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पले पल अपन अंतर्मनक आगि मे सुनगैत अंशुमाला भs गेलहु
खने हर्ख स्मृतिक, खने दुखक आगि मे पजरैत, अंशुमाला भs गेलहु
जीवनक बदलैत मौसमक डुबैत-उगैत चान सुरुजक रूप धs
खने स्याह अन्हार, खने इन्द्रधनुखक विहुँसैत अंशुमाला भs गेलहु
अल्हड़ कुमारिक सिहरैत सर्दी मे जाधरि गुदगुदी रहैक मुस्कैत
लोक कहै हम ओसाइत इजोरियाक ठहकैत अंशुमाला भs गेलहु
मधुगंध आ नव आस लs कs जखन आयल बियाह राति केर बसंत
मोन मे रहै भ्रम हम उखा-अरूषक बिहुँसैत अंशुमाला भs गेलहु
प्राणक प्यास आ टुटल आस लs कs जखन आयल गुरदा-रोगक ग्रीष्म
पीय विस्वासघातक प्रचंड दुपहरी मे जड़ैत अंशुमाला भs गेलहु
शुभेच्छुक आशीख आ मायक वात्सल्य वरखा आपस अनलैथ पावस
हम घुरि नव उम्मेदक दियाबाति मे टिमकैत अंशुमाला भs गेलहु
"शांतिलक्ष्मी" कहैथ स्त्रीशक्तिक पावनि तिहार लs घुरि आयल अछि जाड़
मानु हे सखि, अहाँ तँ धुमन आरतीमे गमकैत अंशुमाला भs गेलहु
.........................वर्ण २७....................
(अपन अनचिन्हार सखि Anshu Mala Jha के समर्पितl
एहि गजल मे अंशुमाला शब्दक प्रयोग कतहुँ व्यक्तिवाचक नहि अछिl
शाव्दिक अर्थक अनुसार शब्दक प्रयोग प्रकाशक लड़ीक रूप मे भेल अछिl)
ई गजल " मिथिला-दर्शन" केर अंक मइ-जून २०१२मे प्रकाशित भेल।
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