मंगलवार, 16 अगस्त 2011

गजलक संक्षिप्त परिचय भाग-5

खण्ड-5
(खण्ड 5सँ 12 धरि काफियाक विवरण अछि, जाहिमे खंड 5 ओ 6 केर अधिकांश तथ्य विदेह मैथिली मानक भाषा आ मैथिली भाषा संपादन पाठ्यक्रम (भाषापाक)सँ लेल गेल अछि जकरा विदेह पोथीसँ डाउनलोड कएल जा सकैए)
काफिया--काफिया मने स्वर साम्य युक्त तुकान्त चाहे ओ वर्णक स्वरसाम्य हो की मात्राक स्वरसाम्य। रदीफसँ पहिने जे स्वर साम्य युक्त तुकान्त होइत छैक तकरा काफिया कहल जाइत छैक। आ ई रदीफे जकाँ गजलक हरेक शेरक (मतला बला शेरकेँ छोड़ि) दोसर पाँतिमे रदीफसँ पहिने अनिवार्य रुपें अएबाक चाही (जँ रदीफ छै गजलमे तँ नै तँ काफिया खाली)। काफिया दू प्रकारक होइत छैक (क) वर्णक स्वरसाम्य आ (ख) मात्राक स्वरसाम्य। वर्णक काफिया लेल शेरक हरेक पाँतिमे रदीफसँ पहिने समान वर्ण आ तकरासँ पहिने समान स्वरसाम्य होएबाक चाही। एकटा गप्प आर, बहुतों शाइर खाली रदीफक पहिने बला वर्ण वा मात्राकेँ काफिया बूझि लैत छथि से गलत। खाली रदीफक पहिने बला वर्ण वा मात्राकेँ तुकांत कहल जाइत छै। तुकान्त तीन प्रकारक होइत अछि  उत्तम, मध्यम आ अधम। गजल लेल उत्तम आ मध्यम तुकान्त प्रस्तावित अछि। अधम तुकान्त गजलमे वर्जित अछि। आब किछु उदाहरण देखी--
1) जमीन-अमीन, जमीन-पसीन, घर-डर, घर-बर, डगर-मगर, जीवन-तीमन आदि उत्तम प्रकारक तुकांत अछि।
2) जमीन-उरीन आदि मध्यम प्रकारक तुकांत अछि।
3) घर-नगर, घर-दूर, नगर-उर, घर-तीर आदि अधम प्रकारक तुकांत अछि।
ई जानब रोचक जे संस्कृतक काव्य लेल तुकांत वा अंत्यानुप्रास जरूरी नै छलै कारण अंत्यानुप्रास छन्दक नै अलंकारक भाग छल मुदा अरबीमे शुरूआतेसँ काफिया भेनाइ अनिवार्य छै। काफियाक निर्धारण काफिया लेल प्रयुक्त शब्दकेँ अन्तसँ बीच वा शुरू धरि कएल जा सकैए। उदाहरण देखू--

करेज घसैसँ साजक राग निखरै छै
बिना धुनने तुरक नै ताग निखरै छै

एहि शेरक पहिल पाँतिमे रदीफ “निखरै छै”  छैक। आ रदीफसँ ठीक पहिने “राग”  शब्द छैक। जँ अहाँ “राग”  शब्द पर धेआन देबै तँ पता लागत जे ऐ शब्दक अन्तिम वर्ण “ग”  छैक मुदा ऐ “ग”  संग “आ”  ध्वनि (रा) सेहो छैक। तहिना दोसर पाँतिमे रदीफ “ निखरै छै “सँ पहिने “ताग”  शब्द अछि। आब फेर अहाँ सभ “ताग”  शब्दकेँ देखू। ऐमे अन्तिम वर्ण “ग” तँ छैके संगहि-संग “आ”  ध्वनि (ता) सेहो छैक। मतलब जे उपरक शेरक दुनू पाँतिमे रदीफ “निखरै छै”सँ पहिने “ग” वर्ण अछि, “आ”  स्वर (ध्वनि)क संग। अर्थात “आ”  ध्वनि संगे “ग” वर्ण ऐ शेरक काफिया भेल। आब ऐठाम ई मोन राखू जे जँ उपरक ई दूनू शेर कोनो गजलक मतला छैक तँ ओइ गजलक हरेक शेरक कफिया “ग” वर्णक संग “आ” ध्वनि होएबाक चाही। अन्यथा ओ गजल गलत भए जाएत। आब ऐ गजलक दोसर शेरकेँ देखू--

इ दुनिया मेहनतिक गुलाम छै सदिखन
बहै घाम तखन सुतल भाग निखरै छै

ऐ शेरमे पहिल पाँतिमे ने रदीफ छैक आ ने काफिया मुदा दोसर पाँतिमे रदीफ सेहो छैक आ रदीफसँ पहिने शब्द “भाग” अछि। ऐ शब्दक अंतमे “ग” वर्ण तँ छैके संगहि-संग “ग”सँ पहिने “आ”  ध्वनि सेहो छैक। ऐ गजलक आन काफिया सभ अछि “लाग”, “बाग”, “पाग” । एकटा आर दोसर उदाहरण देखू--

कहू की, कियो बूझि नै सकल हमरा
हँसी सभक लागल बहुत ठरल हमरा

ऐ मतलाक शेरमे “हमरा”  रदीफ अछि। आ रदीफसँ पहिने पहिल पाँतिमे “सकल”  शब्द अछि। संगहि-संग दोसर पाँतिमे “ठरल”  शब्द अछि। आब हमरा लोकनि जँ एहिमे काफिया निर्धारण करी। दुनू शब्दकेँ नीक जकाँ देखू। दुनू शब्दक अंतिम वर्ण “ल”  अछि मुदा पहिल पाँतिमे “ल”सँ पहिने “अ”  ध्वनि अछि (क) आ दोसरो पाँतिमे “ल”सँ पहिने “अ”  ध्वनि अछि (र) तँ एहि दुनू शब्दक मिलानके बाद हमरा लोकनि देखै छी जे दुनूमे “ल”  वर्ण समान अछि। संगहि-संग वर्ण “ल”सँ पहिने “अ”  स्वर अछि। आब सभ व्यंजन हलन्तमे अ लगिते छै तखने ओ गुणिताक्षर बनै छै (कचटतप, यह) तँए ऐ गजलक काफिया कोनो कचटतप वर्ग(कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग) वा यह संग “ल” वर्ण भेल। आब शाइरकेँ बाँकी शेरमे काफियाक रूपमे एहन शब्द चुनए पड़तन्हि जकर अन्तमे “ल” वर्ण अबैत हुअए एवं तइसँ पहिने कोनो “कचटतप, यह” भऽ सकैए। ऐ गजलमे प्रयुक्त भेल आन काफिया अछि” जरल “, “खसल”, “रहल” “कहल” । तेसर उदाहरण सेहो देखू--

रानी मेघ सगरो जल पटाएत ना
बौआ हमर खेलत आ नहाएत ना

(अमित मिश्र)
ऐ मतलामे “ना” रदीफ अछि। आ रदीफसँ पहिल पाँतिमे “पटाएत” शब्द अछि आ दोसर
पाँतिमे “नहाएत” । जँ दुनू शब्दमे मिलान करबै तँ “एत” दुनू पाँतिक काफियामे कामन छै आ “एत”सँ पहिने “आ” स्वरक मात्रा छै (पहिल पाँतिमे “टा” आ दोसर पाँतिमे “हा” । ऐ मतलामे काफिया हएत “आ” मात्राक संग “एत” वर्ण समूह। ऐ गजलमे लेल गेल आन काफिया अछि बहाएत, बनाएत, चलाएत आ खाएत। काफियाक ऐ विवरणकेँ एना बूझी तँ नीक रहत—

1) जँ कोनो मतलामे “छन” आ “दन” काफिया छै तँ ऐमे “न” वर्ण मूल वर्ण भेलै (काफियाक मिलान सदिखन अन्तसँ कएल जाइत छै) आ ओइसँ पहिलुक वर्णक स्वर सेहो बराबर हेबाक चाही। उपरका उदाहरणमे “न” वर्णक बाद क्रमशः “छ” आ “द” वर्ण बचै छै आ दुनूक स्वर “अ” छै मने अकारान्त छै तँए कोनो मतलामे ई काफिया सही हएत। आब ऐ गजलमे आन शेर सभमे एहने काफिया हेतै जेना “हन”, “मन”, “जीबन” आदि। ऐठाम ई बात बुझबाक अछि जे जँ मतलामे “छन” आ “धुन” रहितै तँ काफिया गलत भऽ जेतै कारण मूल वर्ण “न” केर बादक स्वरक मात्रा सेहो अनिवार्य रूपें मिलबाक चाही मुदा ऐ उदाहरणक एकटा काफियामे “न” केर बाद “अ” स्वरक गुणिताक्षर छै तँ दोसरमे मूल वर्ण “न” केर बाद “उ” स्वर छै, तँए ई गलत भेल। ऐठाम ईहो मोन राखू जे “छन” आ “दन” केर बाद कोनो आन शेरमे “धुन”, “आन”, “निन” आदि काफियाकेँ नै लऽ सकैत छी। ईहो मोन राखू जे एकै गजलक आन-आन शेरमे मूल वर्ण एकै रहतै। जेना उपरका उदाहरणमे “छन” आ “दन” काफिया छै तँ आन शेरक काफियाक अंतमे “न” वर्ण अनिवार्य रूपसँ रहतै।

2) जँ कोनो मतलामे “जीवन” आ “तीमन” छै तँ काफिया “अ” स्वरक संग “न” मूल वर्ण हएत। आ तँए आन शेरक काफिया लेल “धूमन”, “केहन”, “पावन” एहन शब्द उपयुक्त रहत।

3) जँ कोनो मतलामे काफिया “तीमन” आ “नीमन” शब्द छै तखन कने धेआन राखए पड़त। दुनू शब्दकेँ धेआनसँ देखू, अंतमे “मन” वर्ण समूह उभयनिष्ठ छै तँ एहन काफियामे “मन” मूल वर्ण समूह भेल आ तइसँ पहिने दुनूमे “ई” स्वरक मात्रा छै (ती, नी) तँए एकर काफिया भेल “ई” स्वरक मात्राक संग “मन” वर्णक समूह। जँ कोनो शाइर “तीमन” आ “नीमन” केर बाद कोनो आन शेरमे “जीबन”, “धूमन”, “केहन”, “पावन” काफिया लेताह तँ गलत हएत। सही काफिया हेत “परिसीमन” आदि। ऐठाम ईहो मोन राखू जे जँ कोनो मतलामे “तीमन” आ “धूमन” काफिया छै तँ ओ गलत हएत कारण “मन” वर्ण समूहसँ पहिने एकटामे “ई” स्वरक मात्रा छै तँ दोसरमे “उ” स्वरक मात्रा। तेनाहिते “खाएत” एवं “आएत” काफियामे अन्तसँ “एत” उभयनिष्ठ छै एवं तइसँ पहिने “आ” स्वरक मात्रा छै, तकर बाद आन शेरमे “जाएत”, “नहाएत”, “पाएत”, “बुड़िआएत” आदि काफिया सही हेतै। जँ कोनो गजल बिना रदीफक अछि तैयो ई नियम सभ लागत (पहिने हमरा बिना रदीफ बला गजलक काफियापर किछु भ्रम छल मुदा आब ई फाइनल अछि संगे-संग हमर भ्रमक कारणे जे गलत गजल लिखाएल ताहि लेल हमहीं टा उत्तरदायी छी)

4) कोनो मतलामे “खौंझाएत” आ “बुझाएत” शब्दक काफिया नै भए सकैए से आब अहाँ सभ नीक जकाँ बुझि गेल हेबै। जँ कोनो शाइर एहन काफिया लै छथि तँ काफियामे “सिनाद दोष” आबि जाइत छै।

5) केखनो काल किछु एहन शब्द आबि जाइत छै काफियामे, जे अधिकांशतः एक समान रहैत छै जेना “पसार” एवं “सार” । ऐ दूटा शब्दमे अन्तसँ खाली  “सार” उभयनिष्ठ छै आ स्वरक मिलान नै भए रहल छै तँए कोनो मतलामे  “पसार “आ “सार “काफिया नै बनि सकैए। तेनाहिते विचारक संग “चार” आदि काफिया नै लऽ सकैत छी। “धार” आ “उधार “सहित एहन आन-आन शब्द लेल एहने सन बूझू। जँ कोनो गजल बिना रदीफक अछि तँ ई नियम नै लागत आ बिना रदीफ बला गजलमे धार उधार आदि काफिया आबि सकैए।

