बुधवार, 31 अगस्त 2011

गजल

आहां नहि येलौं हम ताहि सं तबाह छी.
जिबै छी मुदा जिनगी सं तबाह छी ।

आर किनको सं नहि हमरा उलहन-परतर,
हम तं एकगोट प्रिये अहिं सं तबाह छी.

दुश्मनी केर कोनो नहि चिंता-फिकिर,
सत्य कही तं दोस्ती सं तबाह छी .

नेहक सिवा आर की द सकैत छी हम,
हम तं गरीब आर गरीबी सं तबाह छी।

दू गोट"दीपक"कोना जराऊ सनेह केर प्रिये,
हम तं आपने ज्योति सं तबाह छी .

गजल

दुश्मनक लेल कफ़न दोस्तक लेल दुआ राखैत छी .
हम हिंदुस्तान छी पैर तर समूचा दुनियां राखैत छी.

नज़रि कें चोट सं पाथारक देबाल ढाहि देब ,
तुफानक रुख मोड़ी देब एहन हौसला राखैत छी ।

कियो की बुझायेत हमरा प्रेम केर पहेली प्रिये ,
जतनीक अपन सिरहाना मे प्यार के गीता राखैत छी.

फिकरी मृतुअक नहि चिंता जिनगीक राखैत छी ,
सदिखन जीबैत अपन हिरदय में लहराईत तिरंगा राखैत छी ।

हाय कियो माय के लाल त हिंद प आखी उठाक देखि लौ ,
हमहूँ अपन छाती मे "दीपक" शेर के करेजा राखैत छी .


रुबाइ

ईदक शुभकामना दैत एकटा रुबाइ


चीन्हब जँ अनचिन्हारकेँ तँ ईद हएत

सौंसे परसब जँ प्यारकेँ तँ ईद हएत

इ जरूरी नै जे इजोत हेबे करत

देबै ठोकर अन्हारकेँ तँ ईद हएत

मंगलवार, 30 अगस्त 2011

गजल

बनतै कतेक बहन्ना देखबाक चाही

ओ बनतै कतेक सन्ना देखबाक चाही


आब तँ भेल नूनो-सोहारी पर आफद

सुनू फटकी कतेक चन्ना देखबाक चाही


थपड़ी तँ अदौसँ बजिते आएल अछि

लुटतैके कतेक टन्ना देखबाक चाही


घरक बोझ छिड़िआ रहल सदिखन

कोम्हर हेड़ा गेल जुन्ना देखबाक चाही


खेतोके पता नहि की भए गेलैक अछि

खादोक बाद मरहन्ना देखबाक चाही



**** वर्ण---------15*******

सोमवार, 29 अगस्त 2011

गजलक संक्षिप्त परिचय भाग-8

खण्ड-8

आब कने मात्रा बला काफिया पर विचार करी। मैथिली वर्णमालामे 14 गोट स्वर देखाओल गेल अछि। अ, आ, इ, ई उ, ऋ, ॠ, लृ,(आ लृक आर एकटा दीर्घ रूप) ऊ, ए, ऐ, ओ, एवं औ। जाहिमे “अ” तँ हरेक वर्णक (जाहिमे हलन्त् नहि लागल होइक)मे अंतमे अबिते छैक। अन्य चारि गोट स्वर (ऋ,ॠ, लृ आ लृक आर एकटा दीर्घ रूप) खाली तत्सम शब्दमे अबैत छैक। बचल दस गोट स्वर आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, एवं औ (एकर लेख रूप क्रमशःा, ि, ी, ु, ू, े, ै, ो एवं ौ अछि) ।संगे-संग हम मैथिलीमे रेफ बला काफिया पर सेहो बिचार करब। मतलब जे एहिठाम हम कुल दस गोट मात्रा पर बिचार करब। मुदा एहि दसोमे “इ”, “उ” आ रेफ पर बिचार हम बादमे करब। एकर कारण जे मैथिलीमे एहि तीनूक उच्चारण कने अलग ढंगसँ होइत अछि। तँ चली मात्रा बला काफिया पर। मतलामे रदीफसँ पहिने जँ वर्णमे कोनो मात्रा छैक। तँ गजलक हरेक शेरक काफिया मे वएह मात्रा अएबाक चाही चाहे ओहि मात्राक संग बला वर्ण दोसरे किएक ने हो।

पूब मे उगल ललका थारी तऽ देखू
दूइभक घर चमा चम मोती तऽ देखू
(अमित मिश्र)

ऐ गजलमे लेल गेल आन काफिया सभ अछि--किलकारी, बेमारी, पारी, साड़ी आ तरकारी। ऐठाम ई धेआन देबए बला बात अछि जे मतलामे जे काफिया प्रयोग भेल छै तकर अंतमे “ई “केर मात्रा छै वर्ण मुदा अलग-अलग छै मुदा ओहिसँ पहिने बला स्वर नै मीलि रहल छै एकर मतलब ई भेल जे मात्रा बला काफिया लेल शब्दक अंतमे जे मात्रा छै सएह आन शब्दक अंतमे अएबाक चाही बशर्ते की वर्ण अलग-अलग हो । आब ऐठाम ई देखू जे जँ मतलामे “थारी “क संग साड़ी रहितै तखन आन काफियामे “ड़ी” वा “री” कामन रहितै आ ताहिसँ पहिने “आ” केर स्वरसाम्य रहितै। जेना “बाड़ी “, उधारी, अधकपारी इत्यादि। जँ “थारी “आ “बाड़ी” केर बाद “मोती “शब्दक काफिया लै छी तँ सिनाद दोष आबि जाएत आ काफिया गलत भए जाएत। तेनाहिते जँ कोनो मतलामे “मोती “आ कोठी” काफिया लेबै तखन साड़ी, उधारी आदि काफिया भए सकैए। कोना से आब अहाँ सभ नीक जकाँ बुझि गेल हेबै। एखन हमरा लोकनि “ई “मात्राक उदाहरण देखलहुँ। ऐठाम ई मोन राखू जे “दीर्घ इ “मने “ई “अपन शुद्ध रूपमे सेहो आबि सकैए शुद्ध रूप मने वर्णक रूपमे जेना की

जे गलत छै ओ सही छै
हुनक गप्पे सन तँ ई छै

आब ऐ शेरकेँ देखू जे ऐमे “छै” रदीफ भेल आ पहिल पाँतिमे काफिया “ह” वर्णपर “ई” केर मात्रा अछि मुदा दोसर पाँतिमे “ई” अपन वर्णक रूपमे अछि मने शुद्ध रूपमे अछि। शाइर एनाहुतो काफिया बना सकैत छथि। ई नियम पूर्णतः उच्चारण सम्मत छै। मुदा ऐठाँ ई मोन राखू जे एहन सुविधा “ह्रस्व इ “लेल नै अछि। मने “ह्रस्व इ “अपन वर्णक रूपमे काफिया नै बनि सकैए। जाहि-जाहि वर्णक शुद्ध रूप काफिया बनि सकैए तकर वर्णन ओही मात्राक उदाहरणक सङ्ग देल जा रहल अछि।
ऐ नियम सभहँक अधार पर हमर प्रकाशित पोथी “अनचिन्हार आखर “केर बहुत रास काफिया गलत अछि। मुदा ओहि समय हमरा लग काफिया जतेक समझ छल ओहि हिसाबसँ ओकर प्रयोग कएल। आ तँए ओहि पोथी महँक किछु काफियाक नियम आब पूर्णतः बेकार भए चुकल अछि। संगे संग ईहो धेआन राखू जे आन मात्रा बला कफिया लेल एहने नियम रहत।
एकटा गलत उदाहरण देबासँ हम अपनाकेँ रोकि नै रहल छी। ई शेर हमरे थिक--

एनाइ जँ अहाँक सूनी हम
नहुँएसँ सपना बूनी हम”

(काफिया “ई” क मात्रा)
एहि गजलक अन्य काफिया अछि “चूमी”, “पूछी”, “बूझी”, “खूनी”,,” लूटी”, “सूती” आदि। आब ऐ शेरमे देखू दूनू पाँतिक काफियामे “नी “छै आ ताहि हिसाबसँ हमरा हमरा एहन काफिया चुनबाक छल जकर अंतमे “नी “अबैत हो आ ताहिसँ पहिने “ऊ “केर मात्रा हो। ऐ शेरमे “ऊ “केर मात्रा तँ लेल गेल अछि मुदा “नी “केर पालन नै भेल अछि तँए ऐ गजल महँक एकटा काफिया “खूनी “छोड़ि आन सभ (जेना चूमी”, “पूछी”, “बूझी ““लूटी”, “सूती” ) आदि गलत अछि। अन्य बचल मात्राक लेल एहने समान नियम अछि आ हरेक मात्राक एक-एकटा उदाहरण देल जा रहल अछि। (ऐ ठाम ई मोन राखू जे उर्दूक किछु घराना ऐ नियमकेँ तोड़बाक ओकालति करै छथि। हुनक कहब छन्हि जे अंतमे मात्रा आबि रहल छै वर्णक कोन काज। मुदा हमरा हिसाबें मूल नियम ठीक अछि।)

1) छोड़ि कऽ जे बिनु बजने जा रहल अछि
हृदै चिरैत आगि सुनगा रहल अछि

(काफिया “आ” केर मात्रा)
(गजेन्द्र ठाकुर)
ऐ गजल आन काफिया सभ अछि--कना, भसिया, जा, खा इत्यादि।
मैथिलीमे “आ” वर्ण केर शुद्ध रूपमे काफिया बनि सकैए।

2) “जँ तोड़ब सप्पत तँ जानू अहाँ
फाँसिए लगा मरब मानू अहाँ”

(काफिया “ऊ” क मात्रा)
(आशीष अनचिन्हार, सरल वार्णिक)
एहि गजलमे लेल गेल अन्य कफिया  “गानू”, “आनू”, “टानू” आदि।
मैथिलीमे “ऊ “वर्ण केर शुद्ध रूपमे काफिया बनि सकैए।

3) “मोन तंग करबे करतै
देह भाषा पढबे करतै”

(काफिया “ए” क मात्रा)
एहि गजलमे लेल गेल अन्य कफिया “खुजबे”, “उड़बे”, “सटबे” आदि अछि।
“ए” वर्ण केर शुद्ध रूपमे काफिया बनि तँ सकैए मुदा ओतेक प्रभावी नै हएत कारण मैथिलीमे शब्दक अंत बला “ए” केर उच्चारण अपूर्ण होत छै। मोन राखू मात्रा बला उच्चारण पूरा होइत छै।

4) भोरे उठि मैदान गेलै बौआ
ओम्हरहिसँ दतमनि तँ लेतै बौआ

(आशीष अनचिन्हार)
(काफिया “ऐ” क मात्रा)
ऐ गजलक आन काफिया सभ अछि--एतै, जेतै, बनतै, चलतै आदि-आदि।
ऐ केर मात्राक एकटा आर उदाहरण देखू

करबै नै मजूरी माँ पढबै हमहूँ
नै रहबै कतौ पाछू बढबै हमहूँ

(ओमप्रकाश)
ऐ गजलमे लेल गेल आन काफिया अछि--चढ़बै, मढ़बै, गढ़बै आदि-आदि। मैथिलीमे “ऐ “वर्णक काफिया शुद्ध रूपमे बनि सकैए।
केखनो काल “ऐ” केर उच्चारण “अइ” जकाँ होइत अछि। जेना “सैतान” बदलामे सइतान, बैमानक बदलामे “बइमान” इत्यादि।

5) “आब हरजाइकेँ तों बिसरि जो रे बौआ
मोन ने पड़ौ एहन सप्पत खो रे बौआ

(काफिया “ओ” क मात्रा)
(आशीष अनचिन्हार, सरल वार्णिक)
एहि गजलमे लेल गेल अन्य कफिया--ओ, खसो, पड़ो इत्यादि अछि। मैथिलीमे “ओ “वर्णक काफिया शुद्ध रूपमे बनि सकैए।

6) “एक बेर फेर हँसिऔ कनेक
ओही नजरिसँ देखिऔ कनेक”

(काफिया “औ” क मात्रा)
(आशीष अनचिन्हार, सरल वार्णिक)
एहि गजलमे लेल गेल अन्य कफिया --” रहिऔ”, “चलिऔ”, “बुझबिऔ” आदि अछि।
मैथिलीमे “औ “वर्णक काफिया शुद्ध रूपमे बनि सकैए। बशर्ते की जखन “यौ “केर बदलामे “औ” केर प्रयोग हो तखन।
**** केखनो काल “औ” केर उच्चारण “अउ” जकाँ होइत अछि।
ऐठाम ईहो मोन राखू जे जँ कोनो मात्रापर अनुस्वार वा चंद्रबिंदु छै तँ ओकर पालन हेबाक चाही। जेना मतलामे “चुँइयाँ “एवं “घुँइयाँ” केर बाद कोनो शेरमे “बुइया “काफिया नै आबि सकैए । तेनाहिते कोनो मतलामे “चुँइयाँ “एवं “बुइया “काफिया नै बनि सकैए । तेनाहिते “बुइया “एवं “रूइया “(मतलामे) केर बाद “चुँइयाँ “काफिया नै आबि सकैए।

आब हमरा लोकनि फेरसँ एकबेर संयुक्ताक्षर बला शब्दपर चली। मात्रा बला संयुक्ताक्षर लेल पहिनेसँ कने अलग ढ़गसँ देखू। ई गप्प उदाहरणसँ बेसी फड़िच्छ हएत। मानू जे मतलाक पहिल पाँतिमे काफियाक रूपमे “चुट्टी” शब्द लेल गेल। आब दोसर काफिया लेल मोन राखू जे “ई” मात्रा युक्त कोनो शब्द भए सकैत अछि। उदाहरण लेल “चिन्नी”, “बुच्ची”, “खटनी “आदि “चुट्टी” क काफिया भए सकैत अछि। मुदा जँ मतलाक काफिया “मुट्ठी” आ “घुट्ठी” छैक तखन आन शेरक काफिया “चिन्नी” या “बुच्ची” नहि भए सकैत अछि। कारण तँ अहाँ सभ बुझिए गेल हेबै। उम्मेद अछि जे उपर देल गेल मात्रा बला उदाहरणसँ काफिया संबंधी नियम बेसी फड़िच्छ भेल हएत।

रुबाइ

भ्रष्टाचारकेँ विरुद्ध अन्नाक जीत भेल। अन्नाक संग "अनचिन्हार आखर"विदेह परिवार शुरुआतेसँ हुनक संग छल। आइओ संग अछि। तँए भ्रष्टाचार आ ओकरा पोसए बलाक विरुद्ध इ रुबाइ----------



बेसी बाजब तँ देह हम ततारि देब

अहाँक सभ बदमाशी हम सुधारि देब

जे-जे कहै छी से-से अहाँ मानि लिअ

नै तँ अहाँक सभ बुधिआरी घुसारि देब

शनिवार, 27 अगस्त 2011

गजल

प्रकृति जँ दुश्मन बनए तँ ओकरा रोकब कठिन

काँटी जँ छाती पर रहए तँ ओकरा ठोकब कठिन


लक्ष्य जँ नहि रहत आँखिक सीमान पर सदिखन

जोर लगेलाक पछातिओ ओकरा लोकब कठिन


संसारमे पापक घैलके एहने गति छै से मानै छी

जँ नै रहबै सत्यक संग तँ ओकरा फोड़ब कठिन


आब जँ अहाँ चाही तँ एकरा कोनो नाम दए सकै छी

केकरो करेज सँ निकलल गप्पके तोड़ब कठिन


बौआइत रहू मसाने गाछिए-बिरछिए सदिखन

जँ अहाँ नहि बनब भूत तँ ओकरा टोकब कठिन



**** वर्ण---------20*******

गजलक संक्षिप्त परिचय भाग-7

खण्ड-7
मात्रा बला काफिया पर विचार करबासँ पहिने कनेक फेरसँ तहलीली रदीफ आ मैथिली विभक्ति पर विचार करी। कारण जे मैथिली विभक्ति मूल शब्दमे सटि जाइत छैक। आ तँए ओ केखन काफियाक रूप लेत आ केखन रदीफक से बुझनाइ परम जरूरी।

विभक्ति- मैथिलीमे विभक्ति चिन्ह समान्यतः पाँच गोट अछि।

1) कर्म- केँ (कें केर प्रयोग हिन्दीक “को” लेल कैल जाइत अछि। उदाहरण लेल रामकेँ आम पठा दियौन्ह)

2) करण- एँ /सँ

3) अपादान-सँ

4) सम्बन्ध- क/के /केर /केरि  (क/के /केर /केरि  सभहँक प्रयोग हिन्दीक का, के, की लेल कएल जाइत अछि।  ऐठाम धेआन राखू जे विकारी युक्त या एफास्ट्राफी बला केर प्रयोग हिंदीक करलेल उपयोग कएल जाइत छै । उदाहरण लेल- ई काज हम कऽ चुकल छी। या ई काज हम क’ रहल छी।
नोट--हिंदीक “के” लेल आएल “कऽ” शब्दसँ हटा कऽ लिखबाक परिपाटी अछि। तेनाहिते “के”, “केर”, “केरि” सेहो हटा कऽ लिखल जाइत छै।

5) अधिकरण- मे /पर

एहिकेँ अतिरिक्त विद्वान लोकनि कर्ताक चिन्हकेँ सुन्नाकेँ रूपमे लैत छथि। ई पाँचो चिन्ह मूल शब्दमे सटि जाइत छैक(किछु लोक जे कि मैथिलीकेँ हिन्दीक उपबोली बनेबापर लागल अछि से विभक्तिकेँ मूल शब्दसँ हटा कए लिखै छथि, संख्या आ अंग्रेजी शब्दसँ विभक्ति हटा कऽ लिखल जाए कारण संख्या कोनो शब्द नै छै आ अंग्रेजी शब्द विजातीय भेने विभक्तिसँ सटि अर्थक अनर्थ कऽ सकैए, हँ संख्यावाची शब्द आ देवनागरी वा तिरहुता लिपिमे लिखल अंग्रेजी शब्दमे विभक्ति सटा कऽ लीखू)। आ एहि पाँचोमेँसँ “एँ” चिन्ह मूल शब्दक ध्वनि बदलि दैत छैक। उदाहरण लेल देखू “बाट” शब्दमे “एँ” चिन्ह सटने “बाटेँ” होइत छैक। “हाथ” शब्दमे सटने “हाथेँ” इत्यादि। आब कने ई विचारी जे जँ कोनो शाइर एहन शब्द, जाहिमे विभक्ति सटल होइक जँ ओकर काफिया बनेता तँ की हेतै। एहि लेल किछु एहन शब्द ली जाहिमे विभक्ति सटल होइक। उदाहरण लेल मूल शब्द विभक्तिसँ सटल शब्द--

हाथ- हाथक /हाथेँ/ हाथसँ/ हाथमे/ हाथकेँ
फूल- फूलक /फूलसँ /फूलेँ
संग- संगमे /संगेँ
राति- रातिसँ /रातिमे
एहि विवरणकेँ हमरा लोकनि दू भागमे बाँटि सकै छी--
1) एहन मूल शब्द जे अंतसँ अकारान्त हुअए, आ
2) एहन मूल शब्द जकर अंतमे मात्राक प्रयोग होइक

1) आब जँ कोनो शाइर एहन मूल शब्द जे अकारान्त छैक आ ओहिमे विभक्ति लागल छैक तकरा काफिया बनबै छथि तँ हुनका ई मोन राखए पड़तन्हि जे बादमे आबए बला हरेक आन-आन काफियामे वएह विभक्ति कोनो आन मूल शब्दमे आबै जे अकारान्त होइक संगहि-संग स्वरसाम्य सेहो रखैत हो उदाहरण लेल मानू जे केओ मूल “हाथ” शब्दमे “क” विभक्ति जोड़ि “हाथक” काफिया बनेलक। दोसर आन-आन काफिया लेल ई मोन राखू जे आबए बला ओहि काफियाक अंतमे “क” विभक्ति तँ एबै करतै, मुदा विभक्ति “क”सँ ठीक पहिने अकारान्त वर्ण एवं स्वरसाम्य होएबाक चाही जेना की मानू “बात” शब्दमे विभक्ति “क” जुटला पर “बातक” शब्द बनैत अछि। आब पहिल काफिया “हाथक” आ दोसर काफिया “बातक” मिलान करू (काफियाक मिलान सदिखन शब्दक अंतसँ कएल जाइत छैक)। देखू पहिल काफिया “हाथक” आ दोसर काफिया “बातक” दूनूक अंतमे विभक्ति “क” अछि संगहि-संग विभक्ति “क” केर बाद दूनू काफियाक शब्द “थ” आ “त” अकारान्त अछि संगहि-संग “हा” केर स्वरसाम्य “बा”सँ छैक। आब फेर तेसर शब्द “पात” लिअ आ जँ ओहिमे “क” विभक्ति जोड़बै तँ “पातक” शब्द बनतै। आब पहिल काफिया “हाथक” आ दोसर काफिया “पातक” मिलान करू । देखू अंतसँ दूनू शब्दमे “क” विभक्ति छैक आ ठीक ओहिसँ पहिने दूनू शब्द अकारान्त छैक आ संगहि-संग “हा” के स्वरसाम्य “पा”सँ छैक।एनाहिते दोसर उदाहरण देखू--मूल शब्द “पात” विभक्ति “मे” जुटला पर “पातमे” शब्द बनैत अछि। फेर दोसर शब्द “बाट” विभक्ति “मे” जुटला पर “बाटमे” । आब फेरसँ मिलान करू दूनू शब्दक अंतमे विभक्ति “मे” लागल छैक । विभक्ति “मे”सँ ठीक पहिने अकारान्त वर्ण सेहो छैक संगहि-संग “पा” केर स्वरसाम्य “बा”सँ छैक। किछु आर उदाहरण लिअ “कलमसँ” “पतनसँ”, “बापकेँ” “आबकेँ” इत्यादि। मुदा ऐठाम ई बात   सदिखन  धेआन राखू जे जँ कोनो शाइर लेखनमे हिन्दीक प्रभावसँ मूल शब्दमे विभक्ति नै सटबै छथि से गलत करै छथि कारण मूल शब्दमे विभक्तिकेँ सटब मैथिलीक बहुत रास मुख्य विशेषतामेसँ एकटा अछि। तँए चाहे गजल लिखू, कविता लिखू वा कथा, आलोचना वा किछु लिखू मैथिलीमे विभक्ति मूल शब्दमे सटल रहबाक चाही। ऐठाम बात गजल लेल चलि रहल अछि तँ एकरा एना बूझी कोनो मतलामे “कलमसँ “आ “पतनसँ “काफिया बनि सकैए मुदा मतलामे “कलम सँ “आ “पतन सँ “काफिया नै बनि सकैए। तेनाहिते “आँखिसँ” आ चाँकिसँ “काफिया सेहो ठीक रहत मुदा “आँखि सँ” आ चाँकि सँ “नै ।

2) एहन मूल शब्द जकर अंतमे मात्रा होइक ओकर काफिया लेल धेआन राखू जे विभक्ति के बाद ठीक वएह मात्रा स्वरसाम्यक संग एबाक चाही। उदारहरण लेल--

आँखिसँ, चाँकिसँ, बाँहिसँ, इत्यादि
रातिमे, जातिमे, जाठिमे, इत्यादि
घुटठीकेँ, गुड्डीकेँ, चुट्टीकेँ, इत्यादि
पानिक, आनिक, इत्यादि

केखनो काल दूटा विभक्ति एकै संग जुटि जाइत छैक एहन समयमे अहाँकेँ दोसरो काफिया ओहने लेबए पड़त जाहिमे दूनू विभक्त समान होइक स्वरसाम्यक संगे।विभक्ति बला काफियाक संबंधमे एकटा आर खास गप्प। कोनो एहन मूल शब्द जकर अंत कोनो एकटा खास विभक्तिसँ साम्य रखैत हो, विभक्तिसँ पहिने बला वर्ण अकारान्त वा मात्रा युक्त (जेहन स्थिति) हो संगहि-संग ओहिसँ पहिने स्वरसाम्य हो तँ ओ दूनू काफियाक रूपमे लेल जा सकैए। उदाहरण लेल एकटा विभक्ति बला शब्द “पातक” वा “बाटक” लिअ। आ आब एहन मूल शब्द ताकू जकर अंतमे “क” होइ, “क”सँ पहिने अकारान्त वर्ण होइक (जँ अकारान्त वर्णसँ पहिने स्वरसाम्य होइ तँ आरो नीक) तँ ओ दूनू (एकटा विभक्ति युक्त आ दोसर मूल) शब्द काफिया भए सकैत अछि। उदाहरण लेल उपर लेल दूनू विभक्त युक्त शब्द “पातक” आ “बाटक” के मूल शब्द “बालक” पालक” वा “चालक”सँ मिलाउ। जँ गौरसँ देखबै तँ पता लागत जे ई शब्द सभ काफिया लेल एकदम्म उपयुक्त अछि। तेनाहिते मात्रा बला शब्द जाहिमे विभक्ति सटल हो आ ओहन मूल शब्द जे ओकरासँ मिलैत हो एक-दोसराक काफिया बनि सकैत अछि। आब कने ऐठाँ ई विचारि ली जे जँ कोनो शेरक अंतिम शब्द सभमे विभक्ति सटल छै तँ कोन रदीफ हेतै आ कोन रदीफ नै हेतै। जेना की शुरूमे रदीफ प्रकरणमे विजय नाथ झा जीक गजलक (तहलीली रदीफ) उदाहरण देने छलहुँ तकरा मोन पाड़ू (हलाँकि विजय नाथ झा जी बला शब्द सन्धिक कारणें अछि मुदा ऐठाम विभक्ति सटबाक कारणें)। तकरा बाद ई देखू जे विभक्ति हटेलाक बाद काफिया बनै छै की नै। जँ विभक्ति हटेला बाद काफिया बनि रहल छै तखन ओकरा रदीफ युक्त शेर वा गजल मानू। आ जँ विभक्ति हटेलाक बाद काफिया नै बनि रहल छै तखन ओकरा बिना रदीफक शेर वा गजल मानू। उदाहरण लेल—

