सोमवार, 29 अगस्त 2011

गजलक संक्षिप्त परिचय भाग-8

खण्ड-8

आब कने मात्रा बला काफिया पर विचार करी। मैथिली वर्णमालामे 14 गोट स्वर देखाओल गेल अछि। अ, आ, इ, ई उ, ऋ, ॠ, लृ,(आ लृक आर एकटा दीर्घ रूप) ऊ, ए, ऐ, ओ, एवं औ। जाहिमे “अ” तँ हरेक वर्णक (जाहिमे हलन्त् नहि लागल होइक)मे अंतमे अबिते छैक। अन्य चारि गोट स्वर (ऋ,ॠ, लृ आ लृक आर एकटा दीर्घ रूप) खाली तत्सम शब्दमे अबैत छैक। बचल दस गोट स्वर आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, एवं औ (एकर लेख रूप क्रमशःा, ि, ी, ु, ू, े, ै, ो एवं ौ अछि) ।संगे-संग हम मैथिलीमे रेफ बला काफिया पर सेहो बिचार करब। मतलब जे एहिठाम हम कुल दस गोट मात्रा पर बिचार करब। मुदा एहि दसोमे “इ”, “उ” आ रेफ पर बिचार हम बादमे करब। एकर कारण जे मैथिलीमे एहि तीनूक उच्चारण कने अलग ढंगसँ होइत अछि। तँ चली मात्रा बला काफिया पर। मतलामे रदीफसँ पहिने जँ वर्णमे कोनो मात्रा छैक। तँ गजलक हरेक शेरक काफिया मे वएह मात्रा अएबाक चाही चाहे ओहि मात्राक संग बला वर्ण दोसरे किएक ने हो।

पूब मे उगल ललका थारी तऽ देखू
दूइभक घर चमा चम मोती तऽ देखू
(अमित मिश्र)

ऐ गजलमे लेल गेल आन काफिया सभ अछि--किलकारी, बेमारी, पारी, साड़ी आ तरकारी। ऐठाम ई धेआन देबए बला बात अछि जे मतलामे जे काफिया प्रयोग भेल छै तकर अंतमे “ई “केर मात्रा छै वर्ण मुदा अलग-अलग छै मुदा ओहिसँ पहिने बला स्वर नै मीलि रहल छै एकर मतलब ई भेल जे मात्रा बला काफिया लेल शब्दक अंतमे जे मात्रा छै सएह आन शब्दक अंतमे अएबाक चाही बशर्ते की वर्ण अलग-अलग हो । आब ऐठाम ई देखू जे जँ मतलामे “थारी “क संग साड़ी रहितै तखन आन काफियामे “ड़ी” वा “री” कामन रहितै आ ताहिसँ पहिने “आ” केर स्वरसाम्य रहितै। जेना “बाड़ी “, उधारी, अधकपारी इत्यादि। जँ “थारी “आ “बाड़ी” केर बाद “मोती “शब्दक काफिया लै छी तँ सिनाद दोष आबि जाएत आ काफिया गलत भए जाएत। तेनाहिते जँ कोनो मतलामे “मोती “आ कोठी” काफिया लेबै तखन साड़ी, उधारी आदि काफिया भए सकैए। कोना से आब अहाँ सभ नीक जकाँ बुझि गेल हेबै। एखन हमरा लोकनि “ई “मात्राक उदाहरण देखलहुँ। ऐठाम ई मोन राखू जे “दीर्घ इ “मने “ई “अपन शुद्ध रूपमे सेहो आबि सकैए शुद्ध रूप मने वर्णक रूपमे जेना की

जे गलत छै ओ सही छै
हुनक गप्पे सन तँ ई छै

आब ऐ शेरकेँ देखू जे ऐमे “छै” रदीफ भेल आ पहिल पाँतिमे काफिया “ह” वर्णपर “ई” केर मात्रा अछि मुदा दोसर पाँतिमे “ई” अपन वर्णक रूपमे अछि मने शुद्ध रूपमे अछि। शाइर एनाहुतो काफिया बना सकैत छथि। ई नियम पूर्णतः उच्चारण सम्मत छै। मुदा ऐठाँ ई मोन राखू जे एहन सुविधा “ह्रस्व इ “लेल नै अछि। मने “ह्रस्व इ “अपन वर्णक रूपमे काफिया नै बनि सकैए। जाहि-जाहि वर्णक शुद्ध रूप काफिया बनि सकैए तकर वर्णन ओही मात्राक उदाहरणक सङ्ग देल जा रहल अछि।
ऐ नियम सभहँक अधार पर हमर प्रकाशित पोथी “अनचिन्हार आखर “केर बहुत रास काफिया गलत अछि। मुदा ओहि समय हमरा लग काफिया जतेक समझ छल ओहि हिसाबसँ ओकर प्रयोग कएल। आ तँए ओहि पोथी महँक किछु काफियाक नियम आब पूर्णतः बेकार भए चुकल अछि। संगे संग ईहो धेआन राखू जे आन मात्रा बला कफिया लेल एहने नियम रहत।
एकटा गलत उदाहरण देबासँ हम अपनाकेँ रोकि नै रहल छी। ई शेर हमरे थिक--

एनाइ जँ अहाँक सूनी हम
नहुँएसँ सपना बूनी हम”

(काफिया “ई” क मात्रा)
एहि गजलक अन्य काफिया अछि “चूमी”, “पूछी”, “बूझी”, “खूनी”,,” लूटी”, “सूती” आदि। आब ऐ शेरमे देखू दूनू पाँतिक काफियामे “नी “छै आ ताहि हिसाबसँ हमरा हमरा एहन काफिया चुनबाक छल जकर अंतमे “नी “अबैत हो आ ताहिसँ पहिने “ऊ “केर मात्रा हो। ऐ शेरमे “ऊ “केर मात्रा तँ लेल गेल अछि मुदा “नी “केर पालन नै भेल अछि तँए ऐ गजल महँक एकटा काफिया “खूनी “छोड़ि आन सभ (जेना चूमी”, “पूछी”, “बूझी ““लूटी”, “सूती” ) आदि गलत अछि। अन्य बचल मात्राक लेल एहने समान नियम अछि आ हरेक मात्राक एक-एकटा उदाहरण देल जा रहल अछि। (ऐ ठाम ई मोन राखू जे उर्दूक किछु घराना ऐ नियमकेँ तोड़बाक ओकालति करै छथि। हुनक कहब छन्हि जे अंतमे मात्रा आबि रहल छै वर्णक कोन काज। मुदा हमरा हिसाबें मूल नियम ठीक अछि।)

1) छोड़ि कऽ जे बिनु बजने जा रहल अछि
हृदै चिरैत आगि सुनगा रहल अछि

(काफिया “आ” केर मात्रा)
(गजेन्द्र ठाकुर)
ऐ गजल आन काफिया सभ अछि--कना, भसिया, जा, खा इत्यादि।
मैथिलीमे “आ” वर्ण केर शुद्ध रूपमे काफिया बनि सकैए।

2) “जँ तोड़ब सप्पत तँ जानू अहाँ
फाँसिए लगा मरब मानू अहाँ”

(काफिया “ऊ” क मात्रा)
(आशीष अनचिन्हार, सरल वार्णिक)
एहि गजलमे लेल गेल अन्य कफिया  “गानू”, “आनू”, “टानू” आदि।
मैथिलीमे “ऊ “वर्ण केर शुद्ध रूपमे काफिया बनि सकैए।

3) “मोन तंग करबे करतै
देह भाषा पढबे करतै”

(काफिया “ए” क मात्रा)
एहि गजलमे लेल गेल अन्य कफिया “खुजबे”, “उड़बे”, “सटबे” आदि अछि।
“ए” वर्ण केर शुद्ध रूपमे काफिया बनि तँ सकैए मुदा ओतेक प्रभावी नै हएत कारण मैथिलीमे शब्दक अंत बला “ए” केर उच्चारण अपूर्ण होत छै। मोन राखू मात्रा बला उच्चारण पूरा होइत छै।