ऐ ठाम किछु गोटे कहि सकै छथि जे अकारान्त काफियामे वर्णक समानता किएक। । कारण गौरसँ देखबै तँ पता लागत जे “नीलम “आ “सीलम “काफियामे “अम “उच्चारण छै, आ “रूपम”, “पूनम “आदि शब्दमे सेहो “अम “उच्चारण छै। । ई गप्प सदिखन मोन राखू जे कोनो एकटा ध्वनिकेँ अधार मानि कए नियम नै बनाएल जाइत छै। दोसर उदाहरण लिअ जँ मतलामे “नहाएत “आ “खाएत “काफिया छै तखन आन शेरक काफिया लेल कोन काफिया हैतै। एतए “एत “सँ पहिने “आ “स्वर लेबहे पड़त। ऐठाम फेर मोन पाड़ू जे कोनो नियम एकटा उच्चारणपर नै बनाएल जाइत छै। तँए व्यावहारिक रूपें अहाँकेँ वा किनको ई बुझाएत जे “नीलम “आ “सीलम “के बाद “रूपम “, “पूनम “आदि काफिया बनि सकैए मुदा भाषायी दृष्टिसँ ई गलत हएत।
तेनाहिते उपरका उदाहरण धार-उधार बाला प्रसंगमे अहाँकेँ लागि सकैए जे धार-उधार काफिया बनत मुदा ईहो भाषायी दृष्टिसँ गलत हएत। ओना बनेबाक लेल तँ किछु बनाएल जा सकै छै आ बनितो छै मुदा मानकताक स्तरपर...

6) आब कने संयुक्ताक्षर बला काफियाकेँ देखी। किछु आर विवरणसँ पहिने किछु संयुक्त शब्द सभकेँ देखल जाए। प्रस्थान, चुस्त, दुरुस्त, किस्मत। आब ई देखू जे संयुक्त वर्ण अन्तसँ कोन स्थानपर पड़ैत अछि। जँ ई अन्तसँ तेसर आ ओकर बाद मने चारिम या पाँचम स्थानपर अबैत हो तँ काफियाक नियम पहिने जकाँ हएत। मुदा जँ इएह संयुक्त वर्ण काफिया बला शब्दक अंतसँ दोसर स्थान पर अबैत हो तँ कने धेआन देबए पड़त। मानि लिअ जे मतलाक पहिल पाँतिमे “मस्त” काफिया छैक। तँ आब हरेक काफियाक अंतमे “्+त” हेबाक चाही जेना तप्त, सप्त आदि रहबाक चाही। उदाहरण लेल “मस्त” केर काफिया “दस्त”, “पस्त”, “हरस्त”, “तप्त”, “सप्त” आदि भऽ सकैए। उपर हम धेआन देबाक लेल हम एहि दुआरे कहलहुँ जे हलंत लागल अक्षरक उच्चारण अलग भऽ जाइत छै। उर्दूमे तँ संयुक्ताक्षर बला शब्दमे बदलाव नै भऽ सकैए जेना उर्दूमे मस्त केर काफिया पस्त हेतै तप्त नै मुदा हम मैथिलीक प्रकृतिक अनुरूप एकरा विस्तार केलहुँ।  मुदा जखन हम मतलामे "मस्त" केर काफिया "पस्त" लेबै तखन बाध्यता भऽ जाएत जे हरेक शेरक काफिया "स्त" हो। उदाहरण रूपमे एकटा शेरकेँ देखल जाए--

हेतै कोना कऽ गुदस्त जीबन
भेलै चिन्तासँ हरस्त जीबन

आब ऐ शेरमे रदीफ “जीबन” भेल आ पहिल पाँतिमे काफिया “गुदस्त” अछि, आब संयुक्ताक्षर बला नियमक हिसाबें काफिया बला शब्दमे अन्तसँ दोसर वर्ण “स्त” होएबाक चाही। आब दोसर पाँतिके देखू रदीफसँ पहिने काफियाक रूपमे “हरस्त” अछि जकर अंतसँ “स्त” संगे-संग “अ” वर्णक स्वरसाम्य सेहो छै जे नियमक मोताबिक सही अछि। ऐ गजलमे आन काफिया सभ एना अछि “व्यस्त”, “मदमस्त”, “मस्त”, “सस्त” आदि। उपरके नियम जकाँ मतलाक पहिल पाँतिमे जँ “मस्त” काफिया छै तँ ओकर बाद आन शेरमे “चुस्त” “सुस्त” आदि काफिया नै आबि सकैए। संयुक्ताक्षरक ई नियम मात्रा बला काफिया लेल कने अलग ढ़ंगसँ छैक। किछु विस्तृत विवरण मात्रा बला खण्डमे भेटत। पंचमाक्षरक कारण बनल संयुक्ताक्षर लेल ई नियम काज नै करत आ एकर विवरण आगू भेटत।

7) आब आबी कने “ए” आ “य “बला प्रसंगपर (ई प्रसंग भारत आ नेपालक भाषा वैज्ञानिक सभहँक आलेखपर आधारित अछि। जै ठाम हमरा गलत लागल तै ठाम हम कोष्ठकमे ओकरा स्पष्ट केलहुँ अछि)।

ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि। मुदा “ए “केर प्रयोग प्राचीन मैथिलिएसँ अछि।

प्राचीन वर्तनी--कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।

नवीन वर्तनी--कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।

सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्द सभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारू सहित किछु जातिमे शब्दक। आरम्भोमे “ए” केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ “य” क प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण शैली “य “क अपेक्षा “ए”सँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो “ए” क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।
एतेक जनलाकेँ बाद आबी “ए “वा ' य “केर ध्वनि लोप पर। ओना “ए “वा “य” क संगे-संग आन ध्वनि लोप सेहो होइत छै मुदा ओकर चर्चा एतए आवश्यक नै। तँ देखी ध्वनि लोपक नियम---

ध्वनिलोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ “ए “वा “य “केर ध्वनिलोप भऽ जाइत अछि:--

(क) क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमेसँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोपसूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-

पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।

अपूर्ण रूप : पढ़’ गेलाह, क’ लेल, उठ’ पड़तौक।

पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।

(हमर कथन य वा ए लोप भेलापर पहिने बला अक्षर लघुए रहैत छै। उच्चारण किछु रेघा कऽ जरूर होइ छै मुदा ओइसँ एकरा दीर्घ नै मानल जा सकैए।)

(ख) पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोपसूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना--

पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।

अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।

आब एक बेर फेर घुरि जाइ उच्चारण पर। उच्चारणमे लोपसूचक चिह्न (') वा विकारी (ऽ) केर कोनो महत्व नै होइत छैक। मने लोप सूचक चिन्ह वा विकारीसँ पहिने जे वर्ण छै तकरे पूरा-पूरी उच्चारण हेतै कनेक नमहर उच्चारणक संग (मुदा ऐ कने नमहर उच्चारणक कारण ओ वर्ण दीर्घ नै मानल जाएत। बहुत रास भाषा वैज्ञानिक सभ “भ” वा “भ’ “वा “भऽ”  मने य वा ए केर लोप हेबासँ पहिनुक अक्षरकेँ दीर्घ मानै छथि मुदा हमर कहब जे जखन “घर “शब्दमे “घ” केर कनेक नमहर उच्चारण भेलाक बादो जखन ओ दीर्घ नै होइए तखन “भ” वा “भ’” वा “भऽ” केर उच्चारण जँ कनेक नमहर छै तँ फेर ओकरो लघु मानू।)  जेना “लए “शब्दमे ल केर बाद ए केर उच्चारण होइत अछि मुदा जखन ओही “लए “शब्दकेँ “ल' “वा “लऽ “लिखबै तखन ओकर उच्चारण बदलि जाएत आ एकर उच्चारण “ल “केर बराबर हएत। मतलब जे “ल' “वा “लऽ “केर उच्चारण “लए “वा “लय” शब्दसँ बिल्कुल अलग अछि। तेनाहिते “खस' “वा “खसऽ “केर उच्चारण “खसए “वा “खसय “शब्दसँ अलग अछि। एहन एहन शब्द जकर अंतमे “ए “वा “य “लोप होइत होइ तकरा लेल एहने सन नियम हेतै।
जँ कोनो शाइर ध्वनि लोपक चिन्ह वा विकारी बला शब्दक काफिया बनबै छथि तँ ओ धेआन राखथि जे हरेक काफियामे लोपसूचक चिह्न (') वा विकारी (ऽ)सँ पहिनुक वर्ण एकसमान राखथि। जेना “ल' “वा “लऽ केर काफियाक बाद शाइर एहन शब्द चुनथि जकर अंतमे लोपसूचक चिह्न (') वा विकारी (ऽ) लागल हो तकरा बाद वर्ण “ल “हो जेना “चल' “वा चलऽ। जँ कोनो शाइर “राख' “वा “राखऽ “केर काफिया “बाज' “या “बाजऽ “रखताह तँ ओ गलत हेतै।” बाज' “या “बाजऽ “केर बाद “साज' “वा “साजऽ “काफिया हेतै। संगे-संग काफियाक उपरका बला नियम सभ पहिनेहें जकाँ एहूमे लागू रहत। जँ कोनो एहन शब्द जकर अंतमे “ए “वा “य “केर लोप भेल छै आ ताहिसँ पहिने कोनो मात्रा छै तँ ओकर काफिया लेल मात्राक काफिया बला नियम लागत जकर विवरण आगू देल जा रहल अछि।
आब अहाँ सभ ई बूझि सकैत छिऐ जे--

लए - ह्रस्व-दीर्घ
लऽ- ह्रस्व
ल'- ह्रस्व
लय - ह्रस्व ह्रस्व वा दीर्घ
दए, कए आदि लेल एहने सन नियम रहत।
किछु लोक सभ “लऽ, दऽ, कऽ, भऽ,” आदि शब्दकेँ एक-दोसरक काफिया मानि लै छथि मुदा ई गलत हएत। आशा अछि जे एतेक उदाहरणसँ ई नियम सभ बुझबामे आएल हएत। बहुत ठाम देखबामे आएल अछि जे लोक विकारी बदला पूरा “अ” लीखि दै छथि जेना--” जोतऽ” बदला “जोतअ”, “करऽ” बदला “करअ” आदि-आदि। एहन स्थितिमे मोन राखू जे गितनी पूरा हएत मने “जोतअ” = दीर्घ-दीर्घ (संस्कृतक हिसाबें दीर्घ-लघु-लघु) “करअ” =लघु-दीर्घ। ई प्रकरण आरो स्पष्ट भेल हएत से उम्मेद।

“ए” बदलामे “य” किएक

जेना की हम पहिने कहि चुकल छी जे अधिकांश गीतमे तुकान्त रहै छै मुदा मैथिलीक अधिकांश गीतमे अंत्यानुप्रास वा काफियाक निर्वाह भेल अछि। ऐ प्रसंगमे एकटा रोचक गप्प हम जोड़ब। जहाँ धरि हमरा ज्ञान अछि पूर्वक कोनो विद्वान ऐ प्रसंगपर अपन मंतव्य ऐ रूपें नै रखला अछि जँ रखने हेता तँ ई हमर अज्ञानता बूझल जाए।
प्राचीन मैथिलीमे “ए” केर बेसी प्रयोग होइत छल जेना
आएल, देखाएल, भुखाएल, कए, लए ......
मुदा मध्यकालीन मैथिलीमे “ए” केर प्रयोग कम भेल आ तकर स्थानपर “य” केर प्रचलन भेल जेना
आयल, देखायल, भुखायल, कय, लय.........
मैथिलीक विद्वान ऐ गप्पपर तँ खूब चर्चा केला जे “ए” केर बदलामे “य” आएल, ईहो चर्चा केला जे “य” उर्दू-ब्रजभाषासँ मैथिलीमे आएल। एहू गप्पपर खूब घमर्थन भेल जे के-के “ए” केर पक्षमे छथि आ के-के “य” केर पक्षमे (मुदा हमर कहब जे जँ ई उर्दू-ब्रजभाषाक नकल छै तैयो ऐ गप्पपर घमर्थन हेबाक चाही जे ई नकल किएक भेल)।
ऐ “ए” आ “य” बला चक्करमे रमानाथ झा आ काञ्चीनाथ झा किरण जीक वैचारिक युद्ध पठनीय अछि। मुदा ने तँ रमानाथ झा जी ई स्पष्ट केलाह जे “य” बदलामे “ए” किएक वा ने काञ्चीनाथ झा किरण जी ई स्पष्ट केलाह जे “ए” बदलामे “य” किएक। रमानाथ जीक उद्येश्य मात्र छलनि जे “ए” नीक तँ किरण जीक उद्येश्य छलनि “य” नीक। मुदा “य” केर प्रचलन किएक भेल तकर कोनो विचार नै भेटल। मैथिली परिशीलन केर पृष्ठ 46पर पं.गोविन्द झाजी “ए” केर बदला “य” केर प्रयोग केनाइकेँ स्वन समुच्चय मानै छथि मुदा हमरा ई तर्क संगत बुझना नै जा रहल अछि कारण गद्यक संग-संग उच्चारणमे साफे-साफ “कएल” अबै छै। दिक्कत खाली पद्यमे छै तँए हमरा हिसाबें “ए” केर बदला “य” केर प्रचलन अंत्यानुप्रास, तुक, वा काफियाक संदर्भमे अछि।। उदाहरण देखू--

