मैथिलिये केँ सभ दिन तँ खोरि-खोरि खाइत छी
तैयौ हुनके सेवा मे एना कियै नितराइत छी
जे दिये दही-चुरा दिस तकरे के राखै छी नीति
अपना मुंहेँ सैह बाजय मे किये चोराइत छी
जाधरि खेलौ ताधरि गेलौ के रखने छी नियत
राखिकेँ भरि मुंह मधुर कियै गोंगियाइत छी
बुझलौ जे पाग बदलै मे अछि बड्ड चट्टकैति
अछि सभ तेँ बुझिते तखन कियै औनाइत छी
पैर छुबि-छुबि सभ दिन बढ़लौ ये अहाँ आगु
सत कही तेँ हमरा पर कियै खिसियाइत छी
निकाललौ बेगरता तँ टीक पकड़ै के आदत
कियै घाट-घाटक पानि पिवै एना बौवाइत छी
"शांतिलक्ष्मी" बुझैत अछि अहाँक सभटा अस्सल
झटकल डेग मे कोना आगु बढ़ल जाइत छी
बहुत नीक गजल
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