खण्ड-7
मात्रा बला काफिया पर विचार करबासँ पहिने कनेक फेरसँ तहलीली
रदीफ आ मैथिली विभक्ति पर विचार करी। कारण जे मैथिली विभक्ति मूल शब्दमे सटि जाइत छैक।
आ तँए ओ केखन काफियाक रूप लेत आ केखन रदीफक से बुझनाइ परम जरूरी।
विभक्ति- मैथिलीमे विभक्ति चिन्ह समान्यतः पाँच गोट अछि।
1) कर्म- केँ (कें केर प्रयोग हिन्दीक “को” लेल कैल जाइत अछि।
उदाहरण लेल रामकेँ आम पठा दियौन्ह)
2) करण- एँ /सँ
3) अपादान-सँ
4) सम्बन्ध- क/के /केर /केरि
(क/के /केर /केरि सभहँक प्रयोग हिन्दीक
का, के, की लेल कएल जाइत अछि। ऐठाम धेआन राखू
जे विकारी युक्त या एफास्ट्राफी बला “क” केर प्रयोग हिंदीक “कर” लेल उपयोग कएल जाइत छै । उदाहरण लेल- ई काज हम कऽ चुकल छी। या ई काज हम क’ रहल छी।
नोट--हिंदीक “के” लेल आएल “कऽ” शब्दसँ हटा कऽ लिखबाक परिपाटी
अछि। तेनाहिते “के”, “केर”, “केरि” सेहो हटा कऽ लिखल जाइत छै।
5) अधिकरण- मे /पर
एहिकेँ अतिरिक्त विद्वान लोकनि कर्ताक चिन्हकेँ सुन्नाकेँ रूपमे
लैत छथि। ई पाँचो चिन्ह मूल शब्दमे सटि जाइत छैक(किछु लोक जे कि मैथिलीकेँ हिन्दीक
उपबोली बनेबापर लागल अछि से विभक्तिकेँ मूल शब्दसँ हटा कए लिखै छथि, संख्या आ अंग्रेजी शब्दसँ विभक्ति हटा कऽ लिखल जाए कारण संख्या
कोनो शब्द नै छै आ अंग्रेजी शब्द विजातीय भेने विभक्तिसँ सटि अर्थक अनर्थ कऽ सकैए,
हँ संख्यावाची शब्द आ देवनागरी वा तिरहुता लिपिमे लिखल अंग्रेजी शब्दमे विभक्ति सटा
कऽ लीखू)। आ एहि पाँचोमेँसँ “एँ” चिन्ह मूल शब्दक ध्वनि बदलि दैत छैक। उदाहरण लेल देखू
“बाट” शब्दमे “एँ” चिन्ह सटने “बाटेँ” होइत छैक। “हाथ” शब्दमे सटने “हाथेँ” इत्यादि।
आब कने ई विचारी जे जँ कोनो शाइर एहन शब्द, जाहिमे विभक्ति सटल होइक जँ ओकर काफिया
बनेता तँ की हेतै। एहि लेल किछु एहन शब्द ली जाहिमे विभक्ति सटल होइक। उदाहरण लेल मूल
शब्द विभक्तिसँ सटल शब्द--
हाथ- हाथक /हाथेँ/ हाथसँ/ हाथमे/ हाथकेँ
फूल- फूलक /फूलसँ /फूलेँ
संग- संगमे /संगेँ
राति- रातिसँ /रातिमे
एहि विवरणकेँ हमरा लोकनि दू भागमे बाँटि सकै छी--
1) एहन मूल शब्द जे अंतसँ अकारान्त हुअए, आ
2) एहन मूल शब्द जकर अंतमे मात्राक प्रयोग होइक
1) आब जँ कोनो शाइर एहन मूल शब्द जे अकारान्त छैक आ ओहिमे विभक्ति
लागल छैक तकरा काफिया बनबै छथि तँ हुनका ई मोन राखए पड़तन्हि जे बादमे आबए बला हरेक
आन-आन काफियामे वएह विभक्ति कोनो आन मूल शब्दमे आबै जे अकारान्त होइक संगहि-संग स्वरसाम्य
सेहो रखैत हो उदाहरण लेल मानू जे केओ मूल “हाथ” शब्दमे “क” विभक्ति जोड़ि “हाथक” काफिया
बनेलक। दोसर आन-आन काफिया लेल ई मोन राखू जे आबए बला ओहि काफियाक अंतमे “क” विभक्ति
तँ एबै करतै, मुदा विभक्ति “क”सँ ठीक पहिने अकारान्त वर्ण एवं स्वरसाम्य होएबाक चाही
जेना की मानू “बात” शब्दमे विभक्ति “क” जुटला पर “बातक” शब्द बनैत अछि। आब पहिल काफिया
“हाथक” आ दोसर काफिया “बातक” मिलान करू (काफियाक मिलान सदिखन शब्दक अंतसँ कएल जाइत
छैक)। देखू पहिल काफिया “हाथक” आ दोसर काफिया “बातक” दूनूक अंतमे विभक्ति “क” अछि संगहि-संग
विभक्ति “क” केर बाद दूनू काफियाक शब्द “थ” आ “त” अकारान्त अछि संगहि-संग “हा” केर
स्वरसाम्य “बा”सँ छैक। आब फेर तेसर शब्द “पात” लिअ आ जँ ओहिमे “क” विभक्ति जोड़बै तँ
“पातक” शब्द बनतै। आब पहिल काफिया “हाथक” आ दोसर काफिया “पातक” मिलान करू । देखू अंतसँ
दूनू शब्दमे “क” विभक्ति छैक आ ठीक ओहिसँ पहिने दूनू शब्द अकारान्त छैक आ संगहि-संग
“हा” के स्वरसाम्य “पा”सँ छैक।एनाहिते दोसर उदाहरण देखू--मूल शब्द “पात” विभक्ति “मे”
जुटला पर “पातमे” शब्द बनैत अछि। फेर दोसर शब्द “बाट” विभक्ति “मे” जुटला पर “बाटमे”
। आब फेरसँ मिलान करू दूनू शब्दक अंतमे विभक्ति “मे” लागल छैक । विभक्ति “मे”सँ ठीक
पहिने अकारान्त वर्ण सेहो छैक संगहि-संग “पा” केर स्वरसाम्य “बा”सँ छैक। किछु आर उदाहरण
लिअ “कलमसँ” “पतनसँ”, “बापकेँ” “आबकेँ” इत्यादि। मुदा ऐठाम ई बात सदिखन
धेआन राखू जे जँ कोनो शाइर लेखनमे हिन्दीक प्रभावसँ मूल शब्दमे विभक्ति नै सटबै
छथि से गलत करै छथि कारण मूल शब्दमे विभक्तिकेँ सटब मैथिलीक बहुत रास मुख्य विशेषतामेसँ
एकटा अछि। तँए चाहे गजल लिखू, कविता लिखू वा कथा, आलोचना वा किछु लिखू मैथिलीमे विभक्ति
मूल शब्दमे सटल रहबाक चाही। ऐठाम बात गजल लेल चलि रहल अछि तँ एकरा एना बूझी कोनो मतलामे
“कलमसँ “आ “पतनसँ “काफिया बनि सकैए मुदा मतलामे “कलम सँ “आ “पतन सँ “काफिया नै बनि सकैए।
तेनाहिते “आँखिसँ” आ चाँकिसँ “काफिया सेहो ठीक रहत मुदा “आँखि सँ” आ चाँकि सँ “नै ।
2) एहन मूल शब्द जकर अंतमे मात्रा होइक ओकर काफिया लेल धेआन
राखू जे विभक्ति के बाद ठीक वएह मात्रा स्वरसाम्यक संग एबाक चाही। उदारहरण लेल--
आँखिसँ, चाँकिसँ, बाँहिसँ, इत्यादि
रातिमे, जातिमे, जाठिमे, इत्यादि
घुटठीकेँ, गुड्डीकेँ, चुट्टीकेँ, इत्यादि
पानिक, आनिक, इत्यादि
केखनो काल दूटा विभक्ति एकै संग जुटि जाइत छैक एहन समयमे अहाँकेँ
दोसरो काफिया ओहने लेबए पड़त जाहिमे दूनू विभक्त समान होइक स्वरसाम्यक संगे।विभक्ति
बला काफियाक संबंधमे एकटा आर खास गप्प। कोनो एहन मूल शब्द जकर अंत कोनो एकटा खास विभक्तिसँ
साम्य रखैत हो, विभक्तिसँ पहिने बला वर्ण अकारान्त वा मात्रा युक्त (जेहन स्थिति) हो
संगहि-संग ओहिसँ पहिने स्वरसाम्य हो तँ ओ दूनू काफियाक रूपमे लेल जा सकैए। उदाहरण लेल
एकटा विभक्ति बला शब्द “पातक” वा “बाटक” लिअ। आ आब एहन मूल शब्द ताकू जकर अंतमे “क”
होइ, “क”सँ पहिने अकारान्त वर्ण होइक (जँ अकारान्त वर्णसँ पहिने स्वरसाम्य होइ तँ आरो
नीक) तँ ओ दूनू (एकटा विभक्ति युक्त आ दोसर मूल) शब्द काफिया भए सकैत अछि। उदाहरण लेल
उपर लेल दूनू विभक्त युक्त शब्द “पातक” आ “बाटक” के मूल शब्द “बालक” पालक” वा “चालक”सँ
मिलाउ। जँ गौरसँ देखबै तँ पता लागत जे ई शब्द सभ काफिया लेल एकदम्म उपयुक्त अछि। तेनाहिते
मात्रा बला शब्द जाहिमे विभक्ति सटल हो आ ओहन मूल शब्द जे ओकरासँ मिलैत हो एक-दोसराक
काफिया बनि सकैत अछि। आब कने ऐठाँ ई विचारि ली जे जँ कोनो शेरक अंतिम शब्द सभमे विभक्ति
सटल छै तँ कोन रदीफ हेतै आ कोन रदीफ नै हेतै। जेना की शुरूमे रदीफ प्रकरणमे विजय नाथ
झा जीक गजलक (तहलीली रदीफ) उदाहरण देने छलहुँ तकरा मोन पाड़ू (हलाँकि विजय नाथ झा जी
बला शब्द सन्धिक कारणें अछि मुदा ऐठाम विभक्ति सटबाक कारणें)। तकरा बाद ई देखू जे विभक्ति
हटेलाक बाद काफिया बनै छै की नै। जँ विभक्ति हटेला बाद काफिया बनि रहल छै तखन ओकरा
रदीफ युक्त शेर वा गजल मानू। आ जँ विभक्ति हटेलाक बाद काफिया नै बनि रहल छै तखन ओकरा
बिना रदीफक शेर वा गजल मानू। उदाहरण लेल—
पसरल छै शोणित सगरो बाटपर
घर आँगन बाड़ी झाड़ी घाटपर
एहि गजलक आन अन्तिम शब्द अछि “हाटपर”, “खाटपर”, “टाटपर” । देखू
एहि सभमे अंतसँ विभक्ति “पर “सेहो छै एवं विभक्ति हटेलाक बादो “आ “स्वरक संग “ट “वर्णक काफिया बनि रहल छै । तँए
एकरा रदीफ युक्त शेर मानल जाएत।मुदा जँ कोनो शेरक पहिल पाँतिमे “कलमसँ” आ दोसर पाँतिमे
“पतनसँ” काफिया लेल गेल छै तखन ई बिना रदीफक गजल मानल जाएत कारण विभक्ति हटेलाक बाद
“कलम “आ “पतन” एक दोसराक काफिया नै बनैए। आब ई देखू जे जँ विभक्ति बला शब्द पाँतिक बीचमे एतै तँ ओकर की व्यवस्था हेबाक चाही
आ ऐ लेल एकटा उदाहरण देखू--
हमरा संगमे आम छै
हमरा हाथमे आम छै
ऐ शेरकेँ नीकसँ देखबै तँ पता लागत जे “मे आम छै” दूनू पाँतिमे
उभय (कामन) छै तँए ई रदीफ भेल मुदा ऐ ठाम हमरा सभकेँ ऐ नियमक मैथिलीकरण करऽ पड़त। आ
ई नियम मनमाना नै बल्कि भाषायी मजबूरी अछि (उर्दूमे सहो एहने समझौता करए पड़ल छै तकर
विवरण आगू भेटत)। तँए ऐ शेरमे “संगमे” आ “हाथमे” काफिया भेल आ “आम छै” रदीफ। एहन नियम
मात्र विभक्तिए बलामे आबि सकैए। एक तरहें एकरा नियममे छूट वा ढ़िलाइ सेहो बुझि सकै
छिऐ।
ऐठाम दू टा गप्प बेसी जरूरी जेना कि उपरे कहने छी विभक्ति सटेनाइ
मैथिलीक मूल थिक तँए सभ विधामे विभक्ति सटाउ, एहन नै जे खाली गजलक काफियामे छूट लेबाक
हिसाबें विभक्ति सटा देलहुँ आ आन विधामे हटा देलहुँ आ दोसर गप्प जे ई छूट वा ढ़िलाइ
मात्र विभक्तिए बला अक्षर लेल अछि। मैथिली बहुत संभावना भरल भाषा छै आ ऐमे काफियाक
ढ़ेरी लागल अछि तँए एहन दुविधा बला शेर कम्मे हेबाक चाही। ओना ई संभावना बेसी अछि जे
भविष्यमे ऐ नियमक दुरुपयोग होबए लागत।
आन सभ विभक्तिमे तँ दिक्कत नै मुदा “कर्म” ओ “सम्बन्ध” बलाके
गौरसँ देखू। “कर्म कारक” चिन्ह अछि “केँ” आ “सम्बन्ध कारक” क चारिटामेसँ एकटा “के”
सेहो अछि। बस एहीठाम धेआन रखबाक छै। जैठाम कोनो सम्बन्ध देखाओल गेल हो ततए चारिटामेसँ
एकटा “के” सेहो आबि सकैए। उदाहरण लेल--
1) राम के घरमे चोरी भेलनि,
2) रामक घरमे चोरी भेलनि
ई दूनू वाक्य सही अछि कारण दूनू वाक्यसँ कर्मक सम्बन्धक पता
चलै छै।
मुदा जँ हम पहिल वाक्यके एना लीखी--
1) रामकेँ घरमे चोरी भेलनि
तँ ई गलत हएत। आशा अछि जे किछु गप्प फड़िच्छ भेल हएत।
विशेष टिप्पणी-- उच्चारणमे केखनो काल “कर्म कारक” क चिन्ह “केँ” आ “सम्बन्ध कारक” चिन्ह “के” दूनूक
अंतर खत्म भऽ जाइत छै। मुदा लिखित रूपमे मानकताक लेल ई अंतर राखल गेल छै। संगहि-संग
ईहो स्पष्ट करब जरूरी जे “सँ” विभक्तिकेँ लघुमे सटा कऽ लिखलापर एकटा दीर्घ सेहो मानि
सकै छी आ दू टा लघु सेहो। जेना “रामसँ” एकरा 22 सेहो मानि सकै छी आ 211 सेहो।
बहुत आदमी नासिकताक कारणे “जँ”, “सँ”, “तँ” आदिक रेघेनाइकेँ
दीर्घ मानै छथि मुदा ई गलत अछि। जँ रेघेनाइए टा कसौटी छै तखन तँ कोनो शब्द दीर्घ भऽ
सकै छी- कियो “स” केर उच्चारण सेहो रेघा कऽ कहता जे ई दीर्घ छै। एहन बहुत उदाहरण भेटि
जाएत। तँइ हम ऐ प्रकारक बहसकेँ वितंडा बूझै छी। सोझ रूपें बुझू जे लघु वर्ण उपर जँ
चंद्रबिंदु छै तँ लघुए रहत।
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