बाल गजल-65
हम कखन धरि बैसल रहब
बाबाक लऽग बाझल रहब
भोरेसँ छी भेलै साँझ
पढ़बै कते जागल रहब
खेलब कखन दौड़ब कखन
भोजनसँ हम बारल रहब
बाबा कहथि बनि जो लोक
की बनब यदि बान्हल रहब
दौड़सँ ई देह स्वस्थ
अस्वस्थ यदि पौरल रहब
बाबा जखन जेथिन टहलऽ
पोथी समटि भागल रहब
मुस्तफइलुन-मफऊलात
2212-2221
बहरे-मुन्सरह
अमित मिश्र
हम कखन धरि बैसल रहब
बाबाक लऽग बाझल रहब
भोरेसँ छी भेलै साँझ
पढ़बै कते जागल रहब
खेलब कखन दौड़ब कखन
भोजनसँ हम बारल रहब
बाबा कहथि बनि जो लोक
की बनब यदि बान्हल रहब
दौड़सँ ई देह स्वस्थ
अस्वस्थ यदि पौरल रहब
बाबा जखन जेथिन टहलऽ
पोथी समटि भागल रहब
मुस्तफइलुन-मफऊलात
2212-2221
बहरे-मुन्सरह
अमित मिश्र
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