संगी सभ सँ नीक शराब छै, देखू कहियो नै बदलै छै।
एकर निशाँक नै जवाब छै, देखू कहियो नै बदलै छै।
टूटल करेज जोडि दै ए, दुखक ताप केँ करै शीतल,
फेर कहियै कोना खराब छै, देखू कहियो नै बदलै छै।
वाह कतेक मजा अबै छै उठा-पटकमे
सरकारो तक बदलै छै उठा-पटकमे
इ हार-जीत छै मात्र जनताक दृष्टि-भ्रम
कंबल तर दारू चलै छै उठा-पटकमे
के दोस्त के दुश्मन कहब बड्ड मोश्किल
रंग जे अपन देखबै छै उठा-पटकमे
नीक काज करत से केकरो फुरसति कहाँ
देखू सभ लागल रहै छै उठा-पटकमे
महँगी छै आतंकवादो छै तैओ जिनगी छै
जिनगी एनाहिते चलै छै उठा-पटकमे

गाछी के रास्ता कोइली के कुहकब अहां क गीत सुना गेल
हिलोर लैत सरिसब के फूल अहां क चलब देखा गेल
स्वर्ण रंजित लटकल मोजर अहां क हार भरमा गेल
पोखरिक बीच बतख जुगल, पुरना स्मृति उभरा गेल
हमर स्पर्श लजबिज्जी सों जेना अहां क देह सिहरा गेल
बहैत पुरबा पातक दोग सों जेना खानगी पहुँचा गेल
शांत पोखरि चमकैत पानि जेना अहां क आन्खि देखा गेल
महुवक रस चुबैत देह पर प्रेम रस सों नहा देल
पीपरक छाह आ अहां क स्मृति आब हमर आन्खि मुना गेल
भुकलक कुकूर टूटल सपना हमरा सत्य देखा गेल
--वर्ण - २२----



नोर भरल अछि नयनामे
कुचरय कौआ अंगनामे
नोकरी भेटि गेलनि बौआ कें
राति देखलियनि सपनामे
सुनैछी बिजली रहतै भरिदिन
दरभंगा आ पटनामे
चारि बरख सं संग रहैछी
की दीय' मुंहबजनामे
की भेटल की हेरा गेल अछि
ताकि रहल छी अपनामे
MAI KITNE SAAL KA HUA YE NAHI GINTA BALKI KITNE DIN MERE LIFE KA BIT GAYA WO GINTA KYOKI EK EK DIN ME SARI JINDGI JURI HOTI HAI EISE TO PANA KHONA DUKH SUKH JINDGI KA SATHI HAI FIR V HAREK DIN KUCHH NAYI SIKH MILTI HAI
लट्टू घुमै छे धरती घुमै छे
देखु देखु पूरा ब्रह्मांडे घुमै छे
सुख घुमै छे और दुख घुमै छे
देखु त पूरा जिंदगिए घुमै छे
राज घुमै छे और राजा घुमै छे
दुनु क संग संग प्रजा घुमै छे
दिनो घुमै छे आ रातियो घुमै छे
रौदी संग संग छाहरि घुमै छे
सत्य घुमै छे आ असत्य घुमै छे
दुर्गुण संग संग गुणो घुमै छे
--वर्ण - १2 –
गजल ----- जगदीश चन्द्र ठाकुर 'अनिल'
स्वप्नलोकमे घुमा-घुमा क'
बहुत कनेलहुं हंसा-हंसा क'।
पाथर नहि डूबैछ पानिमे
कहलनि हमरा सुना-सुना क'।
दुनिया छुटलनि,रम नहि छुटलनि
थाकि गेलहुं हम बुझा-बुझा क'।
मच्छर,बाघ,सांप दुनियामे
सबदिन रहलहुं नुका-नुका क'।
हम जनैछी स्वयं कें रखलहुं
कोना एखनधरि बचा-बचा क'।
काल्हि आउ, कहइत छथि हाकिम
सबदिन अहिना बजा-बजा क'।
सदरे आलम ’गौहर’सदरे आलम "गौहर"
व्याख्याता:-एस.एम.जे.कालेज खाजेडीह, ग्राम पो:- पुरसौलिया.मधुबनी
दाम एतय सभ चीजक देब' पड़ै छै।
अधिकारक लेल झग्गड़ क'र' पड़ै छै।
गज भरि जमीन जौँ कौरव नहि देब' चाहै।
पाँडव के फेर लोहा लेब' पड़ै छै।
कर्बला केर खिस्सा त' दुनिया जानै छै।
धर्मक खातिर शीश कटाब' पड़ै छै।
झग्गड़ झँझट मानलौँ नीक नहि होइ छै मुदा।
जीब' खातिर ईहो क'र' पड़ै छै।
"गौहर" साधु ब'न' लए चाहैत अछि मुदा।
दुर्जन केँ जे पाठ पढ़ाब' पड़ै छै।
MAI KITNE SAAL KA HUA YE NAHI GINTA BALKI KITNE DIN MERE LIFE KA BIT GAYA WO GINTA KYOKI EK EK DIN ME SARI JINDGI JURI HOTI HAI EISE TO PANA KHONA DUKH SUKH JINDGI KA SATHI HAI FIR V HAREK DIN KUCHH NAYI SIKH MILTI HAI