गजल- 1.79
टूटि रहलै, की बरकि रहल अछि पाथर
वा दुखक मारिसँ चटकि रहल अछि पाथर
नोचि लेलक नरगिद्ध कते नारी तन
देख ई जगकेँ सिसकि रहल अछि पाथर
झूठ फूसिक गप आ सब फाँसी चढ़लै
जज बिकल छल तेँ भड़कि रहल अछि पाथर
मोल केवल पदवीक बरू मुँह कारी
अङगुरीमे सजि चमकि रहल अछि पाथर
बोल मिठका मन जीतत सब जानै छै
बनि कऽ दिल मोमक छलकि रहल अछि पाथर
2122-2211-2222
अमित मिश्र
टूटि रहलै, की बरकि रहल अछि पाथर
वा दुखक मारिसँ चटकि रहल अछि पाथर
नोचि लेलक नरगिद्ध कते नारी तन
देख ई जगकेँ सिसकि रहल अछि पाथर
झूठ फूसिक गप आ सब फाँसी चढ़लै
जज बिकल छल तेँ भड़कि रहल अछि पाथर
मोल केवल पदवीक बरू मुँह कारी
अङगुरीमे सजि चमकि रहल अछि पाथर
बोल मिठका मन जीतत सब जानै छै
बनि कऽ दिल मोमक छलकि रहल अछि पाथर
2122-2211-2222
अमित मिश्र
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