गजल
अहाँक बिना कोना कऽ रहबै हम
चाँन जकाँ मुँह नै बिसरबै हम
बड़ दिनसँ प्यासल छी मिलनक
सिन्धुक गहराई मेँ डुबबै हम
अहाँ रुप केर भरल खजाना छी
तँए रुपक दीवाना बनबै हम
अछि मोरनी सन के चालि अहाँ के
अहाँक संगे नाँचि के देखबै हम
ई मोन कहै छै एक ना एक दिन
अहाँ सँ कतौ नै कतौ भेटबै हम
'मुकुन्द' पुछैत अछि हे मृगनैनी
कहि दिअ कनियाँ बनबै हम ।।
बाल मुकुन्द पाठक ।
अहाँक बिना कोना कऽ रहबै हम
चाँन जकाँ मुँह नै बिसरबै हम
बड़ दिनसँ प्यासल छी मिलनक
सिन्धुक गहराई मेँ डुबबै हम
अहाँ रुप केर भरल खजाना छी
तँए रुपक दीवाना बनबै हम
अछि मोरनी सन के चालि अहाँ के
अहाँक संगे नाँचि के देखबै हम
ई मोन कहै छै एक ना एक दिन
अहाँ सँ कतौ नै कतौ भेटबै हम
'मुकुन्द' पुछैत अछि हे मृगनैनी
कहि दिअ कनियाँ बनबै हम ।।
बाल मुकुन्द पाठक ।
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