गजल सुख जिनगीक गजल दर्द जिनगीक
रहए ठाढ़ अविचल गजल मर्द जिनगीक
अँहा हिमालयक भाए छी वा कैलाशक जन्मल
बनि गेल आगिक गोला गजल सर्द जिनगीक
देखए मे तँ हेतैक लाजो के लाज तेहने सन
देखाएत अंग-अंग गजल बेपर्द जिनगीक
अनचिन्हार साकी दए रहल गजलक हाला
बनल छैक दबाइ गजल बेदर्द जिनगीक
इ तँ साफ करबे करत कोने-कोन मे जा कए
देखू कोना पसरल छै गजल गर्द जिनगीक
**** वर्ण---------18*******
लोक भाषा के प्रति आप का समर्पण वन्दनीय है
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