रयोगक भाषाक प्रयोग गजलक लेल बेसी नीक होइत छै। शेरमे एहन शब्दक प्रयोग जे आम बेबहारमे नै छै, गजलकारक शब्द सामर्थ्यकेँ तँ जरूर देखाबैत छै, मुदा शेरकेँ आम जनसँ दूर सेहो करैत छै। तैं शेर कहबाक काल हमरा हिसाबेँ बेसी क्लिष्ट भाषाक प्रयोगसँ बचबाक चाही।
अंतमे ई कहल जा सकैए जे "अहींक लेल" पोथीक गजल प्रभाग मैथिली गजलक विकसित होइत रूपकेँ अस्पष्टे रूपेँ, मुदा देखबैत जरूर अछि। ई पोथी गजलक व्याकरणक हिसाबेँ किछु गलतीकेँ छोडिकऽ नीक प्रयास अछि। ऐ संग्रहक कएकटा शेरमे अरबी बहरक पालनक प्रयास महत्वपूर्ण आ नोटिस करबाक जोग अछि। कएकठाँ क्लिष्ट आ संस्कृतनिष्ठ शब्दक प्रयोगकेँ जँ कात कए कऽ देखल जाइ तँ संवेदनात्मक स्तरपर सेहो ई संग्रह नीक अछि। मैथिली गजलक विकास यात्रामे ई पोथी गजलक भविष्यक लेल नीक डेग अछि।