सोमवार, 26 सितंबर 2011

गजल


टूटल मोन केँ हम बुझावैत रहि गेलौं।
एक मीसिया हँसी हम ताकैत रहि गेलौं।


फूलक मुस्की कैद छै काँटक महाजाल मे,
जाल सँ मुस्की केँ हम छोडाबैत रहि गेलौं।


सूरज केँ हँसी हरायल मेघ केँ ओट मे,
फूँकि के मेघ हम उधियाबैत रहि गेलौं।


निर्झर अछि शांत भेल पाथरक चोट सँ,
चोटक दाग मोन सँ मेटाबैत रहि गेलौं।



छिडियायल छै हँसी, "ओम"क वश नै चलै
हाथक सफाई हम देखाबैत रहि गेलौं।

3 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामी9/26/2011 2:30 pm

    बहुत अच्छा लिखे है भैया

    जवाब देंहटाएं
  2. भैया एक्साम पर भी ध्यान दीजिये

    जवाब देंहटाएं
  3. भैया राउंआ फुकी के उद्हियाबत रहि गेलाऔ ...अरी फूकि के मेघ हम उधीयैल देही

    जवाब देंहटाएं

तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों