प्रेम कलशसँ अमृत अहाँ पीया तँ दिअ
मुइल जीवन फेरसँ हमर जीया तँ दिअ
काल्हि नै बाँचत शेष जीवन केर किछु
एकटा सुन्नर अपन सन धीया तँ दिअ
रहअ दिअ हमरा आब चाही प्राण नै
मैरतो बेरीया अपन
हीया तँ दिअ
प्राण बिनु देहक हाल देखू आब नै
बाटपर ओगरने आँखिकेँ सीया तँ दिअ
जाइ छी ‘मनु’ पाछूसँ नै टोकब अहाँ
अपन हाथसँ काठी कनी दीया तँ दिअ
(बहरे हमीम, मात्रा क्रम- २१२२-२२१२-२२१२)
जगदानन्द झा ‘मनु’
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें