गजल
फेर आइ आँखिसँ नोर बहाबै छी
रहि रहि अहीकँ बात घुराबै छी
कतै छै सिनेह ई कोना हम कहूँ
चलि आउ एखनो कियै सताबै छी ।
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फेर आइ आँखिसँ नोर बहाबै छी
रहि रहि अहीकँ बात घुराबै छी
कतै छै सिनेह ई कोना हम कहूँ
चलि आउ एखनो कियै सताबै छी ।
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गेलौँ चलि कतौ हमरा बिसरिकँ
साँझेसँ अँहीँ लेल नोर खसाबै छी ।
देखूँ कानि कानि साँझसँ भोर भेलै
भोरे भोर हम मदिरा चढाबै छी ।
मदिरोसँ बढिकँ अँहीँ मे नशा ये
ओहि नशा लेल फेरसँ बजाबै छी ।
नीन्नोँ नै आबै जौँ सपनो मेँ देखतौँ
सुतबा ले कतै मोनकेँ मनाबै छी ।
हाथ जोडिकँ ई कहौँ हे भगवान
कियै नै अहाँ मुकुन्दसँ मिलाबै छी ।।
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 13
€€ "बाल मुकुन्द पाठक"
साँझेसँ अँहीँ लेल नोर खसाबै छी ।
देखूँ कानि कानि साँझसँ भोर भेलै
भोरे भोर हम मदिरा चढाबै छी ।
मदिरोसँ बढिकँ अँहीँ मे नशा ये
ओहि नशा लेल फेरसँ बजाबै छी ।
नीन्नोँ नै आबै जौँ सपनो मेँ देखतौँ
सुतबा ले कतै मोनकेँ मनाबै छी ।
हाथ जोडिकँ ई कहौँ हे भगवान
कियै नै अहाँ मुकुन्दसँ मिलाबै छी ।।
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 13
€€ "बाल मुकुन्द पाठक"
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