गुरुवार, 3 नवंबर 2011

गजल



विकासक आगु विचार देखियौ कोना खसल जाइत छै
लिअ’ लोगबाग आब प्रगतिक पथ चढ़ल जाइत छै

बुढ़-पुरान सँ सिनेह-भावक भs रहलै अभाव आब
स्थुल माय-बापक निमेराक तँ रीते उठल जाइत छै

बुढ़वा-बुढ़िया केँ भिन कs बेटा गप भँजे छथि सुभ्यस्त
आब कोवरे सँ गिरथैनि बहराति देखल जाइत छै

कोर पोसल स्वपुत जखन भs रहल छै कर्तव्य च्युत
भावक धर्मपुत पाबि बुढ़ाकेँ नोर ढ़रल जाइत छै

खड़ खड़ जोड़ि जे ठाढ़ केयलनि आश्रम घर गृहस्ती
वैह बुढ़ घरसँ निकैलि बृद्धाश्रम ढ़ुकल जाइत छै

बुढाक स्वर्ग सिधारैक पसरल छै भोरे सँ घुनसुन
मुदा कनना-आरोहैटक आइ लाजो उठल जाइत छै

"शांतिलक्ष्मी" हँसै सोचि सोचि चौथापनक अहाँक दुर्गति
इहो वयस बुढ़ापाकेँ तँ ओहिना गुड़कल जाइत छै

.....................वर्ण २१................


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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों