बाबूजीक करेजमे सदिखन रहलहुँ
हुनक तन मन धन सगरो हम पेएलहुँ
रौद पानि दाहीसँ सदिखन बचेलन्हि
सेबाक बेड़मे हम परदेश भगलहुँ
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
बाबूजीक करेजमे सदिखन रहलहुँ
हुनक तन मन धन सगरो हम पेएलहुँ
रौद पानि दाहीसँ सदिखन बचेलन्हि
सेबाक बेड़मे हम परदेश भगलहुँ
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें