गुरुवार, 13 अक्टूबर 2011

गजल

बात जे झंपबै त ओ जडिएबे करत
चुल्हि चढल खापडि करिएबे करत

कतबहु दाबब गप के दबत नहि
लोक त लोक छैक ओ चरिएबे करत

तनला से सहो चलत नहि कोनो काज
मुस्टंडा मानत नहि फरिएबे करत

नहि पडू मुखिया ओ पंचक चक्कर मे
ओकर त काज छैक भरिएबे करत

आपस मे गप करू करू राफ ओ साफ
धीरज धरू मामिला सरिएबे करत

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों