अँही साकी अँही छी पैमाना,
हम कतय जाइछी आब मैखाना।
जहिया सँ देखलहुँ अँहाके हम,
भ'गेलहुँ हम अहीँक दीवाना।
अहाँ ताकी त हमरा लगइऐ,
हमरा खातिर खुजल अछि मैखाना।
हमरा बुद्धियार सभ चेताबैत छथि,
जरि जेबैँ कियै बनल छै परवाना।
जान पहिचान अहाँ सँ की भेल,
भेल जग अनचिन्हार अनजाना।
सदरे आलम "गौहर"
व्याख्याता-एस॰ एम॰ जे॰ कॉलेज खाजेडीह
ग्राम+पो॰-पुरसौलिया,मधुबनी (847226)बिहार
मो॰-09006326629
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मंगलवार, 2 अगस्त 2011
गजल
खोजबीनक कूट-शब्द:
गजल,
SADRE ALAM GAUHER
सदरे आलम ’गौहर’सदरे आलम "गौहर"
व्याख्याता:-एस.एम.जे.कालेज खाजेडीह, ग्राम पो:- पुरसौलिया.मधुबनी
दाम एतय सभ चीजक देब' पड़ै छै।
अधिकारक लेल झग्गड़ क'र' पड़ै छै।
गज भरि जमीन जौँ कौरव नहि देब' चाहै।
पाँडव के फेर लोहा लेब' पड़ै छै।
कर्बला केर खिस्सा त' दुनिया जानै छै।
धर्मक खातिर शीश कटाब' पड़ै छै।
झग्गड़ झँझट मानलौँ नीक नहि होइ छै मुदा।
जीब' खातिर ईहो क'र' पड़ै छै।
"गौहर" साधु ब'न' लए चाहैत अछि मुदा।
दुर्जन केँ जे पाठ पढ़ाब' पड़ै छै।
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