पसरल छै शोणित सगरो बाटपर
घर आँगन बाड़ी झाड़ी घाटपर

एहि गजलक आन अन्तिम शब्द अछि “हाटपर”, “खाटपर”, “टाटपर” । देखू एहि सभमे अंतसँ  विभक्ति “पर “सेहो छै एवं  विभक्ति हटेलाक बादो  “आ “स्वरक संग “ट “वर्णक काफिया बनि रहल छै । तँए एकरा रदीफ युक्त शेर मानल जाएत।मुदा जँ कोनो शेरक पहिल पाँतिमे “कलमसँ” आ दोसर पाँतिमे “पतनसँ” काफिया लेल गेल छै तखन ई बिना रदीफक गजल मानल जाएत कारण विभक्ति हटेलाक बाद “कलम “आ “पतन” एक दोसराक काफिया नै बनैए। आब ई देखू जे जँ विभक्ति बला शब्द  पाँतिक बीचमे एतै तँ ओकर की व्यवस्था हेबाक चाही आ ऐ लेल एकटा उदाहरण देखू--

हमरा संगमे आम छै
हमरा हाथमे आम छै

ऐ शेरकेँ नीकसँ देखबै तँ पता लागत जे “मे आम छै” दूनू पाँतिमे उभय (कामन) छै तँए ई रदीफ भेल मुदा ऐ ठाम हमरा सभकेँ ऐ नियमक मैथिलीकरण करऽ पड़त। आ ई नियम मनमाना नै बल्कि भाषायी मजबूरी अछि (उर्दूमे सहो एहने समझौता करए पड़ल छै तकर विवरण आगू भेटत)। तँए ऐ शेरमे “संगमे” आ “हाथमे” काफिया भेल आ “आम छै” रदीफ। एहन नियम मात्र विभक्तिए बलामे आबि सकैए। एक तरहें एकरा नियममे छूट वा ढ़िलाइ सेहो बुझि सकै छिऐ।
ऐठाम दू टा गप्प बेसी जरूरी जेना कि उपरे कहने छी विभक्ति सटेनाइ मैथिलीक मूल थिक तँए सभ विधामे विभक्ति सटाउ, एहन नै जे खाली गजलक काफियामे छूट लेबाक हिसाबें विभक्ति सटा देलहुँ आ आन विधामे हटा देलहुँ आ दोसर गप्प जे ई छूट वा ढ़िलाइ मात्र विभक्तिए बला अक्षर लेल अछि। मैथिली बहुत संभावना भरल भाषा छै आ ऐमे काफियाक ढ़ेरी लागल अछि तँए एहन दुविधा बला शेर कम्मे हेबाक चाही। ओना ई संभावना बेसी अछि जे भविष्यमे ऐ नियमक दुरुपयोग होबए लागत।
आन सभ विभक्तिमे तँ दिक्कत नै मुदा “कर्म” ओ “सम्बन्ध” बलाके गौरसँ देखू। “कर्म कारक” चिन्ह अछि “केँ” आ “सम्बन्ध कारक” क चारिटामेसँ एकटा “के” सेहो अछि। बस एहीठाम धेआन रखबाक छै। जैठाम कोनो सम्बन्ध देखाओल गेल हो ततए चारिटामेसँ एकटा “के” सेहो आबि सकैए। उदाहरण लेल--

1) राम के घरमे चोरी भेलनि,
2) रामक घरमे चोरी भेलनि
ई दूनू वाक्य सही अछि कारण दूनू वाक्यसँ कर्मक सम्बन्धक पता चलै छै।

मुदा जँ हम पहिल वाक्यके एना लीखी--
1) रामकेँ घरमे चोरी भेलनि
तँ ई गलत हएत। आशा अछि जे किछु गप्प फड़िच्छ भेल हएत।

विशेष टिप्पणी-- उच्चारणमे केखनो काल “कर्म कारक” क चिन्ह “केँ” आ “सम्बन्ध कारक” चिन्ह “के” दूनूक अंतर खत्म भऽ जाइत छै। मुदा लिखित रूपमे मानकताक लेल ई अंतर राखल गेल छै। संगहि-संग ईहो स्पष्ट करब जरूरी जे “सँ” विभक्तिकेँ लघुमे सटा कऽ लिखलापर एकटा दीर्घ सेहो मानि सकै छी आ दू टा लघु सेहो। जेना “रामसँ” एकरा 22 सेहो मानि सकै छी आ 211 सेहो।

बहुत आदमी नासिकताक कारणे “जँ”, “सँ”, “तँ” आदिक रेघेनाइकेँ दीर्घ मानै छथि मुदा ई गलत अछि। जँ रेघेनाइए टा कसौटी छै तखन तँ कोनो शब्द दीर्घ भऽ सकै छी- कियो “स” केर उच्चारण सेहो रेघा कऽ कहता जे ई दीर्घ छै। एहन बहुत उदाहरण भेटि जाएत। तँइ हम ऐ प्रकारक बहसकेँ वितंडा बूझै छी। सोझ रूपें बुझू जे लघु वर्ण उपर जँ चंद्रबिंदु छै तँ लघुए रहत।

शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

गजल

अहूँ तँ पड़ाएल छलहुँ हमहूँ तँ पड़ाएल छलहुँ

अहूँ घबराएल छलहुँ हमहूँ घबराएल छलहुँ


शायद एहने भेंट लिखल छल कपारमे सदिखन

अहूँ तँ लजाएल छलहुँ हमहूँ तँ लजाएल छलहुँ


रुकलाहा जिनगीक लेल सौरी बेर-बेर सौरी सजनी

अहूँ उबिआएल छलहुँ हमहूँ उबिआएल छलहुँ


शेर तँ चल गेल आब ताल देनहे की हएत कहिऔ

अहूँ सुटिआएल छलहुँ हमहूँ सुटिआएल छलहुँ


रहि गेलहुँ अनचिन्हार करेज सटेलाक पछातिओ

अहूँ अगुताएल छलहुँ हमहूँ अगुताएल छलहुँ


**** वर्ण---------21*******

गुरुवार, 25 अगस्त 2011

गजल

गुंगुआइत बसात चुप्प रहू

पदुराइत बसात चुप्प रहू


चारु दिस तँ पसरि गेल धुँआ

हे पझाइत बसात चुप्प रहू


अहाँक कुंठा जड़ि जमेने अछि

किकिआइत बसात चुप्प रहू


अहूँ पर हँसत केओ-कहिओ

ठिठिआइत बसात चुप्प रहू


जे भेटत अनचिन्हारे भेटत

चिचिआइत बसात चुप्प रहू


**** वर्ण---------12*******

बुधवार, 24 अगस्त 2011

गजल

पतालमे जा अकास नपैत छी

डिबिआ मिझा प्रकाश तकैत छी


कागतमे लिखल कागती प्लान

घटाला कए विकास चाहैत छी


पानि सड़ि गन्हाइते रहलैक

आरिए बान्हि निकास चाहैत छी


बुड़िबक देवी कुरथी अक्षत

हम एहने विकास करैत छी


चिन्हार नहि अनचिन्हारे नीक

तँए तँ परिचय नुकबैत छी



**** वर्ण---------12*******

मंगलवार, 23 अगस्त 2011

गजल

माटि-पानि-बसात लेल युद्ध

देखू छोटको बात लेल युद्ध


आदर्श बनाम आदर्शवादी

बुद्ध-गाँधीक गात लेल युद्ध


जर-जमीन-जोरु एतबा नै

देखू फेकल पात लेल युद्ध


नून नै चटबए पड़तै बेटीके

आब तँ गर्भपात लेल युद्ध


तकनीकी जुगक इ व्यवस्था

साँझ होइते प्रात लेल युद्ध



**** वर्ण---------11*******

गजलक संक्षिप्त परिचय भाग-6

खण्ड-6
पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, ञ, ण, न एवं म अबैत अछि आ एकरा नासिक्य वर्ण कहल जाइत छै मने एहन वर्ण जकर उच्चारण नाकसँ होइत हो। संस्कृत भाषाक अनुसार नासिक्य शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओहिसँ पहिने ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे पहिने ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे पहिने ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे पहिने ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे पहिने न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे पहिने म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना अंक,पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। अनुस्वारक चिन्ह ं अछि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओ लोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि। नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोक बेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोट सन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽ कऽ पवर्ग धरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽ कऽ ज्ञ धरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ। आब कने आबी काफिया पर जँ मतलाक कोनो काफिया मे पंचमाक्षर वा अनुस्वारक प्रयोग छैक तँ हरेक शेरक काफियामे अनुस्वार वा पंचमाक्षर हेबाक चाही ओहो ठीक ओही स्थान पर जाहि पर पहिल काफियामे छैक। जेना मानि लिअ कोनो मतलाक पहिल पाँतिक काफिया “बसंत” छैक, तँ आब अहाँके ओहन शब्द काफियामे देबए पड़त जकर अंतसँ दोसर वर्ण पर अनुस्वार वा पंचमाक्षर अबैत होइक जेना की “अनंत”, “दिगंत” इत्यादि। आ एहने सन नियम चंद्रबिंदु लेल सेहो छैक।एकटा बात आर जँ कोनो मतलाक दूनू पाँतिमे अनुस्वार बला काफिया छै तँ ओकर बाद बला शेरक काफिया लेल पंचमाक्षर बला शब्द सेहो लए सकैत छी जेना जँ मतलामे की “बसंत” आ “अनंत” छै तँ बाद बला शेरक काफिया लेल “दिगन्त” सेहो लए सकैत छी। आन सभ पंचमाक्षर लेल एहने नियम बुझू। मुदा एहन ठाम ई मोन राखू जे पंचमाक्षर अपने वर्गक हेबाक चाही ।हमर पोथी अनचिन्हार आखरमे ई नियम गलत रूपमे छल। ऐठाम ई सही रूपमे अछि। ऐठाँ ई मोन राखू जे काफियामे ईता दोष नै एबाक चाही। आब ई कोन दोष भेल तकर वर्णन मात्रा बला काफियाक संग कए जाएत।
नासिक्ये वर्णसँ अनुनासिक वर्ण बनाएल जाइत छै। जखन कोनो वर्णक उच्चारणमे मूँहक संगे नाक केर प्रयोग होइत छै तखन ओकरा अनुनासिक कहल जाइत छै (सानुनासिक सेहो कहल जाइत छै)। अनुनासिक केर चिन्ह ँ मने चंद्रबिंदु होइत छै। “न” आ “म” वर्ण अनुनासिक होइत छै तँए एकर उच्चारण बहुत बेर अनुनासिके सन सुनाइ पड़ै छै मुदा ओ लिखित रूपमे नै आबै छै। अनुनासिक शब्द दू तरहसँ होइत छै पहिल ओ जैमे खाली व्यंजन अनुनासिक होइत छै जेना-माला, माघ आदि, दोसर जैमे स्वर आ व्यंजन दूनू अनुनासिक होइत छै जेना-माँगब, नींद आदि। आन वर्ण आ पंचमाक्षरे जकाँ सेहो अनुनासिक केर काफिया हेतै।

नासिक्य आ अनुनासिक केर भेद बुझलाक बाद ईहो स्पष्ट करब जरूरी जे हिंदीमे “हंस” मने पक्षी आ “हँस” मने हँसनाइ दूनू एकै तरीकासँ लिखल जाइत अछि। हिंदीमे दूनू लेल “हंस” शब्द अछि जे की अनर्थकारी अछि कतेको हिंदीक विद्वान एकर विरोध केने छथि तँइ चंद्रबिंदु आ अनुस्वार केर सही प्रयोग हेबाक चाही। हमरा हिसाबें पंचमाक्षरक बदलामे अनुस्वार तँ प्रयोग कऽ सकै छी मुदा चंद्रबिंदु केर बदलामे हिंदी जकाँ अनुस्वार केर प्रयोग करब गलते नै अनर्थकारी सेहो अछि।

शनिवार, 20 अगस्त 2011

गजल

एहने अहाँक प्रेम छल पछाति जानल हम

खाली मूहँक तँ छेमछल पछाति जानल हम


आगि लागल छै घर मे चिन्ताक गप्प नहि कोनो

कारण अपने टेम छल पछाति जानल हम


सड़ैत देखलिऐक किच्छोके कादो मे सदिखन

अपने घरक हेम छल पछाति जानल हम


कोंढ़ीके सुँघलकै आ बजरखसुआ चलि गेलै

दाइ ओ नकली भेम छल पछाति जानल हम


कानून तँ बनै छै आ टूटै छै बेर-बेर देशमे

लोके लेल नेम-टेम छल पछाति जानल हम


**** वर्ण---------18*******

शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

विदेह मैथिली भाषापाक-रचना लेखन

ई आलेख विदेहसँ साभार अछि



१.भारत आ नेपालक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली २.मैथिलीमे भाषा सम्पादन पाठ्यक्रम

१.नेपाल भारतक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली

१.१. नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्चारण आ लेखन शैली

(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)

मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन

१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, , , न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-

अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)

पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)

खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)

सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)

खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)

उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक,पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओ लोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।

नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोक बेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोट सन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽ कऽ पवर्ग धरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽ कऽ ज्ञ धरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।

२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण र् हजकाँ होइत अछि। अतः जतऽ र् हक उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आन ठाम खाली ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-

ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।

ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।

उपर्युक्त शब्द सभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।

३.व आ ब : मैथिलीमे क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश, बन्दना आदि। एहि सभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश, वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।

४.य आ ज : कतहु-कतहु क उच्चारण जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि,जमुना, जुग, जाबत, जोगी, जदु, जम आदि कहल जाएबला शब्द सभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, यावत, योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।

५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।

प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।

नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।

सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्द सभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारू सहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।

ए आ क प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।

६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु, तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले, चोट्टे, आनो आदि।

७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।

८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:

(क) क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमे सँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-

पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।

अपूर्ण रूप : पढ़गेलाह, लेल, उठपड़तौक।

पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।

(ख) पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-

पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।

अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।

(ग) स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-

पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।

अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।

(घ) वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-

पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।

अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।

(ङ) क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-

पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।

अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।

(च) क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-

पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।

अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।

९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटि कऽ दोसर ठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन), पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु (माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्द सभमे ई निअम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।

१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्द सभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषा सम्बन्धी निअम अनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरण सम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्ष सभकेँ समेटि कऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनीकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽबला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषी पर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़ि रहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषता सभ कुण्ठित नहि होइक, ताहू दिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए।

-(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)


१.२. मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली

१. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि,
से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-

ग्राह्य

एखन
ठाम
जकर, तकर
तनिकर
अछि

अग्राह्य
अखन, अखनि, एखेन, अखनी
ठिमा, ठिना, ठमा
जेकर, तेकर
तिनकर। (वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ, अहि, ए।

२. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैकल्पिकतया अपनाओल जाय: भऽ गेल, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।

३. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।

४. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।

५. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत: जैह, सैह, इएह, ओऐह, लैह तथा दैह।

६. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।

७. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।

८. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।

९. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।

१०. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:- हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। ’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।

११. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।

१२. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।

१३. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।

१४. हलंत चिह्न निअमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।

१५. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।

१६. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रापर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।

१७. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।

१८. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।

१९. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।

२०. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।

२१.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।

ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६


२. मैथिलीमे भाषा सम्पादन पाठ्यक्रम

२.१. उच्चारण निर्देश: (बोल्ड कएल रूप ग्राह्य):-

दन्त न क उच्चारणमे दाँतमे जीह सटत- जेना बाजू नाम , मुदा ण क उच्चारणमे जीह मूर्धामे सटत (नै सटैए तँ उच्चारण दोष अछि)- जेना बाजू गणेश। तालव्य मे जीह तालुसँ , मे मूर्धासँ आ दन्त मे दाँतसँ सटत। निशाँ, सभ आ शोषण बाजि कऽ देखू। मैथिलीमे केँ वैदिक संस्कृत जकाँ सेहो उच्चरित कएल जाइत अछि, जेना वर्षा, दोष। य अनेको स्थानपर ज जकाँ उच्चरित होइत अछि आ ण ड़ जकाँ (यथा संयोग आ गणेश संजोगगड़ेस उच्चरित होइत अछि)। मैथिलीमे व क उच्चारण ब, श क उच्चारण स आ य क उच्चारण ज सेहो होइत अछि।

ओहिना ह्रस्व इ बेशीकाल मैथिलीमे पहिने बाजल जाइत अछि कारण देवनागरीमे आ मिथिलाक्षरमे ह्रस्व इ अक्षरक पहिने लिखलो जाइत आ बाजलो जएबाक चाही। कारण जे हिन्दीमे एकर दोषपूर्ण उच्चारण होइत अछि (लिखल तँ पहिने जाइत अछि मुदा बाजल बादमे जाइत अछि), से शिक्षा पद्धतिक दोषक कारण हम सभ ओकर उच्चारण दोषपूर्ण ढंगसँ कऽ रहल छी।

अछि- अ इ छ ऐछ (उच्चारण)

छथि- छ इ थछैथ (उच्चारण)

पहुँचि- प हुँ इ च (उच्चारण)

आब अ आ इ ई ए ऐ ओ औ अं अः ऋ ऐ सभ लेल मात्रा सेहो अछि, मुदा ऐमे ई ऐ ओ औ अं अः ऋ केँ संयुक्ताक्षर रूपमे गलत रूपमे प्रयुक्त आ उच्चरित कएल जाइत अछि। जेना ऋ केँ री रूपमे उच्चरित करब। आ देखियौ- ऐ लेल देखिऔ क प्रयोग अनुचित। मुदा देखिऐ लेल देखियै अनुचित। क् सँ ह् धरि अ सम्मिलित भेलासँ क सँ ह बनैत अछि, मुदा उच्चारण काल हलन्त युक्त शब्दक अन्तक उच्चारणक प्रवृत्ति बढ़ल अछि, मुदा हम जखन मनोजमे ज् अन्तमे बजैत छी, तखनो पुरनका लोककेँ बजैत सुनबन्हि- मनोजऽ, वास्तवमे ओ अ युक्त ज् = ज बजै छथि।

फेर ज्ञ अछि ज् आ ञ क संयुक्त मुदा गलत उच्चारण होइत अछि- ग्य। ओहिना क्ष अछि क् आ ष क संयुक्त मुदा उच्चारण होइत अछि छ। फेर श् आ र क संयुक्त अछि श्र ( जेना श्रमिक) आ स् आ र क संयुक्त अछि स्र (जेना मिस्र)। त्र भेल त+र ।

उच्चारणक ऑडियो फाइल विदेह आर्काइव http://www.videha.co.in/ पर उपलब्ध अछि। फेर केँ / सँ / पर पूर्व अक्षरसँ सटा कऽ लिखू मुदा तँ / कऽ हटा कऽ। ऐमे सँ मे पहिल सटा कऽ लिखू आ बादबला हटा कऽ। अंकक बाद टा लिखू सटा कऽ मुदा अन्य ठाम टा लिखू हटा कऽजेना छहटा मुदा सभ टा। फेर ६अ म सातम लिखू- छठम सातम नै। घरबलामे बला मुदा घरवालीमे वाली प्रयुक्त करू।

रहए- रहै मुदा सकैए (उच्चारण सकै-ए)।

मुदा कखनो काल रहए आ रहै मे अर्थ भिन्नता सेहो, जेना से कम्मो जगहमे पार्किंग करबाक अभ्यास रहै ओकरा। पुछलापर पता लागल जे ढुनढुन नाम्ना ई ड्राइवर कनाट प्लेसक पार्किंगमे काज करैत रहए

छलै, छलए मे सेहो ऐ तरहक भेल। छलए क उच्चारण छल-ए सेहो।

संयोगने- (उच्चारण संजोगने)

केँ/ कऽ

केर- (केर क प्रयोग गद्यमे नै करू , पद्यमे कऽ सकै छी। )

क (जेना रामक) रामक आ संगे (उच्चारण राम के / राम कऽ सेहो)

सँ- सऽ (उच्चारण)

चन्द्रबिन्दु आ अनुस्वार- अनुस्वारमे कंठ धरिक प्रयोग होइत अछि मुदा चन्द्रबिन्दुमे नै। चन्द्रबिन्दुमे कनेक एकारक सेहो उच्चारण होइत अछि- जेना रामसँ- (उच्चारण राम सऽ) रामकेँ- (उच्चारण राम कऽ/ राम के सेहो)।

केँ जेना रामकेँ भेल हिन्दीक को (राम को)- राम को= रामकेँ

क जेना रामक भेल हिन्दीक का ( राम का) राम का= रामक

कऽ जेना जा कऽ भेल हिन्दीक कर ( जा कर) जा कर= जा कऽ

सँ भेल हिन्दीक से (राम से) राम से= रामसँ

सऽ , तऽ , त , केर (गद्यमे) एे चारू शब्द सबहक प्रयोग अवांछित।

के दोसर अर्थेँ प्रयुक्त भऽ सकैए- जेना, के कहलक? विभक्ति “क”क बदला एकर प्रयोग अवांछित।

नञि, नहि, नै, नइ, नँइ, नइँ, नइं ऐ सभक उच्चारण आ लेखन - नै

त्त्व क बदलामे त्व जेना महत्वपूर्ण (महत्त्वपूर्ण नै) जतए अर्थ बदलि जाए ओतहि मात्र तीन अक्षरक संयुक्ताक्षरक प्रयोग उचित। सम्पति- उच्चारण स म्प इ त (सम्पत्ति नै- कारण सही उच्चारण आसानीसँ सम्भव नै)। मुदा सर्वोत्तम (सर्वोतम नै)।

राष्ट्रिय (राष्ट्रीय नै)

सकैए/ सकै (अर्थ परिवर्तन)

पोछैले/ पोछै लेल/ पोछए लेल

पोछैए/ पोछए/ (अर्थ परिवर्तन)

पोछए/ पोछै

ओ लोकनि ( हटा कऽ, ओ मे बिकारी नै)

ओइ/ ओहि

ओहिले/ ओहि लेल/ ओही लऽ

जएबेँ/ बैसबेँ

पँचभइयाँ

देखियौक/ (देखिऔक नै- तहिना अ मे ह्रस्व आ दीर्घक मात्राक प्रयोग अनुचित)

जकाँ / जेकाँ

तँइ/ तैँ/

होएत / हएत

नञि/ नहि/ नँइ/ नइँ/ नै

सौँसे/ सौंसे

बड़ / बड़ी (झोराओल)

गाए (गाइ नहि), मुदा गाइक दूध (गाएक दूध नै।)

रहलेँ/ पहिरतैँ

हमहीं/ अहीं

सब - सभ

सबहक - सभहक

धरि - तक

गप- बात

बूझब - समझब

बुझलौं/ समझलौं/ बुझलहुँ - समझलहुँ

हमरा आर - हम सभ

आकि- आ कि

सकैछ/ करैछ (गद्यमे प्रयोगक आवश्यकता नै)

होइन/ होनि

जाइन (जानि नै, जेना देल जाइन) मुदा जानि-बूझि (अर्थ परिव्र्तन)

पइठ/ जाइठ

आउ/ जाउ/ आऊ/ जाऊ

मे, केँ, सँ, पर (शब्दसँ सटा कऽ) तँ कऽ धऽ दऽ (शब्दसँ हटा कऽ) मुदा दूटा वा बेसी विभक्ति संग रहलापर पहिल विभक्ति टाकेँ सटाऊ। जेना ऐमे सँ ।

एकटा , दूटा (मुदा कए टा)

बिकारीक प्रयोग शब्दक अन्तमे, बीचमे अनावश्यक रूपेँ नै। आकारान्त आ अन्तमे अ क बाद बिकारीक प्रयोग नै (जेना दिअ, / दिय’ , आ’, आ नै )

अपोस्ट्रोफीक प्रयोग बिकारीक बदलामे करब अनुचित आ मात्र फॉन्टक तकनीकी न्यूनताक परिचायक)- ओना बिकारीक संस्कृत रूप ऽ अवग्रह कहल जाइत अछि आ वर्तनी आ उच्चारण दुनू ठाम एकर लोप रहैत अछि/ रहि सकैत अछि (उच्चारणमे लोप रहिते अछि)। मुदा अपोस्ट्रोफी सेहो अंग्रेजीमे पसेसिव केसमे होइत अछि आ फ्रेंचमे शब्दमे जतए एकर प्रयोग होइत अछि जेना raison d’etre एतए सेहो एकर उच्चारण रैजौन डेटर होइत अछि, माने अपोस्ट्रॉफी अवकाश नै दैत अछि वरन जोड़ैत अछि, से एकर प्रयोग बिकारीक बदला देनाइ तकनीकी रूपेँ सेहो अनुचित)।

अइमे, एहिमे/ ऐमे

जइमे, जाहिमे

एखन/ अखन/ अइखन

केँ (के नहि) मे (अनुस्वार रहित)

भऽ

मे

दऽ

तँ (तऽ, त नै)

सँ ( सऽ स नै)

गाछ तर

गाछ लग

साँझ खन

जो (जो go, करै जो do)

तै/तइ जेना- तै दुआरे/ तइमे/ तइले

जै/जइ जेना- जै कारण/ जइसँ/ जइले

ऐ/ अइ जेना- ऐ कारण/ ऐसँ/ अइले/ मुदा एकर एकटा खास प्रयोग- लालति‍ कतेक दि‍नसँ कहैत रहैत अइ

लै/लइ जेना लैसँ/ लइले/ लै दुआरे

लहँ/ लौं

गेलौं/ लेलौं/ लेलँह/ गेलहुँ/ लेलहुँ/ लेलँ

जइ/ जाहि‍/ जै

जहि‍ठाम/ जाहि‍ठाम/ जइठाम/ जैठाम

एहि‍/ अहि‍/

अइ (वाक्यक अंतमे ग्राह्य) /

अइछ/ अछि‍/ ऐछ

तइ/ तहि‍/ तै/ ताहि‍

ओहि‍/ ओइ

सीखि‍/ सीख

जीवि‍/ जीवी/ जीब

भलेहीं/ भलहि‍ं

तैं/ तँइ/ तँए

जाएब/ जएब

लइ/ लै

छइ/ छै

नहि‍/ नै/ नइ

गइ/ गै

छनि‍/ छन्‍हि ...

