नव बरखक नव सोच नवल हो
नव हरखक नव शक्ति सबल
हो
हो मंगलमय सभ तरहेँ जिनगी
प्रेमक अमृत रस धार बहल हो
जाति धरम कुटुम्बक नहि रगड़ा
पसरल घ्रिणाक देवाल ढ़हल हो
पावन मधुर सुर-ताल सजल हो
असल अजादीक दीपक धवल हो
सत ज्ञान-पुंजक प्रबाह प्रबल हो
मातु पिता आ गुरु चरण कमल हो
वर्ण – १४
तिथि: ०१/०१/२०१४
©राम कुमार
मिश्र
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