काशीकान्त मिश्र "मधुप" 1906-1987
काशीकान्त मिश्र “मधुप”जीकेँ १९७०मे (राधा विरह, महाकाव्य) पर साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्राप्त मैथिलीक भेटलनि। प्रशस्त कवि आ मैथिलीक प्रचार-प्रसारक समर्पित कार्यकर्ता ’झंकार’ कवितासँ क्रान्ति गीतक आह्वान कएलनि । प्रकृति प्रेमक विलक्षण कवि । ’घसल अठन्नी कविताक लेल कथ्य आ शिल्प-संवेदना—दुहू स्तर पर चरम लोकप्रियता भेटलनि। ई आधुनिक मैथिलीक प्राय; पहिल एहन साहित्यकार छथि जे की गद्य नै लिखलनि।
मैथिलीमे हिनक एक गोट गजल उपल्बध अछि जे की पूरा-पूरी अरबी बहरपर अछि।
गजल
मिथिलाक पूर्व गौरव नहि ध्यान टा धरै छी
सुनि मैथिली सुभाषा बिनु आगियें जड़ै छी
सूगो जहाँक दर्शन-सुनबैत छल तहीँ ठाँ
हा आइ "आइ गो" टा पढ़ि उच्चता करै छी
हम कालिदास विद्या-पति-नामछाड़ि मुँहमे
बाड़ीक तीत पटुआ सभ बंकिमे धरै छी
भाषा तथा विभूषा अछि ठीक अन्यदेशी
देशीक गेल ठेसी की पाँकमे पड़ै छी?
औ यत्र-तत्र देखू अछि पत्र सैकड़ो टा
अछि पत्र मैथिलीमे एको न तैं डरै छी
(2212-122-2212-122)
१९३२मे मैथिली साहित्य समिति, द्वारा काशीसँ "मैथिली-संदेश" नामक पत्रिकामे प्रकाशित
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