रविवार, 26 जनवरी 2014

छद्म गजल

आलचोना साहित्यमे "काव्याभास" शब्द बेसी प्रचलति छै। "काव्याभास" मने ई जे कोनो रचना काव्य तँ नै थिक मुदा किछु प्रयत्नसँ ओकरा काव्य घोषित कएल गेल हो।आ ई प्रयत्न काव्य स्तरपर सेहो भ' सकैए ओ भाइ-भतीजावाद बला, मूँह देखि मुंगबा बला सेहो भ' सकैए।
मैथिलीमे "सन" शब्द प्रतिरूपक दर्शन लेल व्यवहार होइत अछि। जेना "ई गदहा सन अछि" मने एहन मनुख जकरा लेल ई कहल गेल छै से गदहा तँ नै अछि मुदा ओकर किछु लक्षण गदहा सन छै। आब ई लक्षण रूप रंगसँ आहार-बेबहार ओ गुण-अवगुण धरि भ' सकैए।
मैथिलीक ई सभसँ बड़का बेमारी छै जे जँ घर-परिवारमे वा संबंधमे वा कमसँ कम गतातीमे एकौटा साहित्यकार बनि जाइए तँ बाद-बाँकीकेँ साहित्यकार होइत कनियों देरी नै होइ छै।जँ कियो नै छथि तँ जँ मित्रो छथि तँ साहित्यकार बनबाक गारंटी ( वारंटी बहुत कमजोर शब्द छै)  हेबे करैए मैथिलीमे। स्व. प्रभाष कुमार चौधरी प्रसिद्ध साहित्यकार की भेला... गंगेश गुंजन जीकेँ प्रसिद्ध साहित्यकार होमएमे देरी नै भेल। आ गंगेश गुंजन प्रसिद्ध साहित्यकार छथि तँ हुनक "गजल सन किछु" मैथिली गजलक मीलक पाथर भ' गेल।

"दुःखक दुपहरिया" गंगेश गुंजनजीक लिखल पोथी छनि जे की लेखकक मतानुसार "हमर किछु गीत गजल सन' संकलन" छनि। ई पोथी क्रांतिपीठ प्रकाशन, पटनासँ १९९९मे प्रकाशित भेल। ऐ पोथीक पहिले पाँति थिक "ई संकलन स्वाधीन लयक हमर किछु छन्दोबद्ध रचना सब थिक"। ऐ पाँति महँक दूटा शब्द समूहपर बेसी धेआन देब आवश्यक। पहिल " स्वाधीन लयक" आ दोसर "किछु छन्दोबद्ध रचना"।
कने विषयांतर करैत हम कही जे " ई बच्चा एकटा नपुंसक वा बाँझक थिक" की ई सही हेतै। सभ लोक कहता नै ई संभवे नै छै। तँ चलू आब एही नियमकेँ गुंजनजीक पाँतिपर फिट करी। फिट केलापर अहूँ सभकेँ पता चलि गेल हएत जे "स्वाधीन लय" बला रचना कहियो छंदोबद्ध नै भ' सकैए। छंदोबद्ध रचना अनिवार्यरूपसँ कोनो ने कोनो निश्चित लयमे बान्हल रहै छै। तखन ई कोन छंदोबद्ध रचना थिक। भ' सकैए जे गुंजनजी नव छंदक जन्म देने होथि जेना हिन्दीमे गुलजार त्रिवेणी ओ मैथिलीमे रामदेव प्रसाद मंडल "झारूदार" झारू नामक छंदक अविष्कार केलाह। मुदा गुलजार ओ झारूदार जी ओइ नव छंदक व्यवस्था सेहो देलाह जे ई छंद एना लिखल जाए। मुदा गुंजनजीक पोथीमे एकर अभाव अछि। तँए हम ई मानि रहल छी जे गुंजनजी अन्हार घरमे हथोड़िया दैत मात्र तुकान्त रचनाकेँ छंदोबद्ध कहि गेला। आगू एही भूमिकामे कहल गेल अछि जे " पारंपरिक..... जे गीत-गजल भेटत से अपन सहजतामे"। प्रश्न तँ एहूठाम छै जे गजल तँ केखनो स्वाधीन लयमे होइते नै छै तखन फेर कोन गजल? विषय सूचीमे "कविता क्रम" देल गेल अछि जे सद्यः प्रमाण अछि जे रचनकारकेँ कविता-गीत-गजलक बीच अंतर नीक जकाँ बूझल छनि आ ओ लौल वश सभ विधामे अपन नाम घोसिया रहल छथि वा रचनाकारकेँ ई अंतर सभ नै बूझल छनि जे हुनक ज्ञानक स्तर सेहो भ' सकैए। चूँकि ई पोथी "गीत-गजल सनक किछु संकलन" छै मने निर्विवाद रूपसँ गजल नै छै बल्कि गजल सनकेँ छै ( गीत लेल गीतक आलोचक आबथि आगू) तँए हम आब ऐ पोथीपर बेसी चार्चा नै करब मुदा हम फेरो ई धेआन देआब' चाहब जे गजल नहियों रहैत कोन कारणसँ गुंजनजीकेँ गजलकार मानल गेल। के हुनका गजलकार मानलक। हम ई केखनो नै मानि रहल छी जे गुंजनजीकेँ ज्ञान नै छलनि बल्कि हम तँ हुनक स्पष्टवादितासँ प्रभावित भेलहुँ जे ओ अपन रचनाकेँ गजल नै मानि "गजल सन" मानलथि कारण हुनका पूरा विश्वास छलनि जे हुनक रचना गजलक मापदंडपर नै छनि। मुदा किछु आलोचक प्रभाषजीक आभामंडलमे आबि गुंजनजीकेँ गजलकार बना देलक। आ एहीठामसँ शुरू होइत अछि धुरखेल जैमे स्पष्ट रूपसँ गुंजनजी सेहो भाग लेलथि। गुंजनजी "मैथिली गजल आलोचक" सभहँक अन्हरजालीकेँ नीक जकाँ चीन्हि ओकर फायदा उठौलनि आ अपना-आपकेँ गजलकार मनबाब' लगलथि। आ एहीठामसँ हम हुनक आलोचक बनि गेलहुँ। जै गंगेश गुंजनजीक सपष्टवादितासँ हम शुरूमे प्रभावित रही आब ओही गंगेश गुंजनजीक लौल देखि हम हुनकर कथित गजलक विरोधी छी। पाठक सभ लगमे ई पोथी हेतनि की नै से पता नै तँ आउ अहूँ सभ पढ़ू ई "गीत गजल सन' किछु संकलन" निच्चा बला लिंकपर क्लिक कए कऽ--

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