अरबी-फारसी-उर्दूमे गजल छोड़ि आन बहुत काव्य विधा छैक। जकर संक्षिप्त विवरण हम एहिठाम दए रहल छी।
1) कसीदा--------- कसीदा शाइरीक ओ रूप थिक जाहिमे अपन लोकक प्रशंसा आ विपक्षीक खिद्धांश हो। कसीदामे कमसँ कम 19 शेर भेनाइ जरूरी छैक। अधिकतम शेरक कोनो संख्या नहि। कसीदा दू प्रकारक होइत छैक।
तमहीदिया---एहन कसीदा जकर शुरुआत प्रेम, मिलन, मस्ती आदिसँ हो ओकरा तमहीदिया कहल जाइत छैक। एहि कसीदामे पाँच टा भाग होइत छैक---- तश्बीब, गुरेज, मद्ह, दुआ एवं खात्मा। शुरुआतकेँ तश्बीब कहल जाइत छैक। मुख्य वर्णय विषय जाहिठामसँ मोड़ल जाइ छैक तकरा गुरेज कहल जाइत छैक। मुख्य विषयकेँ मद्ह कहल जाइत छैक। प्रशंसा वा खिद्धांश बला भागकेँ दुआ कहल जाइत छैक आ कसीदाक अंतिम भागकेँ खात्मा कहल जाइत छैक।
खिताबिया----- खिताबिया कसीदामे बिना कोनो भूमिकाकेँ मुख्य विषय कहल जाइत छैक।
मैथिलीमे अनेक कसीदा भेटत। विद्यापतिक ( ज्योतिरीश्वरक पछाति बला विद्यापति ) अनेक गीत शिव सिंहक कसीदा थिक। एहि प्रकारे आनो मैथिली कविक लिखल कसीदा भेटत।
2) मनसवी----- मैथिलीक प्रबंध काव्य अरबी-फारसी-उर्दूक मनसवीक बराबर अछि। ओना मनसवीक शाब्दिक अर्थ दू भाग बला वस्तु छैक। मुदा साहित्यिक रूपमे मनसवी ओहन काव्य रुपकेँ कहल जाइत छैक जकर हरेक पाँतिमे काफिया केर प्रयोग होइक। मनसवीक शुरुआत हस्द (मंगलाचरण) आ अंत कोनो ने कोनो उपदेशसँ हेबाक चाही। मनसवीक लेल बहरे-मुतकारिब, हजज,खफीफ,रमल,सरीअ आदि उपयुक्त रहैत छैक।
3) फर्द--------फर्द शाइरीक ओहन विधा थिक जकर शेरक कोनो पाँतिमे काफिया नहि होइत छैक।
4) बन्द--------बन्द एहन काव्य विधा भेल जकरा शाइर हम्त, नात,मनकतब, कौवाली, मर्सिया आदिमे सुगमता पूर्वक करैत छथि। बन्द कोना कहल जाइत छैक से देखू--- पहिने एकटा शेर लिखू आ तकरा बाद दूसँ दस धरिक एहन पाँति कहू जकर काफिया उपरका शेरक काफियासँ मेल नहि खाइत हो मुदा अपना आपमे ओकर काफिया मेल खाइत होइक। आ तकरा बाद अंत मे एकटा एहन पाँति कहू जकर काफिया पहिल शेरक काफियासँ मेल खाइत हो। इ भेल बन्द। बन्द दू प्रकारक होइत छैक। पहिल भेल तरजीअ बन्द आ दोसर भेल तरकीब बन्द। एकटा बन्द जँ पूरा भए गेल तकरा बाद कोनो गजल या कसीदा कहए जाए तखन ओ तरजीअ बन्द कहल जाइत छैक। जँ बन्दक अंतिम पाँतिक काफिया शुरुआती शेरक काफियासँ मेल नहि खाइत हो तखन ओकरा तरकीब बन्द कहल जाइत छैक।
5) कता---- कता मने टुकड़ा होइत छैक। एहिमे कमसँ कम दूटा शेर आ बेसीसँ बेसी सत्रह टा शेर होइत छैक। हरेक पहिल शेर दोसर शेर पर निर्भर हेबाक चाही। एहि विधाक पहिल आ तेसर पाँतिक एवं दोसर आ चारिम पाँतिक काफिया मिलबाक चाही।संगहि-संग एकर शुरुआत दीर्घ-दीर्घसँ हेबाक चाही
6) रुबाइ----------रुबाइमे दू टा शेर मने चारि पाँति (आधिकतम) होइत छैक। एकर हरेक पाँतिमे मात्र एकैस मात्रा हेबाक चाही। संगहि-संग एकर शुरुआत दीर्घ-दीर्घसँ हेबाक चाही। पहिल शेरक दूनू पाँति आ दोसर शेरक दोसर पाँतिक काफिया सामान हेबाक चाही। जँ दोसर शेरक पहिलो पाँतिमे समान काफिया छैक तँ आरो नीक।
7) हम्त-------------शाइरीक एहि विधामे बंदा (भक्त) आ खुदा (भगवान)क बातचीतकेँ विषय बनाएल जाइत छैक।
8) नात------------शाइरीक इ विधा इस्लाममे बहुत पवित्र मानल जाइत छैक। एहि विधामे शाइर पैगम्बर हजरत मुहम्मद आ हुनकासँ जुरल चीजक प्रशंसा कहैत छैक। एकरा कहैत कालमे माथ पर रुमाल या कपड़ा राखल जाइत छैक जेना की हिन्दु धर्ममे दुर्वाक्षत एवं अन्य धार्मिक विधिमे माथ पर गमछा वा धोतिक ढ़ेका खोलि माथ पर राखि लैत छथि। गायनके बेरमे नात दू रुपें गाओल जाइत छैक। पहिल समूहमे आ दोसर असगरें। एहिठाम मोन राखू वैदिक ॠषि वेदक ॠचाक पाठ सेहो एही दू रुपे करैत छलाह। नात रदीफ युक्त आ बिना रदीफक दूनू तरहें लिखल जाइत छैक।
जहाँ धरि हमरा ज्ञान अछि मैथिलीमे लिखित रूपमे सोमदेव जी पहिल बेर नात लिखला मुदा ओहि नात सभमे व्याकरणक अभाव अछि । देखू सोम पदावली।
9) मनकबत--------औलिया (सिद्ध फकीर)क उपर लिखल गेल अशआर (शाइरी)केँ मनकबत कहल जाइत छैक। हम्त, नात आ मनकबत तीनू एकै शैली थिक मुदा विषय अलग-अलग रहैत छैक। केखनो काल कए इ तीनू रुबाइ, कता बंद आदिकेँ मिला कए लिखल जाइत अछि।
10) मर्सिया (मरसिया)----- मैथिलीक निर्गुण आ अरबी-फारसी-उर्दूक मर्सिया एकै मतलबकेँ प्रतीक अछि। अंग्रेजीमे एकरा एलिजी कहल जाइत छैक। ओनाहुतो मैथिलीमे सराप देल जाइत छैक जे हम तोहर अँकुरी खेबौ। आ उर्दूमे बददुआ देल जाइ छैक जे हम तोहर मर्सिया कहबौ। दूनूक एकै मतलब छैक। मर्सिया 6-6 पाँतिक (मने तीन-तीन शेरक) समूह होइत छैक। आ इ सत्तरसँ अस्सी टा समूहक भए सकैत अछि।
11) मुस्तजाद------जखन गजल समेत शाइरीक हेरक विधाक हरेक पाँतिमे कोनो उद्येश्य पूर्ण वाक्य या वाक्यांश जोड़ि देल जाइत छैक तखन ओकरा मुस्तजाद कहल जाइत छैक। केखनो काल शाइर गजलक मतलाक बाद कोनो उद्येश्य पूर्ण वाक्य या वाक्यांश जोड़ि दैत छथि आ तकरा बाद आन शेर कहैत छथि। एहनो काव्यकेँ मुस्तजाद कहल जाइत छैक।
12) नज्म------ एकै भाव पर तुकांत एवं वज्नदार पाँतिक समूहकेँ नज्म कहल जाइत छैक। मुदा आब उर्दूमे सेहो बिना काफिया आ वज्न नज्म आबि गेल अछि जे की शुद्ध रूपसँ आधुनिक कविता जकाँ अछि मने कौआक टाँग आ बेंगक टांग मिला कए जे कविता लिखल गेल हो से|
13) मुजरा----- गजल, नज्म,कसीदा, रुबाइ कता, बन्द आदिक समूह पर साज-बाजक संग स्त्री नाच-गानकेँ मुजरा कहल जाइत छैक। इ विशुद्ध रुपसँ नबाबी परंपराक प्रतीक थिक। इ शाइरीक रूप तँ नहि मुदा एकर अंग मानल जाइत अछि। जाहिठाम मुजरा आदि होइत हो ताहिठामकेँ मोहफिल कहल जाइत छैक।
14) कौवाली------किछु शेर, बन्द, रुबाइ, कता आदिकेँ जोड़ि कए एकटा कौवाली बनैत छैक। कौवालीक जन्मदाता अमीर खुसरो मानल जाइत छथि आ ओहि समयमे ओकरा कौल कहल जाइत छलैक। आ इ काव्य मात्र धार्मिक रूप लेल छलैक। मुदा बादमे विलासिताक प्रतीक बनि गेल। नबाबी कालमे कौवालीक रुप स्त्री-पुरूष केर उत्तर-प्रतिउत्तर रुपमे बदलि गेल आ बादमे एही रुपकेँ मान्य मानल गेल। मुदा एखनो बहुत कौवाली असँगरे सेहो गायन कएल जाइत छैक। इ काव्यविधा उत्तेजक आ मनलग्गू होइत छैक।
15) गजलकेँ अलावे एकटा आर टर्म छै उर्दूमे जकरा हजल कहल जाइत छै। आब इ बूझी जे गजल आ हजलमे की अंतर छै। व्याकरण मने रदीफ, काफिया आ बहर गजल आ हजल लेल एक समान छै। मुदा कथन अलग-अलग जतए गजल पूरा-पूरी गंभीर बातसँ बनै छै ओतहि हजल हास्यक फुलझरीसँ। मने हजल आ गजलमे खाली गंभीरताक अंतर छै। हमरा जहाँ धरि बुझाइत अछि जे मुसलमान शासक सभ राज-काजक बीचमे बोर भए जाइत छलाह तखन इ हजल सुनाएल जाइत छल हेतै।
16) माहिया--- ई विधा मूलतः पंजाबी साहित्य केर थिक आ पंजाबीसँ उर्दूमे आएल आ तकरा बाद सभ भाषामे पसरल। ई विधा मात्र तीन पाँति केर होइत छै जाहिमे पहिल पाँतिमे 12 मात्रा दोसरमे 10 मात्रा आ फेर तेसरमे 12 मात्रा होइत छै आ सङ्गे-सङ्ग पहिल पाँति आ तेसर पाँतिमे काफिया ( तुकान्त ) होइत छै... तँ देखी एकर संरचनाकेँ------
पंजाबीमे माहियाक पहिल पाँतिक संरचना अधिकांशतः 2211222 अछि मने दीर्घ-दीर्घ-लघु-लघु-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ।
तेनाहिते दोसर पाँतिक संरचना अछि 211222 दीर्घ-लघु-लघु-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ
आ फेर तेसर पाँतिक संरचना पहिल पाँतिक बराबर अछि मने 2211222 मने दीर्घ-दीर्घ-लघु-लघु-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ।
ओना ई अधिकांश संरचना अछि। ऐकेँ अलावे किछु हेड़-फेड़क संग आन-आन संरचना सेहो भेटैत अछि। मुदा ई निश्चित छै जे हरेक पाँतिमे दीर्घक बेसी संख्या रहने लयमे ई खूब आबि जाइत छै
माहिया छन्दमे अर्थक चारि तरहें विस्तार होइत छै...
१) या तँ पहिल आ दोसर पाँति मीलि कए एकटा अर्थकेँ ध्वनित करै आ तेसर पाँति अलग रहै,
२) या तँ दोसर पाँति आ तेसर पाँति मीलि कए कएटा अर्थकेँ द्वनित करै आ पहिल पाँति अलग रहै,
३) या तीनू पाँति मीलि कए एकटा अर्थकेँ ध्वनित करै
४) या दोसर पाँति एहन होइ जे पहिलो पाँति सङ्ग मीलि अलग अर्थ दै वा तेसर पाँति सङ्ग मीलि अलग अर्थ दै।
माहिया छन्दक स्थायी अधार श्रृगांर रस थिक मुदा आधुनिक समयमे ई हरेक विषयमे लिखल जाइत अछि। उदाहरण स्वरूप देखू हमर दूटा माहिया---
१) तीरसँ ने तरुआरिसँ
हम डरै छी आब
हुनक नजरिकेँ मारिसँ
२) डोलैए मोन हमर
उठल आँखिसँ भाइ
करेज मथैए हमर
मैथिलीमे ई माहिया छन्द अज्ञात अछि.. आउ एकरो आगू बढ़ाएल जाए..... खास कए जे कवि श्रृगांर रसमे भीजल रहै छथि।