खण्ड--4
रदीफ--रदीफ मतला बला शेरक दूनू पाँतिक ओहि अन्तिम हिस्साके कहल
जाइत छैक जे दूनू पाँतिमे समान रूपें बिना हेड़-फेरके आबए। गजल रदीफ संगे सेहो भऽ सकैए
आ बिना रदीफक सेहो। मतलामे देल गेल उदाहरण बला शेरके देखू एहिमे “कोना “समान रुपसँ
दूनू पाँतिमे अछि अर्थात ई भेल रदीफ। ई रदीफ गजलक हरेक शेरक हरेक दोसर पाँतिमे (मतला
बला शेरकेँ छोड़ि) अनिवार्य रुपें अएबाक चाही (जइ गजलमे रदीफक प्रयोग भेल छै)। ओमप्रकाश
जीक एकटा आर दोसर मतलाकेँ देखू
नैनक छुरी नै चलाबू यै सजनियाँ
कोना कऽ जीयब बताबू यै सजनियाँ
एहि शेरमे “यै सजनियाँ” रदीफ अछि से स्पष्ट अछि। पूरा गजलमे
रदीफ एकै होइत छैक।
रदीफ अक्षरसः एकै समान हो मुदा अर्थ अलग-अलग भए सकैत छै, जेना
जेना मतलामे “सार “रदीफ छै तँ ई जरूरी नै जे एकै अर्थ लेल जाए। एकटा “सार “केर अर्थ
संबंधवाची भए सकैए तँ दोसर “सार” केर मतलब संक्षेपण सेहो। रदीफक दोष जँ मतलाक बाद बला
कोनो शेरक पहिल पाँतिमे (जे बिना काफियाक हो) रदीफ वा रदीफक कोनो भाग अबै छै तँ ई दोष
मानल जाइ छै आ एकरा “तकाबुल-ए-रदीफ “कहल जाइत छै। जेना एकटा गजलक उदारहण लिअ (ई गजल
हमर लिखल अछि)
गजल
हमरा दया आ दुआ दुन्नू चाही
भगवान संगे खुदा दुन्नू चाही
सभ ठीक छै ठीक छै सभ ठीके छै
कुटियासँ कटिया पता दुन्नू चाही
नेता तँ अछि नीक मिश्रण संसारक
सज्जन मुदा बेठुआ दुन्नू चाही
ऐ क्रांतिमे जोश अनुभव सभ चाही
तँइ बूढ़ संगे युवा दुन्नू चाही
शुभकामना अछि अहाँकेँ सुख सागर
हमरा सजा आ मजा दुन्नू चाही
भौजी जँ हारथि तँ भैयाजी आबथि
हुनका तँ घर आ जथा दुन्नू चाही
ऐ गजलमे रदीफ छै “दुन्नू चाही “आ काफिया छै “आ “स्वर। आब ऐ गजलक
चारिम शेरक पहिल पाँति देखू” ऐ क्रांतिमे जोश अनुभव सभ चाही” ऐ पाँतिक अंतमे रदीफक
अंतिम भाग “चाही” दोहरा देल गेल छै। आ अरूजी सभ एकरे तकाबुल-ए-रदीफ दोष कहै छथि। ऐ
दोषसँ बचबाक उपाय इएह छै जे या तँ ओहि पाँतिमे रदीफक प्रयोग नै करी या नै तँ ओहिसँ
पहिने काफिया दए ओकरा हुस्ने-मतला बना ली। जँ रदीफ नमहर छै तँ ओहिमहँक किछु भाग आन
शेरक पहिल पाँतिमे आबि सकैए। आब कने दोष युक्त चारिम शेर के एना देखू--
ऐ क्रांतिमे जोश अनुभव सभ लागत
तँइ बूढ़ संगे युवा दुन्नू चाही
मने “चाही “हटि गेलै पहिल पाँतिसँ आ ओकरा बदलामे “लागत” आबि
गेलै। आ एना केलासँ ई दोष हटि गेलै।
एकटा आर महत्वपू्र्ण गप्प केखनो काल कए एहन शब्द आबि जाएत जे
रहत तँ एकैटा शब्द (मूल शब्द सेहो भए सकैए, सन्धि बला शब्द सेहो भए सकैए सङ्गे-सङ्ग
प्रत्यय वा उपसर्ग बला शब्द सेहो भए सकैए) मुदा ओहि शब्दमे काफिया आ रदीफ दूनू रहत।
जँ एहन शब्द आबए तँ ओ एकै सङ्ग काफिया आ रदीफ लेल प्रयोग भए सकैए। जेना कि विजय नाथ
झा जीक लिखल एकटा गजलक उदाहरण देखू--
हमर नाम परिचय पता लापता सन
बनल भार बहिया नियम व्रत प्रथा सन
केहन की नियोगी वियोगक बहुलता
रथी सारथी पथ पतन रति यथा सन
बहल संग लागल कठिन कहि तपस्या
बनू जड़ सुखक लेल करिऔ शिवासन
आब जँ अहाँ ऐ गजलक मतलाकेँ देखबै तँ पता चलत जे रदीफ “सन “अछि
आ काफिया “आ “केर मात्रा अछि। आब एही गजलक
तेसर शेरक दोसर पाँति देखू अंतमे शब्द छै “शिवासन “, ऐ शब्दकेँ अंतसँ देखलापर पता लागत
जे अन्तिम भाग “सन “छै आ ताहिसँ पहिने “व” वर्णमे “आ “केर मात्रा छै आ ई शब्द एकै सङ्ग
काफिया आ रदीफक शर्त पूरा करैए तँए ई ठीक अछि आ गजलमे ई मान्य अछि। ऐ प्रकारक रदीफकेँ
“तहलीली रदीफ” कहल जाइत छै। किछु लोकक हिसाबसँ ई दोष भेल, मुदा अधिकांश शाइर एहन काफिया
प्रयोग करै छथि।। ओना तँ ई नियम अरबीकेँ छै मुदा मैथिलीमे विभक्ति शब्दमे सटि जाइत
छै तँए मैथिली गजल लेल ई नियम बड्ड महत्वपूर्ण अछि। आ एकर विस्तारसँ वर्णन विभक्ति
बला खण्डमे कएल जाएत।
मैथिलीमे तहलीली रदीफक महत्व एहि द्वारें सेहो अछि।तँए मैथिलीमे
काफिया निर्धारण धेआनसँ करए पड़त आ एकर विस्तृत विवरण काफिया बला प्रकरणमे भेटत।
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