खण्ड-24
एखन धरि जतेक किछु पढ़लहुँ से गजलक संबंधमे छल (योग बला विषय
गजले नै हरेक क्षेत्रमे लागू अछि) तँ चली आब गजल छोड़ि शाइरीक आन विधापर---
1) कसीदा---कसीदा शाइरीक ओ रूप थिक जाहिमे अपन लोकक प्रशंसा
आ विपक्षीक खिद्धांश हो। कसीदामे कमसँ कम 19 शेर भेनाइ जरूरी छैक। अधिकतम शेरक कोनो
संख्या नहि। कसीदा दू प्रकारक होइत छैक--
a) तमहीदिया--एहन कसीदा जकर शुरुआत प्रेम, मिलन, मस्ती आदिसँ
हो ओकरा तमहीदिया कहल जाइत छैक। एहि कसीदामे पाँच टा भाग होइत छैक तश्बीब, गुरेज, मद्ह,
दुआ एवं खात्मा। शुरुआतकेँ तश्बीब कहल जाइत छैक। मुख्य वर्णय विषय जाहिठामसँ मोड़ल
जाइ छैक तकरा गुरेज कहल जाइत छैक। मुख्य विषयकेँ मद्ह कहल जाइत छैक। प्रशंसा वा खिद्धांश
बला भागकेँ दुआ कहल जाइत छैक आ कसीदाक अंतिम भागकेँ खात्मा कहल जाइत छैक।
b) खिताबिया--खिताबिया कसीदामे बिना कोनो भूमिकाकेँ मुख्य विषय
कहल जाइत छैक।
मैथिलीमे अनेक कसीदा भेटत। विद्यापतिक (ज्योतिरीश्वरक पछाति
बला विद्यापति) अनेक गीत शिव सिंहक कसीदा थिक। एहि प्रकारे आनो मैथिली कविक लिखल कसीदा
भेटत।
2) मनसवी --मैथिलीक प्रबंध काव्य अरबी-फारसी-उर्दूक मनसवीक बराबर
अछि। ओना मनसवीक शाब्दिक अर्थ दू भाग बला वस्तु छैक। मुदा साहित्यिक रूपमे मनसवी ओहन
काव्य रुपकेँ कहल जाइत छैक जकर हरेक पाँतिमे काफिया केर प्रयोग होइक। मनसवीक शुरुआत
हस्द (मंगलाचरण) आ अंत कोनो ने कोनो उपदेशसँ हेबाक चाही। मनसवीक लेल बहरे मुतकारिब,
हजज, खफीफ, रमल, सरीअ आदि उपयुक्त रहैत छैक। मनसवीक उदाहरण लेल मैथिलीक प्रबंध काव्य
सभ देखल जाए।
3) फर्द--फर्द शाइरीक ओहन विधा थिक जकर शेरक कोनो पाँतिमे काफिया
नहियो भऽ सकैए या दूनू पाँतिमे काफिया भऽ सकैए।
आब भ्रममे नै पड़ब। वस्तुतः फर्द अलग-अलग शेरक संग्रह थिक। मानि लिअ कोनो शाइर एकटा
एहन शेर लिखला जकरा ओ कोनो गजलमे नै दऽ सकला या ओ एहन शेर भऽ गेल जकर भाव एते प्रभावी
भेल जे ओ असगरे पूरा गजलक बराबरी केलक तखन शाइर ओइ शेरकेँ असगरे रहए दै छथि आ इएह भेल
फर्द। मैथिलीमे फर्द शब्द खाली वा उघाड़ल वा बेपर्दा लेल अबैत छै जेना “कनियाँ निर्लज्ज
छथि। फर्द आँगनमे चिकरि रहल छथि” । एखन एहन कोनो शेर हमरा नजरिमे नै आएल अछि जैमे पूरा-पूरी
फर्दक गुण हो।
4) बन्द--बन्द एहन काव्य विधा भेल जकरा शाइर हम्त, नात,मनकतब,
कौवाली, मर्सिया आदिमे सुगमता पूर्वक करैत छथि। बन्द कोना कहल जाइत छैक से देखू पहिने
एकटा शेर लिखू आ तकरा बाद दूसँ दस धरिक एहन पाँति कहू जकर काफिया उपरका शेरक काफियासँ
मेल नहि खाइत हो मुदा अपना आपमे ओकर काफिया मेल खाइत होइक। आ तकरा बाद अंत मे एकटा
एहन पाँति कहू जकर काफिया पहिल शेरक काफियासँ मेल खाइत हो। ई भेल बन्द। बन्द दू प्रकारक
होइत छैक। पहिल भेल तरजीअ बन्द आ दोसर भेल तरकीब बन्द। एकटा बन्द जँ पूरा भए गेल तकरा
बाद कोनो गजल या कसीदा कहए जाए तखन ओ तरजीअ बन्द कहल जाइत छैक। जँ बन्दक अंतिम पाँतिक
काफिया शुरुआती शेरक काफियासँ मेल नहि खाइत हो तखन ओकरा तरकीब बन्द कहल जाइत छैक। मैथिलीमे
बंदक उदाहरण एखन उपलब्ध नै अछि। ओना किछु गीतकार अपन पाँतिक समूहकेँ बन्द कहए लगलाह
अछि से अलग बात।
5) रुबाइ--रुबाइमे दू टा शेर मने चारि पाँति (अधिकतम) होइत छैक।
एकर हरेक पाँतिमे मात्र एकैस मात्रा हेबाक चाही। संगहि-संग एकर शुरुआत दीर्घ-दीर्घसँ
हेबाक चाही। पहिल शेरक दूनू पाँति आ दोसर शेरक दोसर पाँतिक काफिया सामान हेबाक चाही।
जँ दोसर शेरक पहिलो पाँतिमे समान काफिया छैक तँ आरो नीक। किछु संदर्भक हिसाबें रुबाइ
लेल 24 मात्रा निर्धारित कएल गेल छै मुदा बहुतों रुबाइमे 20सँ 24क बीचमे मात्रा भेटत।
रुबाइ एकटा एहन विधा छै जे ने पूर्णतः बहरपर अधारित छै आ ने मात्रिक छंदपर। ओना रुबाइ
लेल बहुत रास बहरक (24टा) नाम गनाओल गेल छै। रुबाइक चारू पाँतिमे चारि तरहँक अलग-अलग
बहरक प्रयोग करबाक सुविधा छै। रुबाइकेँ गजलोंसँ बेसी कठिन मानल जाइत छै आ ई मात्र अपने
बहरमे मान्य छै तथापि जँ 22सँ शुरूआत करबै तँ एकर बहर अपने-आप आबि जाइत छै। रुबाइक
पहिल पाँतिसँ नीक दोसर पाँति हेबाक चाही, दोसर पाँतिसँ नीक तेसर पाँति हेबाक चाही आ
तेसर पाँतिसँ नीक चारिम पाँति हेबाक चाही। मने रुबाइक चारिम पाँति सभसँ नीक हेबाक चाही।
मौखिक रूपसँ मैथिलीमे रुबाइ खूब प्रचलित रहल हएत मुदा कालक्रमे ओकर निशान मेटा गेल।
ऐठाम हम रुबाइक चौबीसो बहर दऽ रहल छी
बहरे हजज अखरबसँ बनल 12 टा बहर---
A) 221-1212-1222-21
B) 221-1221-1222-21
C) 221-1221-1221-12
D) 221-1222-222-21
E) 221-1212-1222-2
F) 221-1221-1222-2
G) 221-1222-222-121
H) 221-1222-221-12
i) 221-1222-222-2
J) 221-1221-1221-121
K) 221-1212-1221-121
L) 221-1212-1221-12
बहरे हजज अखरमसँ बनल12 टा बहर--
a) 222-1212-1222-21
b) 222-221-1222-21
c) 222-212-1221-12
d) 222-222-222-21
e) 222-222-222-2
f) 222-212-1222-2
g) 222-221-1221-121
h) 222-221-1222-2
i) 222-222-221-12
j) 222-221-1221-12
k) 222-212-1221-121
l) 222-222-221-121
किछु अरूजी सभ ऐ चौबीसक अतिरिक्ति रुबाइक बहर सेहो बनेने छथि
तँए हमरा लोकनि उपरेमे कहलहुँ जे जँ 2-2 मने दीर्घ-दीर्घसँ शुरूआत करबै तँ एकर बहर
अपने-आप आबि जाइत छै। निश्चित रूपसँ हम सभ एकरा मैथिलीकरण कऽ रहल छिऐ बहरक मामिलामे।मुदा
एखन धरिक बहुत मैथिली रुबाइ लघुसँ सेहो शुरू होइत अछि आ एकर नीक प्रभाव भेल छै। रुबाइ
केर एकटा उदाहरण देखू--
रूसल धेने छी कोन के किएक यै
माहुर केने छी मोन के किएक यै
गहना नै कोनो प्रेमसँ बढ़िकऽ हेतै
रटनी धेने छी सोन के किएक यै
(पंकज चौधरी “नवल श्री” )
6) कता- कता मने टुकड़ा होइत छैक। एहिमे कमसँ कम दूटा शेर हेबाक
चाही । हरेक पहिल शेर दोसर शेर पर निर्भर हेबाक चाही। कताक सभ नियम रुबाइये एहन हेतै
खाली काफिया बला पाँति छोड़ि कऽ। एहि विधाक
दोसर आ चारिम पाँतिक काफिया मिलबाक चाही। संगहि-संग एकर शुरुआत दीर्घ-दीर्घसँ हेबाक
चाही। बहुत अरूजीक हिसाबसँ “ओ रुबाइ जाहि मे रुबाइयक चौबीस टा बहरमेसँ कोनो बहरक पालन
नै भेल छै तकरा कता कहल जाइत छै। मौखिक रूपसँ मैथिलीमे कता खूब प्रचलित रहल हएत मुदा
कालक्रमे ओकर निशान मेटा गेल। दू टा कता उदाहरण स्वरूप देखू--
जहरक मारल जी जाएत आँखिक नहि
ई बड़का अजगुत प्रेमक संसारमे
अनकासँ जीतब मुदा अपनासँ नहि
ई बड़का अजगुत प्रेमक संसारमे
(आशीष अनचिन्हार)
जे नै नचनियाँ ओकरा नचाबै परिस्थिति
अपन मोनक नै चलै छै एहिमे फँसि कऽ
वीर मनुखकेँ छानि कऽ निकालै परिस्थिति
जेना माँछ निकालै मलहा कादोमे धसि कऽ
(अमित मिश्र)
7) हम्त--शाइरीक एहि विधामे बंदा (भक्त) आ खुदा (भगवान)क बातचीतकेँ
विषय बनाएल जाइत छैक।मौखिक रूपसँ मैथिलीमे हम्त खूब प्रचलित रहल हएत मुदा कालक्रमे
ओकर निशान मेटा गेल। आधुनिक कालमे हमरा नजरिमे एखन धरि मैथिली हम्त नै आएल अछि।
8) नात--शाइरीक ई विधा इस्लाममे बहुत पवित्र मानल जाइत छैक।
एहि विधामे शाइर पैगम्बर हजरत मुहम्मद आ हुनकासँ जुड़ल चीजक प्रशंसा कहैत छैक। एकरा
कहैत कालमे माथपर रुमाल या कपड़ा राखल जाइत छैक जेना की हिन्दू धर्ममे दुर्वाक्षत एवं
अन्य धार्मिक विधिमे माथ पर गमछा वा धोतिक ढ़ेका खोलि माथ पर राखि लैत छथि। गायनके
बेरमे नात दू रुपें गाओल जाइत छैक। पहिल समूहमे आ दोसर असगरें। एहिठाम मोन राखू वैदिक
ॠषि वेदक ॠचाक पाठ सेहो एही दू रूपे करैत छलाह। नात रदीफ युक्त आ बिना रदीफक दूनू तरहें
लिखल जाइत छैक। मौखिक रूपसँ मैथिलीमे नात खूब प्रचलित रहल हएत मुदा कालक्रमे ओकर निशान
मेटा गेल। जहाँ धरि हमरा ज्ञान अछि मैथिलीमे लिखित रूपमे सोमदेव जी पहिल बेर नात लिखला
मुदा ओहि नात सभमे व्याकरणक अभाव अछि । देखू सोम पदावली। एकटा हम अपन लिखल नात मात्र
उदाहरण लेल राखि रहल छी--
तँ प्रेमसँ कहू सुभानअल्लाह
मिथिलाकेँ बना देबै मदीना हम
दुनियाँकेँ देखा देबै मदीना हम
पापी-नरकी सभहँक स्वागत छै
सभकेँ तँ घुमा देबै मदीना हम
पहिने जोड़ू सए कमलकेँ
तैमे जोड़ू हजार गुलाब
तकरा बाद जे बनि जाएत
से निशानी हएत प्यारकेँ
डेगे-डेग बसा देबै मदीना हम
9) मनकबत--औलिया (सिद्ध फकीर)क उपर लिखल गेल अशआर (शाइरी)केँ
मनकबत कहल जाइत छैक। हम्त, नात आ मनकबत तीनू एकै शैली थिक मुदा विषय अलग-अलग रहैत छैक।
केखनो काल कए ई तीनू रुबाइ, कता बंद आदिकेँ मिला कए लिखल जाइत अछि।मौखिक रूपसँ मनकबत खूब प्रचलित रहल हएत मुदा कालक्रमे ओकर निशान
मेटा गेल। आधुनिक कालमे हमरा नजरिमे एखन धरि मैथिली मनकतब नै आएल अछि।
10) कोनो प्रिय केर मृत्यु भेलापर अपन दुखकेँ साहित्यमे सेहो
व्यक्त कएल जाइत छै। अरबी-फारसी-उर्दू शाइरीमे एकरा मर्सिया कहल जाइत छै। ओना मर्सिया
मूल रूपसँ कर्बलाक मैदानमे हज़रत मोहम्मद साहब केर नाती इमाम हुसैन केर मृत्युसँ संबंधित
रहै छै। मैथिलीमे मर्सिया “झरनी” केर नामसँ प्रसिद्ध अछि जे की दाहामे गाएल जाइत छै।
जँ सही तरीकासँ देखल जाए तँ मर्सिया (झरनी) अरबी-फारसी-उर्दू शाइरीक पहिल एहन विधा
अछि जे की मैथिलीक साहित्यमे आएल। विदेह झरनी लेल मो. गुल हसनजीकेँ सम्मानित केने अछि।
मर्सिया (झरनी)क उदहारण देब बेकार हएत कारण मैथिल एकरा नीक जकाँ चीन्है छथि।
11) मुस्तजाद-जखन गजल समेत शाइरीक हेरक विधाक हरेक पाँतिमे कोनो
उद्येश्य पूर्ण वाक्य या वाक्यांश जोड़ि देल जाइत छैक तखन ओकरा मुस्तजाद कहल जाइत छैक।
केखनो काल शाइर गजलक मतलाक बाद कोनो उद्येश्य पूर्ण वाक्य या वाक्यांश जोड़ि दैत छथि
आ तकरा बाद आन शेर कहैत छथि। एहनो काव्यकेँ मुस्तजाद कहल जाइत छैक। ओना उर्दूओमे एहन
रूप बेसी प्रचलित नै अछि।
12) नज्म एकै भाव पर तुकांत एवं वज्नदार पाँतिक समूहकेँ नज्म
कहल जाइत छैक मतलब जे कथाक पद्यमे रूपांतरण करबै तँ नज्म हेतै। मुदा आब उर्दूमे सेहो
बिना काफिया आ बिना वज्नक नज्म आबि गेल अछि जे की शुद्ध रूपसँ आधुनिक कविता जकाँ अछि
मने कौआक टाँग आ बेंगक टांग मिला कए जे कविता लिखल गेल हो से। नज्ममे सेहो शेर होइत
छै। तँए बहुत रास मैथिल गजल आ नज्म के एकै बूझि कऽ घोंघाउज करऽ लागै छथि जे गजलमे कोनो
नियम नै होइत छै। नज्म तीन तरहँक होइत छै, पहिल पाबंद मने पहिल पाँतिसँ अंतिम पाँति
धरि वज्न बराबर रहै छै और काफिया रहै छै दोसर मुअर्रा मने ऐमे खाली वज्न बराबर हेबाक
चाही काफिया नहियों रहि सकैए तेसर आजाद मने जैमे ने एक वज्न होइत छै आ ने काफिया। आउ
देखी किछु अंतर गजल ओ नज्म महँक---
a) गजलक मतलामे जे रदीफ-काफिया-बहर लेल गेल छै तकर पालन पूरा
गजलमे हेबाक चाही मुदा नज्ममे ई कोनो जरूरी नै छै। एकै नज्ममे अनेको काफिया लेल जा
सकैए। अलग-अलग बंद वा अंतराक बहर सेहो अलग भ' सकैए संगे-संग नज्मक शेरमे बिनु काफियाक
रदीफ सेहो भेटत। मुदा बहुत नज्ममे गजले जकाँ एकै बहरक निर्वाह कएल गेल अछि। हरेक तरहक
नज्म केर उदाहरण देल जा रहल अछि। उदाहरण लेल भारतक प्रसिद्ध उर्दू शाइर आ फिल्मी गीतकार
ओ निर्देशक गुलजारजीक ई नज्म देखू—
रिश्ते बस रिश्ते होते हैं
कुछ इक पल के
कुछ दो पल के
कुछ परों से हल्के होते हैं
बरसों के तले चलते-चलते
भारी - भरकम हो जाते हैं
कुछ भारी - भरकम बर्फ के से
बरसों के तले गलते - गलते
हल्के - फुल्के हो जाते हैं
नाम होते हैं रिश्तों के
कुछ रिश्ते नाम के होते हैं
रिश्ता वह अगर मर जाए भी
बस नाम से जीना होता है
बस नाम से जीना होता है
रिश्ते बस रिश्ते होते हैं
आब महान क्रांतिकारी शाइर फैज अहमद फैज जीक ई नज्म देखू---
कोई आशिक किसी महबूबा से
याद की राहगुज़र जिसपे इसी सूरत से
मुद्दतें बीत गयीं हैं तुम्हें चलते-चलते
खत्म हो जाय जो दो-चार कदम और चलो
मोड़ पड़ता है जहाँ दश्त-ए-फ़रामोशी का
जिसके आगे न कोई मैं हूँ, न कोई तुम हो
साँस थामें हैं निग़ाहें, कि न जाने किस दम
तुम पलट आओ, गुज़र जाओ, या मुड़ के देखो
गरचे वाकिफ़ हैं निगाहें, के ये सब धोखा है
गर कहीं तुमसे हम-आग़ोश हुई फिर से नज़र
फूट निकलेगी वहाँ और कोई राहगुज़र
फिर इसी तरह जहां होगा मुकाबिल पैहम
साया-ए-ज़ुल्फ़ का और ज़ुंबिश-ए-बाजू का सफ़र
दूसरी बात भी झूठी है, कि दिल जानता है
यहाँ कोई मोड़, कोई दश्त, कोई राह नहीं
जिसके परदे में मेरा माह-ए-रवां डूब सके
तुमसे चलती रहे ये राह, यूँ ही अच्छा है
तुमने मुड़ कर भी न देखा तो कोई बात नहीं!
एक बेर फेर पाकिस्तानक लेखक फहमीदा रियाज जीक ई नज्म देखू--
तुम बिल्कुल हम जैसे निकले
अब तक कहां छुपे थे भाई?
वह मूरखता, वह घामड़पन
जिसमें हमने सदी गंवाई
आखिर पहुंची द्वार तुम्हारे
अरे बधाई, बहुत बधाई
भूत धरम का नाच रहा है
कायम हिन्दू राज करोगे?
सारे उल्टे काज करोगे?
अपना चमन नाराज करोगे?
तुम भी बैठे करोगे सोचा,
पूरी है वैसी तैयारी,
कौन है हिन्दू कौन नहीं है
तुम भी करोगे फतवे जारी
वहां भी मुश्किल होगा जीना
दांतो आ जाएगा पसीना
जैसे-तैसे कटा करेगी
वहां भी सबकी सांस घुटेगी
माथे पर सिंदूर की रेखा
कुछ भी नहीं पड़ोस से सीखा!
क्या हमने दुर्दशा बनायी
कुछ भी तुमको नज़र न आयी?
भाड़ में जाये शिक्षा-विक्षा,
अब जाहिलपन के गुन गाना,
आगे गड्ढा है यह मत देखो
वापस लाओ गया जमाना
हम जिन पर रोया करते थे
तुम ने भी वह बात अब की है
बहुत मलाल है हमको, लेकिन
हा हा हा हा हो हो ही ही
कल दुख से सोचा करती थी
सोच के बहुत हँसी आज आयी
तुम बिल्कुल हम जैसे निकले
हम दो कौम नहीं थे भाई
मश्क करो तुम, आ जाएगा
उल्टे पांवों चलते जाना,
दूजा ध्यान न मन में आए
बस पीछे ही नज़र जमाना
एक जाप-सा करते जाओ,
बारम्बार यह ही दोहराओ
कितना वीर महान था भारत!
कैसा आलीशान था भारत!
फिर तुम लोग पहुंच जाओगे
बस परलोक पहुंच जाओगे!
हम तो हैं पहले से वहां पर,
तुम भी समय निकालते रहना,
अब जिस नरक में जाओ, वहां से
चिट्ठी-विट्ठी डालते रहना!
आब फेर फैज अहमद फैजजीक ई अतिप्रसिद्ध नज्म देखू जकरा इकबाल
बानो गेने छथि--
हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिसका वादा है
जो लौह-ए-अजल में लिखा है
हम देखेंगे ...
जब जुल्म ए सितम के कोह-ए-गरां
रुई की तरह उड़ जाएँगे
हम महकूमों के पाँव तले
जब धरती धड़ धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हक़म के सर ऊपर
जब बिजली कड़ कड़ कड़केगी
हम देखेंगे ...
जब अर्ज़-ए-खुदा के काबे से
सब बुत उठवाये जायेंगे
हम अहल-ए-सफा, मरदूद-ए-हरम
मसनद पे बिठाए जाएंगे
सब ताज उछाले जाएंगे
सब तख्त गिराए जाएंगे
हम देखेंगे ...
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो गायब भी है हाजिर भी
जो नाजिर भी है मंज़र भी
उठेगा अनलहक का नारा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
और राज करेगी ख़ल्क-ए-ख़ुदा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
हम देखेंगे ...
आशा अछि जे नीक जकाँ बुझबामे आएल हएत।
b) गजलक भाषा सांकेतिक हेबाक चाही मुदा नज्मक भाषा खुलल मने
नज्म सपाटबयानी भेल।
आब चूँकि उर्दूक शाइरीक सभ विधा संग नज्मो गाएल जाइत छै तँए
किछु बुधियार मैथिल ओकरे गजल मानि लै छथि आ बहस करऽ लागै छथि। एहि नज्म सभहँक अतिरिक्त
बहुत रास फिल्मी नज्म (गीत) सेहो बहरमे लिखल गेल अछि। मैथिलीमे बहुत लोक गजलक नियम
तँ नहिए जानै छथि आ ताहिपरसँ कुतर्क करै छथि जे फिल्मी गीत बिना कोनो नियमक सुनबामे
सुंदर लगैत छै। मुदा पहिल जे नज्म लेल बहर अनिवार्य नै छै आ जाहिमे छै तकर विवरण हम
एहि ठाम द' रहल छी-----------------
1) "तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ" एहि नज्मक बहर
122 122 122 122 अछि आ ई हरेक पाँतिमे निमाहल गेल अछि। ठीक एही बहरपर आन नज्म ई सभ
सेहो अछि जेना "तेरी याद दिल से भुलाने चला हूँ", "बहुत देर से दर पे
आँखें लगी थी, हुज़ुर आते-आते बहुत देर कर दी", "मेरी याद में तुम न आँसू
बहाना" आदि।
2) "सजन रे झूठ मत बोलो, खुदा के पास जाना है" एहि
नज्मक बहर 1222 1222 1222 1222 अछि आ ई हरेक पाँतिमे निमाहल गेल अछि। ठीक एही बहरपर
आन नज्म ई सभ सेहो अछि जेना "बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है", मुझे
तेरी मुहब्बत का सहारा मिल गया होता", "भरी दुनियाँ में आख़िर दिल को समझाने
कहाँ जाएं", "अगर दिलबर की रुसवाई हमें मंजूर हो जाये", "खिलौना
जानकर तुम तो, मेरा दिल तोड़ जाते हो" आदि।
3) "दिल के अरमां आँसुओं में बह गए" एहि नज्मक बहर
2122 2122 212 अछि आ ई हरेक पाँतिमे निमाहल गेल अछि। ठीक एही बहरपर आन नज्म ई सभ सेहो
अछि जेना "कल चमन था आज इक सहरा हुआ", "मंज़िलें अपनी जगह हैं, रास्ते
अपनी जगह" आदि।
4) "खुश रहे तू सदा ये दुआ है मेरी" एहि नज्मक बहर
212 212 212 212 अछि।
एकर अतिरिक्त आरो फिल्मी नज्म सभ बहरपर आधारित अछि। जकरा
"अनचिन्हार आखर"पर "हिंदी फिल्मी गीतमे बहर" नामसँ लेखमाला देल
गेल अछि। एकर विस्तृत विवरण देखबा लेल एहिठाम आउ
https://anchinharakharkolkata.blogspot.in/p/blog-page_17.html
भारतीय भजन (सभ भाषा)मे गजलक बहुत बड़का प्रभाव छै। एकर कारण
छै बहरमे भेनाइ(वार्णिक छंद)। मैथिलीक पहिल अरूजी अपन गजलशास्त्रमे लिखै छथि जे
"सरल वार्णिक छंद (वर्ण गानि) गेबामे सभसँ कठिन छै ताहिसँ कम कठिन मात्रिक छंद
छै आ सभसँ सरल गेबामे वार्णिक छंद छै। गजलमे वार्णिक छंद, काफिया होइत छै मुदा ताहि
संग रदीफ सेहो होइत छै जाहि कारणसँ गजल गेबा लेल आर बेसी उपयुक्त भ' जाइत छै। रदीफ
गजल लेल अनिवार्य नै होइत छै मुदा तेहन भ' ने सटल रहै छै जे ओ गजलक मौलिकताक पहिचान
सेहो बनि जाइत छै। रदीफेसँ कियो गुणी पाठक पहिचान जाइ छथि जे ई किनकर गजल अछि। गजलमे
कोनो एकटा रदीफक प्रयोग भ' गेल छै तकरे फेरसँ दोसर शाइर द्वारा प्रयोग करब ओइ पहिल
आ मूल गजलक लोकप्रियताकेँ देखबै छै। आइसँ हम किछु एहन भारतीय भाषाक भजन (सभ भाषा) देखा
रहल छी जे कि स्पष्टतः गजलसँ प्रभावित भेल अछि। पहिने हम स्वामी ब्रह्मानंद जीक भजन
आ इब्न ए इंशाजीक गजल लेलहुँ अछि। उर्दूक महान शाइर इंशाजीक जन्म 1927 मे भेल छलनि।
हुनकर एकटा गजलक शेर अछि...........
दिल इश्क़ में बे-पायाँ सौदा हो तो ऐसा हो
दरिया हो तो ऐसा हो सहरा हो तो ऐसा हो
पूरा गजल रेख्ता केर एहि लिंकपर पढ़ि सकैत छी
https://www.rekhta.org/ghazals/dil-ishq-men-be-paayaan-saudaa-ho-to-aisaa-ho-ibn-e-insha-ghazals?lang=hi
इंशाजीक एहि गजलक रदीफ "हो तो ऐसा हो" केर प्रयोग स्वामी ब्रह्मानंद (जन्म
14 July 1944) अपन भजनमे केलथि। ई भजन एना अछि.......
राम दशरथ के घर के जन्मे घराना हो तो ऐसा हो
लोग दर्शन को चले आये सुहाना हो तो ऐसा हो
बहुत गायक सुहाना केर बदला "लुभाना" केर प्रयोग केने
छथि। ई स्वाभाविक छै जे लोककंठमे बसल गीतक शब्द कालखंडमे बदलि जाइत छै आ असल स्रोत
धरि पहुँचबामे बहुत कष्ट होइत छै। बहुत ठाम ब्रह्मेनंदजीक नामसँ एहनो गीत चलैए.....
कृष्ण घर नंद के घर जन्मे दुलारा हो तो ऐसा हो
लोग दर्शन को चले आये सुहाना हो तो ऐसा हो
बहुत ठाम एहनो सुनबा लेल भेटल..........
सदा शिव शंभु वरदाता दिगंबर हो तो ऐसा हो
हर सब दुख भक्तन के दयाकर हो तो ऐसा हो
एहि रदीफसँ युक्त आर भर्सन सभ सुनबा लेल भेटि सकैए आ ई इब्नेजीक
गजलक प्रभाव अछि। स्पष्ट अछि इंशाजीक गजल भजनपर बहुत बेसी प्रभाव छोड़लक। दोसर उदाहरण
अछि मोमिन ख़ाँ मोमिन जीक गजल आ गोस्वामी बिंदुजी महराज जीक भजन ल' रहल छी। उर्दूक महान
शाइर मोमिनजीक जन्म 1800 मे भेल छलनि। हुनकर एकटा गजलक शेर अछि...........
वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो
वही या'नी वा'दा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो
पूरा गजल रेख्ता केर एहि लिंकपर पढ़ि सकैत छी
https://www.rekhta.org/ghazals/vo-jo-ham-men-tum-men-qaraar-thaa-tumhen-yaad-ho-ki-na-yaad-ho-momin-khan-momin-ghazals?lang=hi
मोमिनजीक एहि गजलक रदीफ "तुम्हें याद हो कि न याद हो " केर प्रयोग गोस्वामी
बिंदुजी महराज (जन्म 1893) अपन भजनमे केलथि। ई भजन एना अछि.......
अधमों के नाथ उबारना तुम्हें याद हो कि न याद हो।
मद खल जनों का उतारना तुम्हें याद हो कि न याद हो॥
बिंदुजीक एहि भजनपर मोमिनजीक गजलक प्रभाव अछि। स्पष्ट अछि मोमिनजीक
गजल भजनपर बहुत बेसी प्रभाव छोड़लक। बिंदुजीक एकटा आर आन प्रसिद्ध भजन अछि "यदि
नाथ का नाम दयानिधि है तो दया भी करेगें कभी न कभी"। मोहन मोहिनीक बहुत भजन गजलसँ
प्रभावित अछि। ओना "कभी न कभी" प्रसिद्ध शाइर दाग देहलवी (1831) केर एकटा
गजलक अंश अछि
https://www.rekhta.org/ghazals/naa-ravaa-kahiye-naa-sazaa-kahiye-dagh-dehlvi-ghazals?lang=hi
जकरा बिंदुजी रदीफ जकाँ प्रयोग केलथि संगहि ईहो जानब रोचक जे बहुत बादमे सय्यद अमीन
अशरफ़जी एही रदीफसँ एकटा गजल सेहो लिखलाह जकरा एहि लिंकपर पढ़ि सकैत छी
https://www.rekhta.org/ghazals/malaal-e-guncha-e-tar-jaaegaa-kabhii-na-kabhii-syed-amin-ashraf-ghazals?lang=hi
एहि दूटा उदाहरणक अतिरिक्त आर बहुत रास उदाहरण अछि मुदा ओकरा
देब अभीष्ट नै। पाठक अपना स्तरपर मिलान क' सकै छथि। भजनपर गजलक विस्तृत प्रभाव देखबाक
लेल एहि लिंकपर आउ https://anchinharakharkolkata.blogspot.in/p/blog-page_72.html
13) मुजरा--मूल रूपसँ अरबी शब्द "सलाम माजरा" केर
भारतीय रूप "मुजरा" थिक। अरबीमे एकर अर्थ छै "गुणगान करैत अभिवादन प्रस्तुत
करब"। प्रारंभिक कालक हिंदी-उर्दू साहित्यमे ई शब्द अरबिए बला अर्थसँ प्रेरित
छल आ तकर पुष्टि कबीरक प्रसिद्ध पद " राम झरोखे बैठ के सबका मुजरा लेय" सँ
होइत अछि। वर्तमान समयमे गजल, नज्म,कसीदा, रुबाइ कता, बन्द आदिक समूह पर साज-बाजक संग
स्त्री नाच-गानकेँ मुजरा कहल जाइत छैक। ई विशुद्ध रुपसँ नबाबी परंपराक प्रतीक थिक।
ई शाइरीक रूप तँ नहि मुदा एकर अंग मानल जाइत अछि। जाहिठाम मुजरा आदि होइत हो ताहिठामकेँ
मोहफिल कहल जाइत छैक। मोहफिल दू प्रकारक होइ छै पहिल “बैठी” आ दोसर “खड़ी” जँ मैथिलीमे
कही तँ पहिल भेल “बैसल मोहफिल” आ दोसर भेल “ठाढ़ मोहफिल” । जँ बाइजी बैसि कऽ गीत आदि
प्रस्तुत करती तँ भेल “बैसल मोहफिल” आ जँ ठाढ़ भऽ कऽ अंग संचालन करैत नाचक सहित गीत
