ई जिनगी बेकार करत के
ई दुनीया धनवान सभक छै
निर्धन के सत्कार करत के
मीत हमर मुख सँ नहि बाजै
नीक जकाँ व्यवहार करत के
ओ त'निन्नो मे नहि आबै
सपना हमर साकार करत के
नेता अप्पन घर भरै ए
भारत के उद्धार करत के
पाँच बरिस नहि घुमि के ताकै
उन्नति पर विचार करत के
मैथिली मिश्री जकाँ मधुर छै
बाजि क' देखू मारि करत के
उगना बनिक' शंकर अयला
एहि गप सँ इंकार करत के
एहि ठाम कमला बलान बहैए
कोशी जीक तट पार करत के
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें