धरल रहि जैत होशियारी, मोटरी बान्हने की हैत।
जखन टूटल अछि केवाडी, यौ ताला भरने की हैत।
नीमक पात तर चानन कानै ई कोन रीत रचेलै,
जे ई सवार बनल सवारी, नाक रगडने की हैत।
केहेन गाछी अहाँ लगेलौं जे भूताहि भेल जाइ ए यौ,
बढबै लागै जखन बेमारी, दवाई कीनने की हैत।
झरकल मुँह केँ झाँपने नीक होइत छै सदिखन,
राखले रहि जैत ई तैयारी, मुँह केँ रँगने की हैत।
शीशा महग भेल हीरा सँ "ओम" केँ अचरज लागल,
राखले घर भरल बखारी, सगरो कानने की हैत।
------------------ वर्ण २० -------------------
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