समए शब्‍दक संग जखन कोनो वि‍भक्‍ति‍ जुटै छै तखन समै जना समैपर इत्‍यादि‍। असगरमे हृदए आ वि‍भक्‍ति‍ जुटने हृदे जना हृदेसँ,हृदेमे इत्‍यादि‍।

जइ/ जाहि‍/ जै

जहि‍ठाम/ जाहि‍ठाम/ जइठाम/ जैठाम

एहि‍/ अहि‍/ अइ/

अइछ/ अछि‍/ ऐछ

तइ/ तहि‍/ तै/ ताहि‍

ओहि‍/ ओइ

सीखि‍/ सीख

जीवि‍/ जीवी/ जीब

भले/ भलेहीं/ भलहि‍ं

तैं/ तँइ/ तँए

जाएब/ जएब

लइ/ लै

छइ/ छै

नहि‍/ नै/ नइ

गइ/ गै

छनि‍/ छन्‍हि‍

चुकल अछि/ गेल गछि

२.२. मैथिलीमे भाषा सम्पादन पाठ्यक्रम

नीचाँक सूचीमे देल विकल्पमेसँ लैंगुएज एडीटर द्वारा कोन रूप चुनल जेबाक चाही:

बोल्ड कएल रूप ग्राह्य:

१.होयबला/ होबयबला/ होमयबला/ हेबबला, हेमबला/ होयबाक/होबएबला /होएबाक

२. आ’/आऽ

३. कलेने/कऽ लेने/कए लेने/कय लेने/ल’/लऽ/लय/लए

४. भगेल/भऽ गेल/भय गेल/भए गेल

५. करगेलाह/करऽ गेलह/करए गेलाह/करय गेलाह

६. लिअ/दिअ लिय’,दिय’,लिअ’,दिय’/

७. करबला/करऽ बला/ करय बला करैबला/बला / करैवाली

८. बला वला (पुरूष), वाली (स्‍त्री) ९

. आङ्ल आंग्ल

१०. प्रायः प्रायह

११. दुःख दुख १

२. चलि गेल चल गेल/चैल गेल

१३. देलखिन्ह देलकिन्ह, देलखिन

१४. देखलन्हि देखलनि/ देखलैन्ह

१५. छथिन्ह/ छलन्हि छथिन/ छलैन/ छलनि

१६. चलैत/दैत चलति/दैति

१७. एखनो अखनो

१८. बढ़नि‍ बढ़इन बढ़न्हि

१९. ओ’/ओऽ(सर्वनाम)

२०. (संयोजक) ओ’/ओऽ

२१. फाँगि/फाङ्गि फाइंग/फाइङ

२२. जे जे’/जेऽ २३. ना-नुकुर ना-नुकर

२४. केलन्हि/केलनि‍/कयलन्हि

२५. तखनतँ/ तखन तँ

२६. जा रहल/जाय रहल/जाए रहल

२७. निकलय/निकलए लागल/ लगल बहराय/ बहराए लागल/ लगल निकल’/बहरै लागल

२८. ओतय/ जतय जत’/ ओत’/ जतए/ ओतए

२९. की फूरल जे कि फूरल जे

३०. जे जे’/जेऽ

३१. कूदि / यादि(मोन पारब) कूइद/याइद/कूद/याद/ यादि (मोन)

३२. इहो/ ओहो

३३. हँसए/ हँसय हँसऽ

३४. नौ आकि दस/नौ किंवा दस/ नौ वा दस

३५. सासु-ससुर सास-ससुर

३६. छह/ सात छ/छः/सात

३७. की की’/ कीऽ (दीर्घीकारान्तमे ऽ वर्जित)

३८. जबाब जवाब

३९. करएताह/ करेताह करयताह

४०. दलान दिशि दलान दिश/दलान दिस

४१. गेलाह गएलाह/गयलाह

४२. किछु आर/ किछु और/ किछ आर

४३. जाइ छल/ जाइत छल जाति छल/जैत छल

४४. पहुँचि/ भेट जाइत छल/ भेट जाइ छलए पहुँच/ भेटि‍ जाइत छल

४५. जबान (युवा)/ जवान(फौजी)

४६. लय/ लए ’/ कऽ/ लए कए / लऽ कऽ/ लऽ कए

४७. ल’/लऽ कय/ कए

४८. एखन / एखने / अखन / अखने

४९. अहींकेँ अहीँकेँ

५०. गहींर गहीँर

५१. धार पार केनाइ धार पार केनाय/केनाए

५२. जेकाँ जेँकाँ/ जकाँ

५३. तहिना तेहिना

५४. एकर अकर

५५. बहिनउ बहनोइ

५६. बहिन बहिनि

५७. बहिन-बहिनोइ बहिन-बहनउ

५८. नहि/ नै

५९. करबा / करबाय/ करबाए

६०. तँ/ त ऽ तय/तए

६१. भैयारी मे छोट-भाए/भै/, जेठ-भाय/भाइ,

६२. गि‍नतीमे दू भाइ/भाए/भाँइ

६३. ई पोथी दू भाइक/ भाँइ/ भाए/ लेल। यावत जावत

६४. माय मै / माए मुदा माइक ममता

६५. देन्हि/ दइन दनि‍/ दएन्हि/ दयन्हि दन्हि/ दैन्हि

६६. द’/ दऽ/ दए

६७. (संयोजक) ओऽ (सर्वनाम)

६८. तका कए तकाय तकाए

६९. पैरे (on foot) पएरे कएक/ कैक

७०. ताहुमे/ ताहूमे

७१. पुत्रीक

७२. बजा कय/ कए / कऽ

७३. बननाय/बननाइ

७४. कोला

७५. दिनुका दिनका

७६. ततहिसँ

७७. गरबओलन्हि/ गरबौलनि‍/ रबेलन्हि/ गरबेलनि‍

७८. बालु बालू

७९. चेन्ह चिन्ह(अशुद्ध)

८०. जे जे

८१. से/ के से’/के

८२. एखुनका अखनुका

८३. भुमिहार भूमिहार

८४. सुग्गर / सुगरक/ सूगर

८५. झठहाक झटहाक ८६. छूबि

८७. करइयो/ओ करैयो ने देलक /करियौ-करइयौ

८८. पुबारि पुबाइ

८९. झगड़ा-झाँटी झगड़ा-झाँटि

९०. पएरे-पएरे पैरे-पैरे

९१. खेलएबाक

९२. खेलेबाक

९३. लगा

९४. होए- होहोअए

९५. बुझल बूझल

९६. बूझल (संबोधन अर्थमे)

९७. यैह यएह / इएह/ सैह/ सएह

९८. तातिल

९९. अयनाय- अयनाइ/ अएनाइ/ एनाइ

१००. निन्न- निन्द

१०१. बिनु बिन

१०२. जाए जाइ

१०३. जाइ (in different sense)-last word of sentence

१०४. छत पर आबि जाइ

१०५. ने

१०६. खेलाए (play) –खेलाइ

१०७. शिकाइत- शिकायत

१०८. ढप- ढ़प

१०९. पढ़- पढ

११०. कनिए/ कनिये कनिञे

१११. राकस- राकश

११२. होए/ होय होइ

११३. अउरदा- औरदा

११४. बुझेलन्हि (different meaning- got understand)

११५. बुझएलन्हि/बुझेलनि‍/ बुझयलन्हि (understood himself)

११६. चलि- चल/ चलि‍ गेल

११७. खधाइ- खधाय

११८. मोन पाड़लखिन्ह/ मोन पाड़लखि‍न/ मोन पारलखिन्ह

११९. कैक- कएक- कइएक

१२०. लग

१२१. जरेनाइ

१२२. जरौनाइ जरओनाइ- जरएनाइ/जरेनाइ

१२३. होइत

१२४. गरबेलन्हि/ गरबेलनि‍ गरबौलन्हि/ गरबौलनि‍

१२५. चिखैत- (to test)चिखइत

१२६. करइयो (willing to do) करैयो

१२७. जेकरा- जकरा

१२८. तकरा- तेकरा

१२९. बिदेसर स्थानेमे/ बिदेसरे स्थानमे

१३०. करबयलहुँ/ करबएलहुँ/ करबेलहुँ करबेलौं

१३१. हारिक (उच्चारण हाइरक)

१३२. ओजन वजन आफसोच/ अफसोस कागत/ कागच/ कागज

१३३. आधे भाग/ आध-भागे

१३४. पिचा / पिचाय/पिचाए

१३५. नञ/ ने

१३६. बच्चा नञ (ने) पिचा जाय

१३७. तखन ने (नञ) कहैत अछि। कहै/ सुनै/ देखै छल मुदा कहैत-कहैत/ सुनैत-सुनैत/ देखैत-देखैत

१३८. कतेक गोटे/ कताक गोटे

१३९. कमाइ-धमाइ/ कमाई- धमाई

१४०. लग

१४१. खेलाइ (for playing)

१४२. छथिन्ह/ छथिन

१४३. होइत होइ

१४४. क्यो कियो / केओ

१४५. केश (hair)

१४६. केस (court-case)

१४७. बननाइ/ बननाय/ बननाए

१४८. जरेनाइ

१४९. कुरसी कुर्सी

१५०. चरचा चर्चा

१५१. कर्म करम

१५२. डुबाबए/ डुबाबै/ डुमाबै डुमाबय/ डुमाबए

१५३. एखुनका/ अखुनका

१५४. लए/ लिअए (वाक्यक अंतिम शब्द)- लऽ

१५५. कएलक/ केलक

५६. गरमी गर्मी

१५७. वरदी वर्दी

१५८. सुना गेलाह सुना’/सुनाऽ

१५९. एनाइ-गेनाइ

१६०. तेना ने घेरलन्हि/ तेना ने घेरलनि‍

१६१. नञि / नै

१६२. डरो रो

१६३. कतहु/ कतौ कहीं

१६४. उमरिगर-उमेरगर उमरगर

१६५. भरिगर

१६६. धोल/धोअल धोएल

१६७. गप/गप्प

१६८. के के

१६९. दरबज्जा/ दरबजा

१७०. ठाम

१७१. धरि तक

१७२. घूरि लौटि

१७३. थोरबेक

१७४. बड्ड

१७५. तोँ/ तू

१७६. तोँहि( पद्यमे ग्राह्य)

१७७. तोँही / तोँहि

१७८. करबाइए करबाइये

१७९. एकेटा

१८०. करितथि /करतथि

१८१. पहुँचि/ पहुँच

१८२. राखलन्हि रखलन्हि/ रखलनि‍

१८३. लगलन्हि/ लगलनि‍ लागलन्हि

१८४. सुनि (उच्चारण सुइन)

१८५. अछि (उच्चारण अइछ)

१८६. एलथि गेलथि

१८७. बितओने/ बि‍तौने/ बितेने

१८८. करबओलन्हि/ करबौलनि‍/ करेलखिन्ह/ करेलखि‍न

१८९. करएलन्हि/ करेलनि‍

१९०. आकि/ कि

१९१. पहुँचि/ पहुँच

१९२. बत्ती जराय/ जराए जरा (आगि लगा)

१९३. से से

१९४. हाँ मे हाँ (हाँमे हाँ विभक्त्तिमे हटा कए)

१९५. फेल फैल

१९६. फइल(spacious) फैल

१९७. होयतन्हि/ होएतन्हि/ होएतनि‍/हेतनि‍/ हेतन्हि

१९८. हाथ मटिआएब/ हाथ मटियाबय/हाथ मटियाएब

१९९. फेका फेंका

२००. देखाए देखा

२०१. देखाबए

२०२. सत्तरि सत्तर

२०३. साहेब साहब

२०४.गेलैन्ह/ गेलन्हि/ गेलनि‍

२०५. हेबाक/ होएबाक

२०६.केलो/ कएलहुँ/केलौं/ केलुँ

२०७. किछु न किछु/ किछु ने किछु

२०८.घुमेलहुँ/ घुमओलहुँ/ घुमेलौं

२०९. एलाक/ अएलाक

२१०. अः/ अह

२११.लय/ लए (अर्थ-परिवर्त्तन) २१२.कनीक/ कनेक

२१३.सबहक/ सभक

२१४.मिलाऽ/ मिला

२१५.कऽ/

२१६.जाऽ/ जा

२१७.आऽ/

२१८.भऽ /’ (’ फॉन्टक कमीक द्योतक)

२१९.निअम/ नियम

२२०.हेक्टेअर/ हेक्टेयर

२२१.पहिल अक्षर ढ/ बादक/ बीचक ढ़

२२२.तहिं/तहिँ/ तञि/ तैं

२२३.कहिं/ कहीं

२२४.तँइ/ तैं / तइँ

२२५.नँइ/ नइँ/ नञि/ नहि/नै

२२६.है/ हए / एलीहेँ/

२२७.छञि/ छै/ छैक /छइ

२२८.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ

२२९. (come)/ आऽ(conjunction)

२३०. (conjunction)/ आऽ(come)

२३१.कुनो/ कोनो, कोना/केना

२३२.गेलैन्ह-गेलन्हि-गेलनि‍

२३३.हेबाक- होएबाक

२३४.केलौँ- कएलौँ-कएलहुँ/केलौं

२३५.किछु न किछ- किछु ने किछु

२३६.केहेन- केहन

२३७.आऽ (come)- (conjunction-and)/आ। आब'-आब' /आबह-आबह

२३८. हएत-हैत

२३९.घुमेलहुँ-घुमएलहुँ- घुमेलाें

२४०.एलाक- अएलाक

२४१.होनि- होइन/ होन्हि/

२४२.ओ-राम ओ श्यामक बीच(conjunction), ओऽ कहलक (he said)/

२४३.की हए/ कोसी अएली हए/ की है। की हइ

२४४.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ

२४५.शामिल/ सामेल

२४६.तैँ / तँए/ तञि/ तहिं

२४७.जौं/ ज्योँ/ जँ/

२४८.सभ/ सब

२४९.सभक/ सबहक

२५०.कहिं/ कहीं

२५१.कुनो/ कोनो/ कोनहुँ/

२५२.फारकती भऽ गेल/ भए गेल/ भय गेल

२५३.कोना/ केना/ कन्‍ना/कना

२५४.अः/ अह

२५५.जनै/ जनञ

२५६.गेलनि‍/ गेलाह (अर्थ परिवर्तन)

२५७.केलन्हि/ कएलन्हि/ केलनि‍/

२५८.लय/ लए/ लएह (अर्थ परिवर्तन)

२५९.कनीक/ कनेक/कनी-मनी

२६०.पठेलन्हि‍ पठेलनि‍/ पठेलइन/ पपठओलन्हि/ पठबौलनि‍/

२६१.निअम/ नियम

२६२.हेक्टेअर/ हेक्टेयर

२६३.पहिल अक्षर रहने ढ/ बीचमे रहने ढ़

२६४.आकारान्तमे बिकारीक प्रयोग उचित नै/ अपोस्ट्रोफीक प्रयोग फान्टक तकनीकी न्यूनताक परिचायक ओकर बदला अवग्रह (बिकारी) क प्रयोग उचित

२६५.केर (पद्यमे ग्राह्य) / -/ कऽ/ के

२६६.छैन्हि- छन्हि

२६७.लगैए/ लगैये

२६८.होएत/ हएत

२६९.जाएत/ जएत/

२७०.आएत/ अएत/ आओत

२७१.खाएत/ खएत/ खैत

२७२.पिअएबाक/ पिएबाक/पि‍येबाक

२७३.शुरु/ शुरुह

२७४.शुरुहे/ शुरुए

२७५.अएताह/अओताह/ एताह/ औताह

२७६.जाहि/ जाइ/ जइ/ जै/

२७७.जाइत/ जैतए/ जइतए

२७८.आएल/ अएल

२७९.कैक/ कएक

२८०.आयल/ अएल/ आएल

२८१. जाए/ जअए/ जए (लालति‍ जाए लगलीह।)

२८२. नुकएल/ नुकाएल

२८३. कठुआएल/ कठुअएल

२८४. ताहि/ तै/ तइ

२८५. गायब/ गाएब/ गएब

२८६. सकै/ सकए/ सकय

२८७.सेरा/सरा/ सराए (भात सरा गेल)

२८८.कहैत रही/देखैत रही/ कहैत छलौं/ कहै छलौं- अहिना चलैत/ पढ़ैत (पढ़ै-पढ़ैत अर्थ कखनो काल परिवर्तित) - आर बुझै/ बुझैत (बुझै/ बुझै छी, मुदा बुझैत-बुझैत)/ सकैत/ सकै। करैत/ करै। दै/ दैत। छैक/ छै। बचलै/ बचलैक। रखबा/ रखबाक । बिनु/ बिन। रातिक/ रातुक बुझै आ बुझैत केर अपन-अपन जगहपर प्रयोग समीचीन अछि‍। बुझैत-बुझैत आब बुझलि‍ऐ। हमहूँ बुझै छी।

२८९. दुआरे/ द्वारे

२९०.भेटि/ भेट/ भेँट

२९१. खन/ खीन/ खुना (भोर खन/ भोर खीन)

२९२.तक/ धरि

२९३.गऽ/ गै (meaning different-जनबै गऽ)

२९४.सऽ/ सँ (मुदा दऽ, लऽ)

२९५.त्त्व,(तीन अक्षरक मेल बदला पुनरुक्तिक एक आ एकटा दोसरक उपयोग) आदिक बदला त्व आदि। महत्त्व/ महत्व/ कर्ता/ कर्त्ता आदिमे त्त संयुक्तक कोनो आवश्यकता मैथिलीमे नै अछि। वक्तव्य

२९६.बेसी/ बेशी

२९७.बाला/वाला बला/ वला (रहैबला)

२९८.वाली/ (बदलैवाली)

२९९.वार्त्ता/ वार्ता

३००. अन्तर्राष्ट्रिय/ अन्तर्राष्ट्रीय

३०१. लेमए/ लेबए

३०२.लमछुरका, नमछुरका

३०२.लागै/ लगै (भेटैत/ भेटै)

३०३.लागल/ लगल

३०४.हबा/ हवा

३०५.राखलक/ रखलक

३०६. (come)/ (and)

३०७. पश्चाताप/ पश्चात्ताप

३०८. ऽ केर व्यवहार शब्दक अन्तमे मात्र, यथासंभव बीचमे नै।

३०९.कहैत/ कहै

३१०. रहए (छल)/ रहै (छलै) (meaning different)

३११.तागति/ ताकति

३१२.खराप/ खराब

३१३.बोइन/ बोनि/ बोइनि

३१४.जाठि/ जाइठ

३१५.कागज/ कागच/ कागत

३१६.गिरै (meaning different- swallow)/ गिरए (खसए)

३१७.राष्ट्रिय/ राष्ट्रीय

तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों