बुधवार, 28 सितंबर 2011

गजल

सोझाँ देखि मोन ललाइए चलू घुरि चली/

ई आस अपूर्ण बुझाइए चलू घुरि चली



कोन पक्का रंगसँ ढौराबी जे धोखराए नै/

मोनक रंगो धोखराइए चलू घुरि चली



छल बुझाइत छली आब बुझि गेल बात/

छलबाक चालि बुझाइए चलू घुरि चली



ठकैए हमरा हम जानि-बूझि ठकाइत/

प्राप्ति भेलै किछु बुझाइए चलू घुरि चली



भारी धापक धम्मक पसरि गेलै सगरे/

ऐरावत ऐल सुनाइए चलू घुरि चली

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों