अपने छी एत्त’आ मोन कतहु टांगल अछि
जानि नहि देख’ ले’ की की सभ बांचल अछि ।
सभठां बिलाइ छै आ सभ ठाम रस्ता
घूरब कतेक बेर सभ बाट काटल अछि ।
कर्जा पर कर्जा आ रसगुल्लाक भोज
ओझा बताह आ कि भरि गाम पागल अछि ।
मुंबईमे बेटा आ दिल्लीमे कनियां
बूढ मोन दूटा हजार ठाम बांटल अछि ।
जीवकान्त,गौहर,वियोगी,विहंगम
देखू असंख्य फूल मालामे गांथल अछि ।
गाम-गाम देखू ई दृश्य महाभारतक
शतरंजक खेलमे सभ हाथ बाझल अछि ।
जहिया समयलीह सीता एहि धरतीमे
तहिया सं धरती हजार बेर फाटल अछि ।
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गुरुवार, 17 नवंबर 2011
गजल
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jagdishchandra thakur 'Anil'
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