रविवार, 2 अक्तूबर 2011

गजल

गजल
बड़को बड़का केँ नहि छै आब सठ्ठा
के आब केकरा दैए घी आ मठ्ठा

इलेक्ट्रोनिक मीडियाक जमाना इ आबि गेल
नवयुग मे नहि भेटत स्लेट आ भठ्ठा

गामो मे स्क्वायर फूट मे आब बिकाइए जमीन
बिसरि जायब किछु दिन मे धूर आ कठ्ठा

मिथिला बासी छी तैँ मैथिली बाजै छी
यार दोस्त सँ करै छी हँसी ठठ्ठा

इटांक घर ककरो होइ छल पहिने
गाम गाम मे खुजि गेल आब त' भठ्ठा

सिल्क पॉलिस्टर कीमती वस्त्र,पोशाक भेलै
के पहिरैयै मोट झोट आ लठ्ठा

दुखना,फेकना,रौदिया सभ परदेसी भेल
के जाइयै आब कान्ह पर ह'र ल' हठ्ठा

चोर चोर मौसयौत भाई जखने भ' गेल
के खोलत आब ककर कच्चा चिठ्ठा

जनता महंगाइ सँ त्राहि त्राहि करै
भ्रष्टाचारी खाइए घी आ मठ्ठा

गांधी बाबा आबि क' देशक हाल देखू
कतेक अहाँ के लिखू चिठ्ठी चिठ्ठा

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों