टूटल मोन केँ हम बुझावैत रहि गेलौं।
एक मीसिया हँसी हम ताकैत रहि गेलौं।
फूलक मुस्की कैद छै काँटक महाजाल मे,
जाल सँ मुस्की केँ हम छोडाबैत रहि गेलौं।
सूरज केँ हँसी हरायल मेघ केँ ओट मे,
फूँकि के मेघ हम उधियाबैत रहि गेलौं।
निर्झर अछि शांत भेल पाथरक चोट सँ,
चोटक दाग मोन सँ मेटाबैत रहि गेलौं।
छिडियायल छै हँसी, "ओम"क वश नै चलै
हाथक सफाई हम देखाबैत रहि गेलौं।
बहुत अच्छा लिखे है भैया
जवाब देंहटाएंभैया एक्साम पर भी ध्यान दीजिये
जवाब देंहटाएंभैया राउंआ फुकी के उद्हियाबत रहि गेलाऔ ...अरी फूकि के मेघ हम उधीयैल देही
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