गजल
करेजा ओकरो बड कानले हेतै
जँ सपना अपन हाथसँ तोड़ने हेतै
पड़ल जानपर धर्मो सब बिसरऽ पड़तै
सही कम फूसि बहुते बाजने हेतै
जँ भोरक शीत कारी रूपकेँ धरतै
सड़कपर रौद्र घटना उचरले हेतै
कहै छै मूर्ख जकरा लोक जग भरिकेँ
उहो किछु किछु भविष्यक सोचने हेतै
अपन लघु रोजगारे टा बचल साधन
कते शिक्षित नगरमे भटकले हेतै
कला जीबाक बड गामक पढ़ू जिनगी*
बिसाढ़सँ "अमित" जिनगी भेटले हेतै
मफाईलुन
1222 तीन बेर
बहरे-हजज
*गामक जिनगी(साहित्यकार जगदीश प्रसाद मण्डलक लघु कथा संग्रह)
अमित मिश्र
करेजा ओकरो बड कानले हेतै
जँ सपना अपन हाथसँ तोड़ने हेतै
पड़ल जानपर धर्मो सब बिसरऽ पड़तै
सही कम फूसि बहुते बाजने हेतै
जँ भोरक शीत कारी रूपकेँ धरतै
सड़कपर रौद्र घटना उचरले हेतै
कहै छै मूर्ख जकरा लोक जग भरिकेँ
उहो किछु किछु भविष्यक सोचने हेतै
अपन लघु रोजगारे टा बचल साधन
कते शिक्षित नगरमे भटकले हेतै
कला जीबाक बड गामक पढ़ू जिनगी*
बिसाढ़सँ "अमित" जिनगी भेटले हेतै
मफाईलुन
1222 तीन बेर
बहरे-हजज
*गामक जिनगी(साहित्यकार जगदीश प्रसाद मण्डलक लघु कथा संग्रह)
अमित मिश्र
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