खेत, आरि, रस्ता सभटा अहीं तँ छी
बेढ़ि चारूकात पड़ता अहीं तँ छी
ओकर इयाद आबैए घुरि घुरि
इयादक याद अगता अहीं तँ छी
भजार मोन पड़ैए, बिदा होइ छी
टूटल सपनाक झंझा अहीं तँ छी
भोरे उदासी उड़ियाइत जाइत
जे बुन्नी बुनिऐल छिच्चा अहीं तँ छी
खुशी छूटल हँसी छूटल जाइए
दुख-सुखक अकाल जा, अहीं तँ छी
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सोमवार, 26 सितंबर 2011
गजल
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गजल,
गजेन्द्र ठाकुर
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