4) भोरे उठि मैदान गेलै बौआ
ओम्हरहिसँ दतमनि तँ लेतै बौआ

(आशीष अनचिन्हार)
(काफिया “ऐ” क मात्रा)
ऐ गजलक आन काफिया सभ अछि--एतै, जेतै, बनतै, चलतै आदि-आदि।
ऐ केर मात्राक एकटा आर उदाहरण देखू

करबै नै मजूरी माँ पढबै हमहूँ
नै रहबै कतौ पाछू बढबै हमहूँ

(ओमप्रकाश)
ऐ गजलमे लेल गेल आन काफिया अछि--चढ़बै, मढ़बै, गढ़बै आदि-आदि। मैथिलीमे “ऐ “वर्णक काफिया शुद्ध रूपमे बनि सकैए।
केखनो काल “ऐ” केर उच्चारण “अइ” जकाँ होइत अछि। जेना “सैतान” बदलामे सइतान, बैमानक बदलामे “बइमान” इत्यादि।

5) “आब हरजाइकेँ तों बिसरि जो रे बौआ
मोन ने पड़ौ एहन सप्पत खो रे बौआ

(काफिया “ओ” क मात्रा)
(आशीष अनचिन्हार, सरल वार्णिक)
एहि गजलमे लेल गेल अन्य कफिया--ओ, खसो, पड़ो इत्यादि अछि। मैथिलीमे “ओ “वर्णक काफिया शुद्ध रूपमे बनि सकैए।

6) “एक बेर फेर हँसिऔ कनेक
ओही नजरिसँ देखिऔ कनेक”

(काफिया “औ” क मात्रा)
(आशीष अनचिन्हार, सरल वार्णिक)
एहि गजलमे लेल गेल अन्य कफिया --” रहिऔ”, “चलिऔ”, “बुझबिऔ” आदि अछि।
मैथिलीमे “औ “वर्णक काफिया शुद्ध रूपमे बनि सकैए। बशर्ते की जखन “यौ “केर बदलामे “औ” केर प्रयोग हो तखन।
**** केखनो काल “औ” केर उच्चारण “अउ” जकाँ होइत अछि।
ऐठाम ईहो मोन राखू जे जँ कोनो मात्रापर अनुस्वार वा चंद्रबिंदु छै तँ ओकर पालन हेबाक चाही। जेना मतलामे “चुँइयाँ “एवं “घुँइयाँ” केर बाद कोनो शेरमे “बुइया “काफिया नै आबि सकैए । तेनाहिते कोनो मतलामे “चुँइयाँ “एवं “बुइया “काफिया नै बनि सकैए । तेनाहिते “बुइया “एवं “रूइया “(मतलामे) केर बाद “चुँइयाँ “काफिया नै आबि सकैए।

आब हमरा लोकनि फेरसँ एकबेर संयुक्ताक्षर बला शब्दपर चली। मात्रा बला संयुक्ताक्षर लेल पहिनेसँ कने अलग ढ़गसँ देखू। ई गप्प उदाहरणसँ बेसी फड़िच्छ हएत। मानू जे मतलाक पहिल पाँतिमे काफियाक रूपमे “चुट्टी” शब्द लेल गेल। आब दोसर काफिया लेल मोन राखू जे “ई” मात्रा युक्त कोनो शब्द भए सकैत अछि। उदाहरण लेल “चिन्नी”, “बुच्ची”, “खटनी “आदि “चुट्टी” क काफिया भए सकैत अछि। मुदा जँ मतलाक काफिया “मुट्ठी” आ “घुट्ठी” छैक तखन आन शेरक काफिया “चिन्नी” या “बुच्ची” नहि भए सकैत अछि। कारण तँ अहाँ सभ बुझिए गेल हेबै। उम्मेद अछि जे उपर देल गेल मात्रा बला उदाहरणसँ काफिया संबंधी नियम बेसी फड़िच्छ भेल हएत।

1 टिप्पणी:

तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों