गजल ----- जगदीश चन्द्र ठाकुर 'अनिल'
स्वप्नलोकमे घुमा-घुमा क'
बहुत कनेलहुं हंसा-हंसा क'।
पाथर नहि डूबैछ पानिमे
कहलनि हमरा सुना-सुना क'।
दुनिया छुटलनि,रम नहि छुटलनि
थाकि गेलहुं हम बुझा-बुझा क'।
मच्छर,बाघ,सांप दुनियामे
सबदिन रहलहुं नुका-नुका क'।
हम जनैछी स्वयं कें रखलहुं
कोना एखनधरि बचा-बचा क'।
काल्हि आउ, कहइत छथि हाकिम
सबदिन अहिना बजा-बजा क'।
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