गजल
बालुक भीत बनल जिनगी चमकै छै कोना।
सुखायल ई फूल सम्बन्धक गमकै छै कोना।
नकली मुस्कीक भीड मे हरायल कतौ हँसी,
चिन्ता भरल मुँह पर मुस्की दमकै छै कोना।
पैघ भेल जाइ छै मनुक्ख, झूस विचार भेलै,
कर्म-धार मे हल्लुक विचार जमकै छै कोना।
भ' रहलै तमाशा नाचक बिना सुर-ताल के,
सरगम कतौ नै मुदा पैर झमकै छै कोना।
काठक बनल लोक रहै छै ऊँच मकान मे,
जे सुनै छै कियो नै किछ, "ओम" बमकै छै कोना।
------------------- वर्ण १७ ------------------
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