आदि प्रस्तुत करती तखन भेल “ठाढ़ मोहफिल” । “ठाढ़ मोहफिल” मे सभ साजिन्दा (साजिन्दा
मने तबलची, सारंगिया, ढ़ोलकिया, झालि आदि बजबए बला सेहो ठाढ़ रहै छथि। परंपरागत मुजराक
उदाहरण मैथिलीमे दुर्लभ अछि।
14) कौवाली--किछु शेर, बन्द, रुबाइ, कता आदिकेँ जोड़ि कए एकटा
कौवाली बनैत छैक। कौवालीक जन्मदाता अमीर खुसरो मानल जाइत छथि आ ओहि समयमे ओकरा कौल
कहल जाइत छलैक। धेआन देबाक बात जे मैथिलीमे कौल शब्द वचनबद्धताक संदर्भमे अबैत अछि।
जँ हम ऐ विधाकेँ आत्मा ओ परमात्मा (भक्त ओ भगवान या बंदा ओ खुदा) केर बीचक वचनबद्धता
मानी तँ कोनो दिक्कत नै। आ ई काव्य मात्र धार्मिक रूप लेल छलैक। मुदा बादमे विलासिताक
प्रतीक बनि गेल। नबाबी कालमे कौवालीक रुप स्त्री-पुरूष केर उत्तर-प्रतिउत्तर रुपमे
बदलि गेल आ बादमे एही रुपकेँ मान्य मानल गेल। मुदा एखनो बहुत कौवाली असँगरे सेहो गायन
कएल जाइत छैक। ई काव्यविधा उत्तेजक आ मनलग्गू होइत छैक। मैथिलीमे लिखित रूपसँ 1923मे
यदुनाथ झा यदुवर द्वारा लिखल पहिल कौआली भेटैत अछि। बहुत आलोचक ई मानै छथि जे कौआलीमे
एकैटा रचनाक प्रस्तुति हेबाक चाही। हुनका सभहँक हिसाबें एका गजलमे विभिन्न गजलक शेर,
कता, रुबाइ आदि प्रयोग करब अनुचित अछि।
15) गजलकेँ अलावे एकटा आर टर्म छै उर्दूमे जकरा हजल कहल जाइत
छै। आब ई बूझी जे गजल आ हजलमे की अंतर छै। व्याकरण मने रदीफ, काफिया आ बहर गजल आ हजल
लेल एक समान छै। मुदा कथन अलग-अलग जतए गजल पूरा-पूरी गंभीर बातसँ बनै छै ओतहि हजल हास्यक
फुलझरीसँ। मने हजल आ गजलमे खाली गंभीरताक अंतर छै। हमरा जहाँ धरि बुझाइत अछि जे मुसलमान
शासक सभ राज-काजक बीचमे बोर भए जाइत छलाह तखन ई हजल सुनाएल जाइत छल हेतै। उदाहरण लेल
कुंदन कुमार कर्णजीक ई हजल देखू--
एक दिन कनियांसँ भेलै झगडा
मारलनि ठुनका कहब हम ककरा
ओ पकडलनि कान आ हम झोंट्टा
युद्ध चललै कारगिल सन खतरा
मारि लागल बेलनाकेँ एहन
फेक देलक आइ आँखिसँ धधरा
बाघ छी हम एखनो बाहरमे
की कहू? घरमे बनल छी मकरा
एसगर कुन्दन सकत कोना यौ
ओ हजलकेँ बुझि लए छै फकरा
मात्राक्रम: 2122-2122-22
मोन राखू हास्य आ व्यंग्यमे महीन अंतर छै तँइ ओहन गजल जाहिमे
व्यंग्य हो से हजल केर श्रेणीमे नहि आएत।
16) माहिया--ई विधा मूलतः पंजाबी साहित्य केर थिक आ पंजाबीसँ
उर्दूमे आएल आ तकरा बाद सभ भाषामे पसरल। ई विधा मात्र तीन पाँति केर होइत छै जाहिमे
पहिल पाँतिमे 12 मात्रा दोसरमे 10 मात्रा आ फेर तेसरमे 12 मात्रा होइत छै आ सङ्गे-सङ्ग
पहिल पाँति आ तेसर पाँतिमे काफिया (तुकान्त) होइत छै... तँ देखी एकर संरचनाकेँ--
पंजाबीमे माहियाक पहिल पाँतिक संरचना अधिकांशतः 221-1222 अछि
मने दीर्घ-दीर्घ-लघु-लघु-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ।
तेनाहिते दोसर पाँतिक संरचना अछि 21-1222 दीर्घ-लघु-लघु-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ
आ फेर तेसर पाँतिक संरचना पहिल पाँतिक बराबर अछि मने 221-1222
मने दीर्घ-दीर्घ-लघु-लघु-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ।
ओना ई अधिकांश संरचना अछि। ऐकेँ अलावे किछु हेर-फेरक संग आन-आन
संरचना सेहो भेटैत अछि। मुदा ई निश्चित छै जे हरेक पाँतिमे दीर्घक बेसी संख्या रहने
लयमे ई खूब आबि जाइत छै। माहिया छन्दमे अर्थक चारि तरहें विस्तार होइत छै...
1) या तँ पहिल आ दोसर पाँति मीलि कए एकटा अर्थकेँ ध्वनित करै
आ तेसर पाँति अलग रहै,
2) या तँ दोसर पाँति आ तेसर पाँति मीलि कए कएटा अर्थकेँ ध्वनित
करै आ पहिल पाँति अलग रहै,
3) या तीनू पाँति मीलि कए एकटा अर्थकेँ ध्वनित करै
4) या दोसर पाँति एहन होइ जे पहिलो पाँति सङ्ग मीलि अलग अर्थ
दै वा तेसर पाँति सङ्ग मीलि अलग अर्थ दै।
माहिया छन्दक स्थायी अधार श्रृगांर रस थिक मुदा आधुनिक समयमे
ई हरेक विषयमे लिखल जाइत अछि। उदाहरण स्वरूप देखू हमर दूटा माहिया
1) तीरसँ ने तरुआरिसँ
हम डरै छी आब
हुनक नजरिकेँ मारिसँ
2) डोलैए मोन हमर
उठल आँखिसँ भाइ
करेज मथैए हमर
मैथिलीमे ई माहिया छन्द अज्ञात अछि.. आउ एकरो आगू बढ़ाएल जाए.....
खास कए जे कवि श्रृगांर रसमे भीजल रहै छथि।
17) बाल गजल—
की थिक
बाल गजलः
किछु लोक “बाल गजल” क नामसँ तेनाहिते चौंकि उठल छथि जेना केओ
हुनका अनचोकेमे हुड़पेटि देने हो। जँ एहन बात मात्र मैथिलिए टामे रहितै तँ कोनो बात
नै, मुदा ई चौंकब हिन्दी आ उर्दूमे सेहो भए रहल छै। कारण ई अवधारणा अलगसँ मात्र मैथिलिए
टामे छै आर कोनो भारतीय भाषामे नै (हिंदीमे बाल गजलक अवधारणा तँ छै मुदा ओकर कर्ता-धर्ता
मात्र एकटा ग्रुप छलै तँए आब ई विधा हिंदीमे लुप्तप्रायः अछि) । जँ हम कोनो हिन्दी-उर्दू
भाषी गजलकार मित्रसँ “बाल गजल” क चर्च करैत छी तँ चोट्टे कहैत छथि जे उर्दूक बहुत गजलकार
सभ बहुत शेरमे बाल मनोविज्ञानक वर्णन केने छथि खास कए ओ सुदर्शन फाकिर द्वारा कहल आ
जगजीत सिंह द्वारा गाओल गजल “ये कागज की कश्ती वो बारिस का पानी” बला संदर्भ दै छथि
आ ई बात ओना सत्य छै मुदा “बाल गजल” केँ फुटका कए ओकरा लेल अलग स्थान मात्र मैथिलिए
टामे देल गेलैए। आ ई मैथिलीक सौभाग्य थिक जे ओ “बाल गजल” क अगुआ बनि गेल अछि भारतीय
भाषा मध्य। जहाँ धरि बाल गजलक विषय चयन केर बात थिक तँ नामेसँ बुझा जाइत अछि ऐ गजलमे
बाल मनोविज्ञान केर वर्णन रहैत छै। तथापि एकटा परिभाषा हमरा दिससँ “एकटा एहन गजल जाहि
महँक हरेक शेर बाल मनोविज्ञानसँ बनल हो आ गजलक हरेक नियमकेँ पूर्ववत् पालन करैत हो
ओ बाल गजल कहेबाक अधिकारी अछि” । जँ एकरा दोसर शब्दमे कही तँ ई कहि सकैत छी जे बाल
गजल लेल नियम सभ वएह रहतै जे गजल लेल होइत छै बस खाली विषय बदलि जेतै।
आब आबी बाल गजलक अस्तित्व पर। किछु लोक कहता जे गजल दार्शानिकतासँ
भरल रहै छै तँए बाल गजल भैए ने सकैए। मुदा ओहन-ओहन लोक विदेहक अंक111 जे बाल गजल विशेषांक
अछि तकर हरेक बाल गजल पढ़थि हुनका उत्तर भेटि जेतन्हि। ओना दोसर बात ई जे कविता-कथा
आदि सभ सेहो पहिने गंभीर होइत छल मुदा जखन ओहिमे बाल साहित्य भए सकैए तँ बाल गजल किएक
नै? ओनाहुतो मैथिलीमे गजल विधाकेँ बहुत दिन धरि सायास (खास कए गजलकारे सभ द्वारा) अवडेरि
देल गेल छलै तँए बहुत लोककेँ बाल गजलसँ कष्ट भेनाइ स्वाभाविक छै।
की बाल गजल लेल नियम बदलि जेतैः
जेना की उपरमे कहल गेल अछि जे बाल गजल लेल सभ नियम गजले बला
रहतै बस खाली एकटा नियमसँ समझौता करए पड़त। माने जे बहर-काफिया-रदीफ आ आर-आर नियम सभ तँ गजले जकाँ रहतै मुदा गजलमे जेना
हरेक शेर अलग-अलग भावकेँ रहैत अछि तेना बाल गजलमे कठिन बुझाइए। तँए हमरा हिसाबेँ ऐठाम
ई नियम टूटत मुदा तैओ कोनो दिक्कत नै कारण मुस्लसल गजल तँ होइते छै। अर्थात बाल गजल
एक तरहेँ “मुस्लसल गजल “भेल। बाल गजलमे किछु शेर एहनो भऽ सकै छै जकर कोनो अर्थ नै होइक।
कारण बच्चाकेँ अर्थसँ मतलब नै रहै छै। देखने हेबै जे माए वा आन कोनो संबंधी बच्चाकेँ
उठा कऽ “अर्रररररररररररररररररररररर” बजै छै आ बच्चा खुश भऽ कऽ हँसै छै तँए बाल गजलमे
खूब लय ओ आंतरिक सुआद चाही। बाल गजलक पूर्व भूमिकाः
बाल गजल मैथिलीक अपन खोज थिक मने ई मैथिलीक अपन विधा भेल। ओना
ऐ कसबट्टीपर कसलासँ कविवर सीताराम झाजी मैथिलीक पहिल बाल गजलकार छथि। ओइ समयमे बाल
गजल नामक परिभाषिक शब्द नै उपल्बध छलै तथापि कविवरे एकर शुरुआत केलथि।
तारीखक हिसाबें 24/3/2012केँ बाल गजलक उत्पति मानल जाएत (एहि पाँतिक लेखक मने आशीष अनचिन्हार
द्वारा 24/3/2012केँ दिल्लीमे साहित्य अकादेमी आ मैलोरंग द्वारा आयोजित कथा गोष्ठीमे
ऐ बाल गजल नामक विधाक प्रयोग कएल गेल) मुदा ओकर स्वरूप मैथिलीमे पहिनेहें फड़िच्छ भए
चुकल छल। 09 Dec. 2011केँ अनचिन्हार आखर http://anchinharakharkolkata.blogspot.com पर प्रकाशित श्रीमती शांति लक्ष्मी चौधरी जीक ई गजल देखल जाए (बादमे ई गजल मिथिला
दर्शनक अंक मइ-जून 2012मे सेहो प्रकाशित भेलै) आ सोचल जाए जे बिना कोनो घोषणाकेँ एतेक
नीक बाल गजल कोना लिखल गेलै--
शिशु सिया उपमा उपमान छियै हमर आयुष्मति बेटी
मैत्रेयी गार्गीक कोमल प्राण छियै हमर आयुष्मति बेटी
टिमकैत कमल नयन, धव धव माखन सन कपोल
पुर्णमासीक चमकैत चान छियै हमर आयुष्मति बेटी
बिहुसैत ठोर मे अमृतधारा बिलखैत ठोर सोमरस
शिशु स्वरुपक श्रीभगवान छियै हमर आयुष्मति बेटी
नौनिहाल किहकारी सरस मिश्री घोरल मनोहर पोथी
दादा नाना माँ सारेगामा गान छियै हमर आयुष्मति बेटी
सकल पलिवारक अलखतारा जन्मपत्रीक सरस्वती
अपन मैया पिताश्रीक जान छियै हमर आयुष्मति बेटी
ज्ञानपीठक बेटी छियै सुभविष्णु मिथिलाक दीप्त नक्षत्र
मातृ पितृ कुलक अरमान छियै हमर आयुष्मति बेटी
“शांतिलक्ष्मी” विदेहक घर घर देखय इयह शिशु लक्ष्मी
बेटी जातिक भविष्णु गुमान छियै हमर आयुष्मति बेटी
वर्ण 22
तेनाहिते एकटा हमर बिना छंद बहरक गजल अनचिन्हार आखर http://anchinharakharkolkata.blogspot.com आ विदेहक फेसबुक वर्सन http://www.facebook.com/groups/videha/पर 6/6/2011केँ आएल छल से देखू--
होइत छैक बरखा आ रे बौआ
कागतक नाह बना रे बौआ
देखिहें घुसौ ने चोरबा घर मे
हाथमे ठेंगा उठा रे बौआ
तोरे पर सभटा मानगुमान
माएक मान बढ़ा रे बौआ
छैक गड़ल काँट घृणाक करेजमे
प्रेमसँ ओकरा हटा रे बौआ
नहि झुकौ माथ तोहर दुशमन लग
देशक लेल माथ कटा रे बौआ
तेनाहिते 4 अक्टूबर 2010केँ अनचिन्हार आखर http://anchinharakharkolkata.blogspot.com पर प्रकाशित गजेन्द्र ठाकुर जीक ऐ गजलकेँ देखल जाए जे शब्दावलीक आधार पर बाल गजल
अछि मुदा अर्थ विस्तारक कारणें बाल आ बूढ़ दूनू लेल अछि--
बानर पट लैले अछि तैयार
बिरनल सभ करू ने उद्धार
गाएक अर्रबों सुनि अनठेने
दुहै समऐँ जनताक कपार
पुल बनेबाक समचा छैक नै
अर्थशास्त्रपोथीक छलै भण्डार
कोरो बाती उबही देबाक लेल
आउ बजाउ बुढ़ानुस भजार
डरक घाट नहाएल छी हम
से सहब दहोदिश अत्याचार
ऐरावत अछि देखा देखा
कए
सभटा देखैत अछि ओ व्यापार
ऐ तीनटा गजलक आधार पर ई कहब बेसी उचित जे बाल गजलक भूमिका बहुत
पहिने बनि गेल छल मुदा विस्फोट 24/3/2012केँ भेलै। आ ऐ विस्फोटमे जतेक हमर भूमिका अछि
ततबए हिनका सभकेँ सेहो छन्हि। ऐठाम ई कहब कनो बेजाए नै जे विदेहक अंक 111 बाल गजलक
पहिल विशेषांक अछि। ऐमे कुल 16 टा गजलकारक कुल 93 टा बाल गजल आएल। हमरा ई पूर्ण विश्वास
अछि जे बाल गजल मैथिलीमे पसरत आ नेना भुटका केर जीहपर चढ़त।
ऐ ठाम हम 1942 केर लगीचमे प्रकाशित कविवर सीताराम झा जीक गजल
जे की वस्तुतः “बाल गजल “अछि से प्रस्तुत कऽ रहल छी--
बाउजी जागू ठारर भरै छी कियै”
व्यर्थ सूतल कि बैसल सड़ै छी कियै”
वेद पोथी पढ़ू आ अखाढ़ा चढ़ू
बाट दू में ऐकोने धरै छी कियै”
जँ थिकहुँ विप्रवंशीय सत्पुत्र तँ
पाठशालाकनामे डरै छी कियै”
बाट में काँट कै काटि आगू बढ़ू
देखि रोड़ा कनेको अड़ै छी कियै”
मेल चाहय सदा शत्रुओंसँ सुधी
बन्धुऐ में अहाँ सब लड़ै छी कियै”
आधि में माँति छी छी खाधि में जा रहल
देखि आनक समुन्नति जरै छी कियै”
साध्य में बुद्धि नौका अछैतो अहाँ
विघ्नबाधा नदी अहाँ ने तरै छी कियै”
मायबापोक सत्कर्म हो से करू
पापपन्थीक पाला पड़ै छी कियै”
बान्हि कक्षा स्वयं आत्मा रक्षा करू
शेष जीवन अछैतो मरै छी कियै”
सभ पाँतिमे 2122+ 122+ 122+ 12 मात्राक्रम अछि। ए, ऐ आदिकेँ
लघु मानल गेल अछि। मतलामे रदीफ “छी किए” अछि तकर बादक शेर सभमे “छी कियै” । हमरा जनैत
ई संपादकीय दोष हएत (संपादक छथि विश्वनाथ झा
विषपायी,पोथी अछि कविवर सीताराम झा काव्यावली -प्रथम भाग)। आन शेर सभमे “छी कियै” केर
बहुलता देखि मतलामे सेहो हम “छी कियै” लेलहुँ।
ऐ गजलक तेसर शेरक संदेशसँ व्यक्तिगत रूपें हम सभ सहमत नै छी
कारण ई शेर संकुचित समाजक परिचायक अछि। बाल गजलक संबंधमे हम एकटा पोस्ट फेसबुक पर देने
रही जकरा एहि लिंकपर देखल जा सकैए https://anchinharakharkolkata.blogspot.in/2012/04/ashish-anchinhar-like-unfollow-post-27_08.html
18) भक्ति गजल--ईहो ठीक बाले गजल जकाँ अछि। खाली विषय भक्ति
भऽ जाइत छै। ईहो मैथिलीक अपन अविष्कार छै। मैथिलीमे भक्ति गजल नामक परिभाषिक शब्दावली
अमित मिश्रजी द्वारा 7 अगस्त 2012केँ “विदेहक फेसबुक “केर पटलपर प्रस्तुत कएल गेल।
ओना ओहिसँ बहुत पहिनेहें 16/1/2012केँ जगदानंद झा मनु जी बिना कोनो घोषणाकेँ अनचिन्हार
आखरपर भक्ति गजल प्रस्तुत केला। एक बेर फेर मैथिलीक आदिक भक्ति गजलकार कविवर सीताराम
झा चिन्हित होइ छथि। विदेहक 15 मार्च 2013 बला 126म अंक भक्ति गजल विशेषांक अछि। भक्ति
गजलक संबंधक बेसी विवरण एहि लिंकपर भेटत -- https://anchinharakharkolkata.blogspot.in/2017/07/blog-post_7.html
ऐ ठाम हम 1928मे प्रकाशित कविवर सीताराम झा जीक “सूक्ति सुधा
(प्रथम बिंदु)मे संग्रहीत गजल जे की वस्तुतः “भक्ति गजल “अछि से प्रस्तुत कऽ रहल छी—
जगत मे थाकि जगदम्बे अहिंक पथ आबि बैसल छी
हमर क्यौ ने सुनैये हम सभक गुन गाबि बैसल छी
न कैलों धर्म सेवा वा न देवाराधने कौखन
कुटेबा में छलौं लागल तकर फल पाबि बैसल छी
दया स्वातीक घनमाला जकाँ अपनेक भूतल में
लगौने आस हम चातक जकां मुँह बाबि बैसल छी
कहू की अम्ब अपनेसँ फुरैये बात ने किछुओ
अपन अपराधसँ चुपकी लगा जी दाबि बैसल छी
करै यदि दोष बालक तँ न हो मन रोख माता कैं
अहीं विश्वास कैँ केवल हृदय में लाबि बैसल छी
एकर बहर अछि1222+1222+1222+1222 मने बहरे हजज
19) रेख्ती --एकरो सभ नियम गजले बला होइत छै खाली भाषा स्त्री
बला भऽ जाइत छै मने एहन भाषा जकरा दू या दूसँ बेसी स्त्री अपनामे बजैत हो।
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