बुधवार, 31 अक्टूबर 2012

रुबाइ

बाल रुबाइ-25

एलै ककाक कोजगरा बहुत मखान
चल खीर खेबै संगमे हरियर पान
नवका कपड़ा एलै सकल परिवारक
तैमे हमर ब्लू जीँस नीक छै समान

गजल

बाल गजल-65

हम कखन धरि बैसल रहब
बाबाक लऽग बाझल रहब

भोरेसँ छी भेलै साँझ

पढ़बै कते जागल रहब

खेलब कखन दौड़ब कखन

भोजनसँ हम बारल रहब


बाबा कहथि बनि जो लोक
की बनब यदि बान्हल रहब

दौड़सँ ई देह स्वस्थ

अस्वस्थ यदि पौरल रहब

बाबा जखन जेथिन टहलऽ

पोथी समटि भागल रहब

मुस्तफइलुन-मफऊलात

2212-2221
बहरे-मुन्सरह

अमित मिश्र

गजल

गजल

कोन घरमे जा कऽ बैसब सगर छेकल राजनीतिसँ
भोरमे किछु रातिमे किछु रंग लागल राजनीतिसँ

गाम उजड़ल सड़ल बनलै लोक बकरा बनि कऽ कटलै
आइ तैयो भीख माँगै छै अभागल राजनीतिसँ

कोन धारा लागि रहलै कोन जनता जानि सकलै
नीक जनता चोर भेलै चोर छूटल राजनीतिसँ


प्रेम करियौ फेर चलियौ जेल सगरो भरल भेटत
फेर अपहरणक कते आरोप लागल राजनीतिसँ

नीक नै छै आब सूतब आब निज अधिकार ताकू
राम राज्यक उदय हेतै "अमित" जागल राजनीतिसँ

फाइलातुन
2122 चारि बेर सब पाँतिमे
बहरे-रमल

अमित मिश्र

गजल

गजल

जकर मोनक रावण नै मरलै
सदिखने ओ अतृप्ते रहलै

कने बाजू तौलल गप देखू

कुरूक्षेत्रसँ तेँ शोणित बहलै

कहू नै हमरा सब जानै छी

श्रवण धन देबालोकेँ उगलै


जते बेटा सुनि लोरी सूतल
तते बेटी धरतीपर पड़लै

भविष्यक चलते स्वाहा करिते

कते लोभी बनि नाँङट बिकलै

सजा सदिखन भेटल बिन गलती

जहलमे "अमितो" पड़ले रहलै

1222-22-222

अमित मिश्र

गजल

गजल

लाख सौंदर्यक अमृतसँ भरल यौवन
कर्म बिनु छै बेकार ई चढ़ल यौवन

मोन मोहै जादू करै रूप जेकर
वैह कखनो बनि जाइ छै गरल यौवन

साफ मोनक एगोसँ सब काज उसरत
जाड़ि दै लाखो रहत यदि जड़ल यौवन


नै मजा जीबैमे तते काँट गड़लै
दर्दकेँ असली गजल छै बनल यौवन

ई युवा माँगै भीख देखू भटकिकेँ
छै गरीबीकेँ बीचमे फसल यौवन

आश नै कखनो तूँ लगा रूपपरमे
दै कतेको धोखा "अमित" सजल यौवन

फाइलातुन-मुस्तफइलुन-फाइलातुन
2122-2212-2122
बहरे-खफीफ
अमित मिश्र

गजल

गजल

नव नव रोग रोगीकेँ लगाबै रूप
मरलेकेँ जहर नेहक दऽ मारै रूप

कायाकेँ कहब दैबा तँ हर्जा कोन
लाशोकेँ तँ पल भरिमे जगाबै रूप

छै सब डूबल कर्जासँ सबहक संग
डूबेबो करै आ झट उबारै रूप


सालक बाद बनि जेतै महल खंडहर
देखू लोक सब सजि धजि सजाबै रूप

सदिखन मोनमे गप नीक आबै "अमित"
तैयो नेत डोलाबै फसाबै रूप

मफऊलातु
2221 तीन बेर
अमित मिश्र

गजल

बाल गजल-64

नारियर गाछपर बैसल चारि सुग्गा
हमर आँगन आइ आयल चारि सुग्गा

भोरमे जोरसँ जपै छै नाम रामक

जागि गेलै गाम जागल चारि सुग्गा

लाल लोलसँ खाइ छै मिरचाइ हरियर

नै कऽरू लागैछ भूखल चारि सुग्गा


ठोर पटकै संग सब नारियर फऽरपर
लोल टूटै नै जँ हारल चारि सुग्गा

मोन लागल खूब हमरा झूमि उठलौँ

साँझ पड़िते उड़ि कऽ भागल चारि सुग्गा

2122

फाइलातुन तीन बेर
बहरे-रमल
अमित मिश्र

गजल

बाल गजल-63

हमरा लेल छोटका भैयाकेँ साइकील बड़का
हम नै कानलौँ मुदा छै भैये कानि रहल उलटा

ललका रंग हमरकेँ भैयाकेँ साइकील करिया
भैयाकेँ पुरान लागै लागै हमर बहुत नवका

भैया हमर संगमे खेलब हमरो तँ छै अहीँकेँ
एखन छोटका लऽ खेलू हमहूँ खेलब लऽ बड़का


घंटी बाजि रहल टन टन चक्का नाचि रहल छम छम
रोड़ापर तँ कूदकै छै भेलै पार चारि खत्ता

भेलौँ पैघ आब हमहूँ छूटल संग छोटकाकेँ
पाछू बैसलनि हमर भैया चलबैत हम तँ बड़का

मफऊलातु-फाइलातुन
2221-2122 दू बेर

अमित मिश्र

रुबाइ

बाल रुबाइ-24

भोरे गाछपर लाल फूल शोभै छै
फूलाएल फूलपर तितली उड़ै छै
दू टा अरहुल आ दू टा गुलाब लऽ चल
खेलब किछु संग किछु पोथीपर चढ़ै छै

गजल

गजल

चेत जो रे बौआ जमाना बड खराप छै
बाप छै बेटा बनल ,बेटा बनल बाप छै

झूठ छै मीतक भेष झूठे भेल देश छै
पाप छै पुण्यक बात पुण्ये बनल पाप छै

द्रोहमे धधकै लोक गामक गाम शोकमे
सेकतै जे रोटी अपन ओकर तँ ताप छै


गोर छै चामक रंग आ कारी करेज छै
गारि छै बोली मीठका प्रवचन शराप छै

जागि जो बौआ देख दुनियाँ आँखि खोलिकेँ
चैन नै कखनो ओकरा जे बड खराप छै

2122-2212-2212-12
अमित मिश्र

मंगलवार, 30 अक्टूबर 2012

गजल


आँखिसँ नोर खसाबै छी किया एना
मोती अपन लुटाबै छी किया एना

खाली बातसँ भेंटत नै किछो एतय
तखनो बात बनाबै छी किया एना

सुनि बेथा तँ मजा लेबे करत दुनिया
बेथा अपन सुनाबै छी किया एना

अपने सीबऽ पडत फाटल करेजा ई
अनकर आस लगाबै छी किया एना

अमृतक घाट तकै छी बिखक पोखरिमे
अचरज "ओम" कराबै छी किया एना

(दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व) + (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ) + (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ)
(मफऊलातु-मफाईलुन-मफाईलुन)- १ बेर प्रत्येक पाँतिमे

सोमवार, 29 अक्टूबर 2012

गजल


जकर मोनक रावण नै मरलै
राम आजुक कोना ओ बनलै

डशल साँपक पइनो मंगै छै
डशल मनुखक कनिको नै कनलै 

गेल आँगन घर सभ पलटै छै
मोन भेटत कोना जे जड़लै

हाथ रखने सभतरि भस्मासुर 
निकलितो साउध बाहर डड़लै

छोड़ि ढेपापर चुगला 'मनु'केँ
शहर दिस नेन्ना भुटका भगलै

(२१२२-२२-२२२)
जगदानन्द झा 'मनु' 

मंगलवार, 23 अक्टूबर 2012

गजल


सुरशाक मुँह बेएने महगाइ मारलक 
बरख-बरख पर पाबि  बधाइ मारलक 

छलहुँ भने बड़ नीक  बिन बन्हले कतेक 
गोर-नार कनियाँ संगक सगाइ मारलक 

झूठक रंगमे डूबि जीबितहुँ कतेक दिन 
रंग ह्टैत देरी झूठक बड़ाइ मारलक 

सुधि बिसरि कए सभटा निसामे बहेलहुँ 
दिन राति पीया कए गाम गमाइ मारलक 

भौतिक सुखमे डूबल 'मनु' सगरो दुनियाँ
जतए ततए फरजीकेँ उघाइ मारलक     

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१७)
जगदानन्द झा 'मनु' 

शनिवार, 20 अक्टूबर 2012

गजल





चासो गेलै बासो गेलै
घर दरबज्जा अँगनो गेलै


ओ ठाढ़े रहलै मजमा बनि
थपड़ी गेलै पैसो गेलै


हुनकर पाँचो आँगुर घीमे
दूधो गेलै दहियो गेलै

छै शेरक घर भोजन साजन
बकरी गेलै बोतो गेलै


हक्कल डाइन छै नेता सभ
लोको गेलै देशो गेलै



हरेक पाँतिमे आठटा दीर्घ

बुधवार, 17 अक्टूबर 2012

गजल

ई हँसी हमर सुनलौं अहाँ
दर्दकेँ नै तँ बुझलौं अहाँ
  
दाँतकेँ बीचमे जीभ सन
मोनमे अपन मुनलौं अहाँ

नै हमर मोनकेँ चिन्हलौं
मुँह किए देख घुमलौं अहाँ  

प्रेमकेँ हमर हँसि बिसरलौं
मोनकेँ तोरि झुमलौं अहाँ

हाथ संगे खुशीकेँ पकरि
हृदय मनुकेर खुनलौं अहाँ 

(बहरे मुतदारिक, २१२-२१२-२१२)

@  जगदानन्द झा ‘मनु’

शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2012

रुबाइ

रुबाइ

रूबाइ

रूबाइ

गजल



उठि कऽ बैसल मरदबा एखनी कुच्छो होतै की 
छै समय ई भोरका एखनी कुच्छो होतै की

साँप दू मूँहाँ भरल छै सगर घरमे की करबै
बीनपर कठफोड़बा एखनी कुच्छो होतै की

नोट हमरे लोककेँ संग हमरे थानेदारो
देश हमरे चोरबा एखनी कुच्छो होतै की



बाण चललै कोन देखू करेजा छलनी भेलै
घावमे छल नेहिया एखनी कुच्छो होतै की

चान धरि पहुचल मनुख आब तारापर चलि जेतै 
काल्हि घर ओतै मुदा एखनी कुच्छो होतै की

पाँति किनको छै गजल हमर भेलै ई कर्मक फल
बादमे लिखबै कता एखनी कुच्छो होतै की

2122-2122-1222-222

अमित मिश्र

गजल

गजल

लेलहुँ सुख भरि पाँज पकड़ि हम
स्वर्गक आँगन गेल चतरि हम

काँचे सन नेहक जहर नशा
भांगक टूस्सी देल रगड़ि हम 

थू थू करतै देख नामकेँ
जाड़ब जतऽ इतिहास पजरि हम

जोहै सत्यक बाट बाटपर
चौकठिपर छी बनल नजरि हम

जीबू दोसरकेँ दऽ कोहबर
छारब छप्पर हुनक उजरि हम

तड़पाबै छै आँखि मुनि कऽ ओ
बहकै छी चोरीसँ सुधरि हम

टूटत राजक नीन्न तखन नै
हल्ला करबै जखन भखरि हम

22-2221-212

अमित मिश्र

गजल

बाल गजल-62

नेबो तोड़ऽ गेलौँ पैघ साँप भेटल
गाछक ठाढ़िपर छल चैन भेल पसरल

नेबो संग लुधकल पात पियर हरियर
तैपर सजमनिक लत्ती हरियर लतरल

नै हम चिन्हलौँ दू बेर छूबि देलौँ
शीतल जखन लागल तखन साँप अभरल

डरलौँ हम तँ देहो काँपि गेल थर थर
किछु नै केलकै ओ हम तँ देख चौँकल

चोटाहल छलै पट्टी कऽ देलियै हम
करबै प्रेम किछु नै करत शेर भूखल

मफऊलातु-मफऊलातु-फाइलातुन
2221-2221-2122
अमित मिश्र

गजल

बाल गजल-61

माँटिकेँ कर जोड़ि करियौ नमन बौआ
देख रहलौँ आइ सुन्नर सपन बौआ

भाग देशक ताग नेहक छी अहाँ यौ
छी अहाँ गमकैत मैथिल सुमन बौआ

पानिमे हम डूबि जीबै छी मुदा यौ
देख लै ई विश्व ताकत अपन बौआ

मारि झगड़ा नै फँसै से मोन राखू
शीत शोणित अपन नै छै जलन बौआ

चान सन सब गुण अहाँ एखन गढ़ू यौ
समय छै एखन बनू नव रतन बौआ

फाइलातुन
2122 तीन बेर
बहरे-रमल

अमित मिश्र

गजल


बाल गजल-60

आइ नै हम मानबौ गै
ठोर एखन राँगबौ गै

पैघ झौँटा आब नोचै
भोरमे सब काटबौ गै

आब चाही हार हमरा
नै बधी हम बान्हबौ गै

शूज चाही बैग नवका
टाइ नीकसँ साजबौ गै

हाट चलबेँ चाट खेबेँ
नै जँ आँचर छोड़बौ गै

पैघ भेलौँ बढ़ल सऽख तेँ
राति दिन हम माँगबौ गै

पाइ नै दे टाइ नै दे
कान नै हम कानबौ गै

मुस्तफइलुन
2212 तीन बेर
बहरे-रजज

अमित मिश्र
 
 

गजल

बाल गजल-59

बाबाक लाठी टूटि गेलै की करब
भागै छलौँ कप फूटि गेलै की करब

धेने छलौँ हम जौर बकरीकेँ मुदा
कूदै बहुत तेँ छूटि गेलै की करब

साटै छलौँ पोथी लऽ लस्सा आमकेँ
सबटा जँ पन्ना जूटि गेलै की करब

गाबै छलौँ जँ प्रार्थना इस्कूलमे
सर्दी छलै धुन टूटि गेलै की करब

छी बाल हम गलती तँ हेबे करत ने
नीको करैमे लूटि गेलै की करब

मुस्तफइलुन
2212 तीन बेर
बहरे-रजज

अमित मिश्र

गजल

बाल गजल-58

नानी गाम जेबै आइ बाबू संग
सालक बाद एबै आइ बाबू संग

जेबै हाट किनबै खाट अपना लेल
ललका जौर लेबै आइ बाबू संग

झारब झोल खीचब खोल बारब दीप
सौँसे घर सजेबै आइ बाबू संग

एलै छठि दिया बाती करब हुरदंग
आकाशी चलेबै आइ बाबू संग

गेबै गीत संगे मीत हम भरि राति
टोलाकेँ नचेबै आइ बाबू संग

गाछी देख बाछी देख आ खरिहान
सब गैया चरेबै आइ बाबू संग

राहरि दालि उसना भात आ तिलकोर
कोरा बैस खेबै आइ बाबू संग

मफऊलातु
2221 तीन बेर

अमित मिश्र

गजल

बाल गजल-57

चलि जाएब खाली पेट दिअ एगो सिलेट
दै इस्कूलमे बड भात भरि जाएत पेट

कपड़ा ओतऽ भेटत संग पोथी बहुत
बाबू आब हमरा रोकऽ नै जातै भऽ लेट

कागत कलम राखब जोतबै नै आब बरद
माँ गै पढ़ि कऽ बनबौ नीक नै माँजब पलेट

गामक लोक छौ बहसल करौ नै टोल साफ
बनबै जखन हम अफसर कऽ देबै मगज सेट

पहिने खूब पढ़बौ तखन करबौ खूब काज
आबेँ "अमित" पढ़ि ले बादमे खेल क्रिकेट

2221-2221-2221-21

अमित मिश्र

गजल

बाल गजल-56

जाड़ एलै आ पावनि तिहार एलै 
गाम घरमे सबहक लेल भार एलै

हमर आँगन कौआ खूब बाजि रहलै 
फोन एलै बाबू जी बिहार एलै

नै कतौ हम जेबै आइ एतऽ रहबै 
भेट करबै पहिले ई विचार एलै

हमर नवका कपड़ा बैग भरल एलै 
कार एलै खेलौना हजार एलै

आब बाबू जीकेँ संग खेल करबै 
प्यार एलै जीवनमेँ बहार एलै

फाइलातुन-मफऊलातु-फाइलातुन
2122-2221-2122

© अमित मिश्र

रुबाइ

बाल रुबाइ-23

कोरामे खरहा लऽ कऽ हाथमे गाजर
बौआ निकललनि मटकैत घरसँ बाहर
लागल ठेस कतौ गाजर फेका गेल
जा धरि उठलनि खरहा खा गेल असगर

रुबाइ

बाल रुबाइ-22
(बिन मौसम गाछीक इयाद)

पाकै बिज्जू चल चल गाछी ओगरब
मालदहक तरमे ऊँच मचान बान्हब
जखने कौआ लोल मारत डंटीपर
खसतै सुपक तँ हम झट दऽ चोभा मारब

रुबाइ

बाल रुबाइ-21

हारल तेँ केओ गोस्सासँ झगड़ैए
केओ बस अपन बारी लेल लड़ैए
कखनो युद्ध स्थल बनि जाइ छै दलान
कखनो बाल मीत प्रेम रूप धरैए

रूबाइ

बाल रूबाइ-20

बहिनक संग खेलमे मोन लागैए
हम विद्यार्थी ओ मैडम बनि आबैए
हम देखै छी फोटो मात्र पोथीमे
ओ ओकर आखर हमरा चिन्हाबैए

रूबाइ

बाल  रूबाइ-19

कागा रे आबेँ हमरो दलानपर
हमरो भोरे उठा बैस मचानपर
बेसी नै कहबौ काल्हि भरिकेँ बात
उठि जेबै मेला जे छै भसानपर


 

रूबाइ

बाल रूबाइ-18

बाबी कोरसँ भागल भरि अंगनामे
पायल छन छन बाजल भरि अंगनामे
बुचिया आगू बाबी पाछू दौड़ रहल
नेना लऽग नेना बनल भरि अंगनामे
तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों