गजल
कखनोकँ मोन सहकि जाइ छै
अनढनकँ लेल सनकि जाइ छै
अनढनकँ लेल सनकि जाइ छै
जे साँझ भोर रहल गुम सदति
सेहो त' लोक चहकि जाइ छै
सेहो त' लोक चहकि जाइ छै
ई नेह चीज त' थिक एहने
भेटल कि डाँर लचकि जाइ छै
भेटल कि डाँर लचकि जाइ छै
बड जे कठोर करम बानिकेँ
तकरो त' हाथ झड़कि जाइ छै
तकरो त' हाथ झड़कि जाइ छै
राजीव ई त' बुझल बात थिक
चानन पसरि क' गमकि जाइ छै
चानन पसरि क' गमकि जाइ छै
221 2112 212
@ राजीव रंजन मिश्र
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