कवन नगरकेँ सेनुरिया सेनूर बेचे आयल हे
आहे कवन नगरकेँ कुमारी धिया सेनूर बेसाहल हे

(ई सेनुरदानक गीत अछि जकरा हम कुंज बिहारी मिश्र जी द्वारा गाएल राम विवाह प्रसंगसँ लेलहुँ अछि। रचनाकार शायद कदमलता छथि)
आब कने ऐ गीतक अवलोकन करू। पहिल पाँतिमे “आयल” छै आ दोसर पाँतिमे “बेसाहल” छै मने “अल” भेल अंत्यानुप्रास वा काफिया। आब कने ई विचारू जे जँ ऐ गीतक पहिल पाँतिमे “आयल” केर बदलामे “आएल” रहितै तँ की दोसर पाँतिक “बेसाहल” केर प्रयोग केहन रहितै। निश्चित रूपसँ जे कनियों संगीतक जानकारी रखैत हेता से कहता जे “आएल” केर बाद “बेसाहल” देलासँ भास गड़बड़ा जेतै। एही गीतक आन पाँति देखू--

रामरंग रसिया जे बरबा सेनूर चढ़ायल हे
आहे सिया धिया बड़ सुकुमारि से सेनूर सवाँरल हे

ऐ दूनू पाँतिकेँ देखलासँ आर स्पष्ट भेल हएत जे “य” केर प्रचलन किएक बेसी भेल। जँ ऐ गीतमे “य” केर प्रयोग नै रहितै तँ ऐ गीतक भास उतरब बड्ड कठिन छलै।

आ हमरा जनैत मध्यकालीन मैथिलीमे एही लेल “ए” केर प्रयोग बन्द कऽ “य” केर प्रयोग शुरू भेल। ऐ तरहँक आनो-आन मौखिक लोकगीत भेटत जकरा अवलोकनसँ अहाँ सभ अपने निर्धारित कऽ सकै छी जे कतऽ “ए” हेबाक चाही आ कतऽ “य” । ओना हमरा ई स्वीकार करबामे कोनो दिक्कत नै अछि जे साधारण बोलचालमे सभ गोटा “आएल” बजै छथि मने “ए” बला रूप खाली पद्यमे काफिया लेल “य” केर प्रयोग होइत छै। ई अकारण नै अछि जे समदाउनक प्रचुर मात्रामे रचना केनिहार गणनाथ झा, विंद्यनाथ झा आदि ओ संत कवि सिनेहलता जी एवं तात्कालीन संत ओ आन साहित्यकार  “य” केर बेसी प्रयोग करैत छलाह। आ एही कारणसँ कतहुँ-कतहुँ “ए” बदलामे “ओ” केर सेहो प्रयोग होइ छै जेना- “देखाएल” बदलामे “देखाओल” आदि। आन शब्द लेल एहने बूझू।

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों