जखन मोन मे प्रेमक आँकुर फूटल, तखन प्रेमक गाछ निकलबे करत।
जखन जवानीक ककरो लुत्ती लागल, तखन प्रेमक धधरा उठबे करत।
प्रेम छै रामायण, प्रेम छै गीता पुराण, प्रेम छै पूजा-पाठ, प्रेम ईश-भगवान,
जखन इ मोन पवित्र मंदिर बनल, तखन प्रेमक मुरूत बसबे करत।
जिनगी कछेर बनल इ प्रेम छै धार, प्रेम इ समाज बनबै प्रेम परिवार,
जखन हिय सिनेहक संगम रचल, तखन प्रेमक इ गंगा बहबे करत।
प्रेम केँ बान्हत डोरी एखन नै बनल, प्रेम मुक्त छै सदिखन सहज सरल,
जखन जिनगी-आकाशक सीमा हटल, तखन प्रेमक चिडैयाँ उडबे करत।
"ओम"क निवेदन अहाँ कते नै सुनब, एना अहाँ चुप रहि कते मूक बनब,
जखन याचना अहाँक मोन मे ढुकल, तखन प्रेमक भिक्षा त' भेटबे करत।
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