बुधवार, 31 अक्टूबर 2012

गजल

गजल

नव नव रोग रोगीकेँ लगाबै रूप
मरलेकेँ जहर नेहक दऽ मारै रूप

कायाकेँ कहब दैबा तँ हर्जा कोन
लाशोकेँ तँ पल भरिमे जगाबै रूप

छै सब डूबल कर्जासँ सबहक संग
डूबेबो करै आ झट उबारै रूप


सालक बाद बनि जेतै महल खंडहर
देखू लोक सब सजि धजि सजाबै रूप

सदिखन मोनमे गप नीक आबै "अमित"
तैयो नेत डोलाबै फसाबै रूप

मफऊलातु
2221 तीन बेर
अमित मिश्र

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों