हमरा सूचित करैत इ परम हर्खक अनुभव भए रहल
अछि जे अनचिन्हार आखर द्वारा प्रस्तुत "गजल कमला-कोसी-बागमती-महानंदा सम्मान"
बर्ख 2013 लेल ओस्ताद ओमप्रकाशजीक मास सितम्बरमे प्रकाशित हुनक गजलकेँ देल जा रहल अछि।
हुनका बधाइ। एहि सालक मुख्यचयनकर्ता छलाह ओस्ताद जगदीश प्रसाद मंडल । हुनका धन्यवाद।
प्रस्तुत अछि ओस्ताद जगदीश प्रसाद मंडल जीक टिप्पणी जे की हमरा मेलपर पठाएल गेल अछि।
बिनु गजलकारक परिचय देने आशीषजी नअटा गजल निर्णए करैले पठा देलनि। परिचयक खाहिंस ऐ दुआरे जे के केते दिनसँ लिखि रहल अछि। नव-पुरानक विचार तँ करबे अछि। जँ से नै कएल जाएत तँ के केतएसँ शुरू केलनि आ केतए अखनि छथि। संगे, जे नव लिखिनिहार छथि हुनकामे कथी नवता छन्हि। नवतो तँ नवता छी। पुरान वस्त्र रहितो जँ कियो मेघडम्बर ओढ़ि बर्खामे चलै छथि वा मिरजइ पहीरै छथि तँ इतिहासक नजरिये पुरान भलहिं बूझि पड़ए मुदा नव पीढ़ीक लेल तँ नवे हएत। गजल पढ़िते मनपर भार पड़ल। भार भरैक कारण भेल जे ने गजल लिखै छी आ ने गजलक शास्त्र पढ़ि समीक्षक छी। ओना समीक्षाक जे प्रक्रिया अछि ओ एहेन ओझरा गेल अछि जे निर्णए करब समस्या बनि गेल अछि। समस्या ई जे केतौसँ सिमटी, केतौसँ बालु, केतौसँ गिट्टी लऽ सानि-बाटि पीलर ठाढ़ होइए। अपन लूरि एतबे देखै छी जे जे किछु मनमे फूड़ल ओकरा कागतपर उतारि लेलौं। आशीष जीक बिसवासी आदेशकेँ नकारियो तँ नहियेँ सकै छी। मुदा अपन बात दोसर किए बुझता। ओइ नओ (नबो) गजलक पाँति ऐ तरहेँ अछि-
“(१) दर्दसँ भरल छी हम,
(२) कोना अहाँकेँ घुरि कहब आबै लेल,
(३) तरेगण लाख छै तैयो नगर अन्हार रहिते छै,
(४) एक ठोप प्रेम चलते तड़पैत छी,
(५) हम जँ पीलहुँ शराबी कहलक जमाना,
(६) मिललौं अपन चानसँ भेल पुलकित मन,
(७) घोड़ा जखन कोनो भऽ नांगर जाइ छै,
(८) पढ़ल पंडित मुदा रोटीक मारल छी,
(९) कहियो तँ हमर घरमे चान एतै।”
नओकेँ देखला पछाति मनमे उठल, गजल की?
वएह ने गीतक संगबे कहबैए। ओहो ने साहित्यक महतपूर्ण अंग छी। मुदा ओहनो अंग तँ नहियेँ छी जेकरा नजरअंदाज कएल जाए। जे शाश्वत कल्याणकारक अछि वएह ने सुन्दर भेल।
नओ गजल ऊपरा-ऊपरी अछि। सबहक अपन-अपन उदेस आ रस्ता-बाट छै। भाव रूपमे नओ मजगूत अछि, जे खुशीक बात भेल। नओक किछु पाँति- “जिनगी कऽ बाटपर सदिखन, सहि चोट नित चलल छी हम” संकल्प संग जुड़ल अछि। तहिना दोसर गजलक- “बुझलहुँ अहाँ बैसल मोनमे छी हमर, ई दूर गेलौं हमरा कनाबै लेल” जिनगीक बहुत पैघ विचार अछि। तेसर- “गजब छै रीत दुनियाँ केर मरने राख धरि फेकै, मुदा सदिखन सभक मनमे अमिट सन यादि बसिते छै” बहुत पैघ रहस्यक उद्घाटन केलनि। चारिम- “सोन सन जीवन निशामे मातल रहय, तेँ उधारी माँगि दुख पिबैत छी” जीवनक बेवहारिक पक्षक उद्घाटन केलनि। पाँचम- “भटकलहुँ बड्ड भेटेए नेह मोनक, देख मुँह नै करेजक सुनलक जमाना” जेना शिवजीक हिमालयमे बैस किछु बाजि रहला अछि। छठम- “ओकर बढ़ल डेगसँ दर्द हरिया उठल, पायलक सुनते स्वर भेल जीबित मोन” पैघ विचार रखलनि। सातम- “खाए कए मौसी हजारो मूषरी, बनि बैसलै कोना कऽ बड़की दाइ छै” छाल्ही खौका बिलाइक चर्च सुन्दर ढंगसँ केलनि। आठम- “पढल पंडित मुदा रोटीक मारल छी, बजै छी सत्य हम थोंथीक हारल छी” एक कालखंडक जीवंत चर्च केलनि। नअम- “मानक गुमान धरले रहत एतय, नोरक लपटिसँ झरकिकऽ मान जेतै” संगे दोसर पाँतिमे कहै छथि- “हक अपन "ओम" छीनत ताल ठोकिकऽ, छोड़ब किया, कियो की दान देतै” ‘सूइ अग्रे’ महाभारतसँ लऽ कऽ सीता राम जीक- ‘अछि सलाइमे आगि’ धरिक विचार जेना उगलि देलनि। युगानुकूल गजलक केहेन ध्वनि आ झंकार हेबा चाही ई तँ गजलकारे बुझता। नओ गजलमे ‘कहियो तँ हमर घर चान एतै’ सवोपरि गजल अछि। अंतमे, एकटा बात आरो, भाषा आ साहित्य पवित्र धारक धारा छी। जइमे आनो-आन शब्द औत आ भावो एबे करत। तँए भाषा आकि साहित्य मरि जाएत एहेन बात नै। गंगा सदृश्य कारखाना शुद्ध करैवाली छथि, तहिना भवलोकमे भवजाल ने पकड़ि लिअए, ई तँ सबहक जिम्मा छियन्हिहेँ। आशीषजी, जे जनलौं से केलौं। नै पान तँ पानक डंटीओसँ यज्ञ पूर्ति होइते छै।
जगदीश प्रसाद मण्डल
१३-०१-२०१४
प्रतियोगितामे देल गेल ई 9टा गजल एना अछि---
गजल
1
दर्दसँ भरल गजल छी हम
शोकसँ सजल महल छी हम
सुख केर आशमे बैसल
दुखमे खिलल कमल छी हम
भितरी उदास रहितो बस
बाहरसँ बनि हजल छी हम
जिनगी कऽ बाटपर सदिखन
सहि चोट नित चलल छी हम
कुन्दन सुना रहल अछि ई
संघर्षमे अटल छी हम
मात्रा क्रम :२२१२+१२२२
2
कोना अहाँकेँ घुरि कहब आबै लेल
बड़ दूर गेलहुँ टाका कमाबै लेल
नै रीत कनिको प्रीतक बुझल पहिनेसँ
टूटल करेजा अछि किछु सुनाबै लेल
लागल कपारक ठोकर जखन देखलहुँ
नै आँखिमे नोरक बुन नुकाबै लेल
बुझलहुँ अहाँ बैसल मोनमे छी हमर
ई दूर गेलहुँ हमरा कनाबै लेल
कोना कऽ ‘मनु’ कहतै आब अप्पन दोख
घुरि आउ फेरसँ संसार बसाबै लेल
(बहरे- सलीम, मात्रा क्रम-२२१२-२२२१-२२२१)
3
तरेगण लाख छै तैयौ नगर अन्हार रहिते छै
बरू छै भीड़ दुनियाँमे मनुख एसगर चलिते छै
सजल छै आँखिमे सपना नदी नाला हरित धरती
जकर बेटा सुखी ओ माइक श्रृंगार सजिते छै
गजब छै रीत दुनियाँ केर मरने राख धरि फेकै
मुदा सदिखन सभक मनमे अमिट सन यादि बसिते छै
अहा वा आह धरि बाजब अहाँ आ बाट निज पकड़ब
अहींकेँ हास्य अभिनयमे हमर संसार जरिते छै
सगर छै खेल आखरकेँ हँसाबै आ कनाबै छै
कतौ टुटिते हिया छै आ कतौ नव नेह रचिते छै
4
एक ठोप प्रेम चलते तड़पैत छी
मान तोहर चित्र नोरसँ पोछैत छी
प्रीतकेँ पकड़ब सहज नै आँखिसँ बुझू
सत हियाकेँ हाथ लेने हँकमैत छी
आइ बदलल सन लगै छै दुषित हवा
एक जोड़ा मोर तन-मन मिलबैत छी
सोन सन जीवन निशामे मातल रहय
तेँ उधारी माँगि दुख पिबैत छी
धातुकेँ सोना तँ बनबै छै आगिये
तेँ सिनेहक आगिमे तन जड़बैत छी
बहरे जदीद
2122-2122-2212
5
हम जँ पीलहुँ शराबी कहलक जमाना
टीस नै दुख करेजक बुझलक जमाना
भटकलहुँ बड्ड भेटेए नेह मोनक
देख मुँह नै करेजक सुनलक जमाना
लिखल कोना कहब की की अछि कपारक
छल तँ बहुतो मुदा सभ छिनलक जमाना
दोख नै हमर नै ककरो आर कहियौ
देख हारैत हमरा हँसलक जमाना
दर्द जे भेटलै नै ‘मनु’ कनी बूझब
आन अनकर कखन दुख जनलक जमाना
6
मिललौँ अपन चानसँ भेल पुलकित मोन
बीतल पहर विरहक भेल हर्षित मोन
छल आँखि सागर ताहिसँ सुनामी उठल
बहलौँ तकर वेगसँ भेल विचलित मोन
बाजल तँ जेना बुझु फूल झहरल मुखसँ
ठोरक मधुर गानसँ भेल शोभित मोन
ओकर बढ़ल डेगसँ दर्द हरिया उठल
पायलक सुनते स्वर भेल जीबित मोन
प्रीतक तराजू पर तौललौँ धन अपन
विरहक दिया जड़ते भेल पीड़ित मोन
बहरे सलीम ,मात्राक्रम २२१२ २२२१ २२२१
7
घोड़ा जखन कोनो भऽ नाँगड़ जाइ छै
कहि ओकरा मालिक झटसँ दै बाइ छै
माए बनल फसरी तँ बाबू बोझ छथि
नव लोक सभकेँ लेल सभटा पाइ छै
घर सेबने बैसल मरदबा छै किए
चिन्हैत सभ कनियाँक नामसँ आइ छै
कानूनकेँ रखने बुझू ताकपर जे
बाजार भरिमे ओ कहाइत भाइ छै
खाए कए मौसी हजारो मूषरी
बनि बैसलै कोना कऽ बड़की दाइ छै
पोसाकमे नेताक जिनगी भरि रहल
जीतैत मातर देशकेँ ‘मनु’ खाइ छै
(बहरे रजज, मात्रा क्रम २२१२ तीन तीन बेर)
8
पढल पंडित मुदा रोटीक मारल छी
बजै छी सत्य हम थोंथीक हारल छी
बुझू कोना सबसँ काते रहै छी हम
उचितवक्ता बनै छी तें त टारल छी
दियादेकें घरक घटना मुदा धनि सन
कटेबै केश कियै हम जँ बारल छी
मधुर बनबाक छल भेलौं जँ अधखिज्जू
सत्ते नोनगर लाड़ैनेंसँ लाड़ल छी
लगै छल नीक नाथूरामकेँ पोथी
मुदा गाँधीक साड़ा संग गाड़ल छी
किओ ने पूजि रहलै कोन गलती यौ
बिना सेनूर अरिपन 'पुष्प' पाड़ल छी
1222 1222 1222 सब पाँतिमे
9
कहियो तँ हमर घरमे चान एतै
नेनाक ठोर बिसरल गान गेतै
निर्जीव भेल बस्ती सगर सूतल
सुतनाइ यैह सबहक जान लेतै
मानक गुमान धरले रहत एतय
नोरक लपटिसँ झरकिकऽ मान जेतै
सुर ताल मिलत जखने सभक ऐठाँ
क्रान्तिक बिगुलसँ गुंजित तान हेतै
हक अपन "ओम" छीनत ताल ठोकिकऽ
छोडब किया, कियो की दान देतै
(दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ)-(ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ)-(ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ)
(मुस्तफइलुन-मफाईलुन-फऊलुन)- प्रत्येक पाँतिमे एक बेर
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